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Thursday, January 23, 2014

 दोस्तों नए साल में कहा बहुत कुछ पर पोस्ट कुछ भी नहीं किया। आज आई हूँ नए साल की बहुत सारी सुभकामनाओं के साथ.
इस  शहर से बहुत अनुरोध किया की मुझे भी अपनी पहचान ले पर उसने मुझे अजनबी ही रखा

बहुत चाहा की
पहचान ले ये शहर
मेरे कदमो की आहट को
अपने  हवाओं के परदे में
मुझे भी पनाह दे दे
मेरी उम्मीद में
अपने फूलों के रंग भर के
इंद्रधनुषी कर दे 
अपनी सड़कों के कानों में
फुसफुसा दे मेरा नाम
ताकी मै  उनके लिए अपरचित्त न रहूँ
इतने सालों बाद भी
ये हो न सका
अभी भी
मै और शहर साथ हैं
पर अजनबी की तरह
-0-
इस शहर की चादर से
जानी  पहचानी सी खुशबु आ रही थी
 देखा तो पाया
के मेरे सपने
इसकी सिलवटो में
पैर पसारे बैठे हैं
इस उम्मीद में
के मै आऊँ
और उन्हें
इस शहर की  फ़िज़ाओं में बो दूँ l