छत की मुंडेर
पर बैठी मै
पैर हिलाती हुई
अपने दर्द को
सहलाती पुचकारती
उससे पूछती हूँ
क्यों रे
मुझसे तेरा दिल न भरा
कभी तो मेरा साथ छोड़ा होता
वो खामोश सुनता रहा
मै नीचे उतर आई
आँगन से देखा
वो अभी भी मुंडेर
पर बैठा था .
उसने भरी आँखों से मुझे देखा
और छलांग लगा दी
मै चीख पड़ी
गली में
उसका वजूद
बिखरा पड़ा था
और मै
एकदम खाली हो गई थी
क्योंकी मेरे अन्दर
उसके आलावा कुछ न था ......