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Thursday, December 10, 2009


कुछ करने का जज्बा जब दिल में हिलोरे मारने लगता है तो सामाजिक परिस्थितियां इन लहरों पर बांध कसने लगती है इन बाधाओं को पार कर कुछ लहरें जो उन्मुक्त बह ,आस दूसरों की छोड़, हरितमा फैलातीं है या कोशिश भी करती हैं तो कुछ तेजाब विचार उन को झुलसा देते हैं.

राम के आने की राह



छोड़ पराई आस
खुद कुछ करने की चाह में
सूरज की खिड़की बंद की
तो तपती धरती को शीतलता मिली
बादल में सेंध लगाई
प्यासे खेतों की प्यास बुझी
नदी की तरंगों को सी दिया
तो डूबे घरों ने साँस लिया
किसान की आशा फली
घर अनाथ होने से बचा
शहरी हवाओं में गांठ लगा दिया
तो बूढ़ा पीपल मुस्कुरा दिया
उन्नति की राह खुली
तो उम्मीदें लौट के घर चलीं
नम हुई बूढ़ी पलकें
ढलती उम्र ने सहारा पाया
मेरे माथे पर
कापतें हाथों ने आशीष सजाया
फैला अपने डैने
मैं जो मौज में उड़ने को था
के कुछ ज़मीनी भगवानों की
 क्षुद्र सोचों ने
क़तर दिए पंख मेरे
आत्मा तक नोच
मेरे उत्साह तो खुरेद डाला
बहुत चला था रामराज्य लाने
कह के धूल में पटक दिया
मैं भी जटायु सा पड़ा धरा पर
राम के आने की राह देखने लगा