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Friday, May 6, 2011

 विदेशी धरती का कुछ ऐसा आकर्षण होता है कि एक बार आने के बाद जाना मुश्किल होजाता है .कहते हैं ये पांच सितारा जेल है .फिर भी सभी यहाँ रहना चाहते हैं .पीछे गालियाँ चौबारे बुलाते हैं , याद में सूखते हैं ताल ,नदिया पर  ....


कहो तुम कब आओगे ?


कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
पनघट के
प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू
धूल बन
गलियों-गलियों भटकता रहा
हवाओं में लगी
नफरत की गाँठ खोलने
क्या तुम आओगे
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
या तुम आओगे
बहते हुये
चाँद के पानी में
या ढल के
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?