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Wednesday, November 27, 2013

'एड्स 'ये मेरा विषय नहीं है पर फिर भी लिखा .पता नहीं अपनी बात कहने में सफल हुई की  नहीं .अब आप ही बताइये तो पता चले


 तुमने कहा
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तुमने कहा
सूरज की  किरण
ओढ़ने के बाद भी
तुमको गर्मी न मिली
चांदनी की
मखमली छाँह
तुम्हे शीतलता न दे सकीं
तुमने कहा
मेरा एक विचार भी
तुम्हे ऊर्जा देता है
तुम्हारी छत पे
उतरता है चाँद
और तुम्हारा घर
मेरी खुशबु से भर जाता है
तुमने कहा
बर्षों बाद लौट रहा हूँ
उस हवा की तरह
जो तुम्हारे बालों को छेड़ती है
उस धूप की  तरह
जो तुम्हारे बदन को छू कर
और भी चमकीली हो जाती है
तुम आये
तुमने कहा
तुम्हारा प्यार अकेला है
उसे मुझमे पनाह चाहिए
और मैने
उसे अपना सब कुछ दे दिया
तुमने कहा
बहुत कुछ
पर ये नहीं कहा
के  तुम्हारे प्यार में ज़हर है ,
तुम्हारी बेवफाई
कीटाणु बन कर दौड़ रही है लहू में l
देखो अब
तुम्हारे प्यार को
पनाह देने की चाह  में
मर रही हूँ मै