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Monday, January 11, 2016

1
तुम गुलाब बन खिलना
मै कांटा बन
करूँगा रक्षा तुम्हारी
तुम्हे टूटने से बचा न सक तो
तोड़ने वाले के हाथ जख्मी तो कर दूंगा
2
गुलाब के ऊपर
गिरी शबनम
जानती है
सूख जाएगी धूप  में
पर फिर भी चली आती है
उसके मोह में

भगवान
मुझे गुलाब मत बनाना
मुझे   बनाना
रूप गंध विहीन
 छोटा सा फूल
क्यों की मुरझाने से पहले
 नहीं होना चाहता जुदा
मै अपनी डाली से

सुनो
अगले जन्म में
तुम गुलाब न बनना
कोई न कोई तोड़ ही लेगा
तुम कांटा भी न बनना
सभी बुरा कहेंगे तुम्हें
तुम गर्मी बन धरती पर उतारना
मै अनाज बन उगुंगा
छू कर तुम्हे
सुनहरा हो जाऊँगा
और बन जाऊँगा वरदान
किसी भूखे के लिए

8 comments:

shephali said...

सुन्दर रचना के लिए बधाई

Unknown said...

सुन्दर रचना ।

आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"

यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"

Unknown said...

सुन्दर रचना ।

आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है ।
ब्लॉग"दीप"

यहाँ भी पधारें-
तेजाब हमले के पीड़िता की व्यथा-
"कैसा तेरा प्यार था"

Unknown said...

Very Beautiful whatsapp awesome

Anonymous said...

aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
rachana

Satish Saxena said...

बहुत खूब ,
हिन्दी ब्लॉगिंग में आपका लेखन अपने चिन्ह छोड़ने में कामयाब है , आप लिख रही हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
मानती हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना के लिए बधाई

Abhilasha said...

Bahut sundar rachnayen