भारत गई थी अतः बहुत दिनों से आप सभी से दूर रही आज माँ गंगा पर लिखी
कुछ क्षणिकाएं आप सभी के सामने प्रस्तुत हैं .गंगा एक नदी ही नहीं ,एक माँ
है ,एक विश्वाश है ,एक आस्था है l
क्षणिकाएं
================================
ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम
-0-ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम
अब दिखते नहीं
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ
-०-
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
-०-
अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं
-०-
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ
-०-
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
-०-
अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं
-०-
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा