सच जब बोलना चाहता है ,तो हजारों हाथ उसके पंख नोच धरा पर पटक देते हैं l जो सच इस दर्द को सह नहीं पाता वो दम तोड़ देता है या फिर खुद को बिकता हुआ देखता रहता हैl
सच
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
सच
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।