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Monday, December 19, 2011

सूरज ने मई जून में मिले लोगों के तानो से परेशान होकर जो अपने किवाड़ बंद कर लिए .घुन्ध आकाश के आँगन से निकल घरती पर पसर गई .ठंढ हाथ रगडती हुई स्वेटर पहन इतराती घूमने  लगी ऐसे में कहीं कोई स्वयं को जीवित रखने के लिए कर रहा था प्रार्थना कुछ टुकड़े कम्बल के लिए .पर सुनी जाती है दुआ कब गरीबों की ................................


मौसम ने ओढ़ी
शीत  की चूनर
पारा  नीचे गिरता गया
छोटू ने पानी डाल
कोयले की आग बुझाई
तो शहर 
लिपट गया कोहरे में
ठंढ खुद इतनी ठंढी हुई
के बैठ गई उकडू
जलते अलाव के पास
सूरज ने  बढाया घर का तापमान
चाँद ने रजाई ओढ़ी ली
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
 वो बुन रही  थी फंदों में गर्माहट
कपड़ों की गठरी बने लोग
चल रहे थे
कम कर के शरीर का क्षेत्रफल
धुंध की महक वाली  हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत