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Friday, January 2, 2009

जिन्दगी यूँ ही चलती है

जीवन अपनों का सजाना तो है
रेत में ही सही पर घर बनाना तो है

हाँ मालुम है के तूफान का अन्देशा है
मौजों में कश्ती फ़िर भी बहाना तो है

भूख के आगे पलट जाते हैं हर एक तूफान
इस बात का ख़ुद को यकीं दिलाना तो है

हर सीप में मोती मिलता नही दोस्तों
सुना हमने भी ये फ़साना तो है

समां गए कितने लहरों में उस रोज
उजडे इस चमन को फ़िर से बसाना तो है

भूखे रह जायें या सो जायें वो पीके पानी
क़र्ज़ बनिए का फ़िर भी चुकाना तो है

बहुत रो लिए तुम सुन के दास्ताँ मेरी
तेरे इन आसुंओं को अब हँसाना तो है

समुन्दर न सही समुन्दर सा हौसला तो दे
ज़िन्दगी से रिश्ता हम को निभाना तो है

सब कुछ खो के बुत सा बैठा है वो
घाव बन न जाए नासूर उस को रुलाना तो है