कभी कभी मन के सीप में स्नेह का मोती पनपने लगता है और यही उपज विचारों की लम्बी फेहरिस्त थामे सामने आ खड़ी होती है. तब अनायास की कविता का जन्म होता है-
मै मांगती हूँ
तुम्हारी सफलता
सूरज के उगने से बुझने तक
करती हूँ
तुम्हारा इंतजार
परछाइयों के डूबने तक
दिल के समंदर में
उठती लहरों को
रहती हूँ थामे
तुम्हारी आहट तक
खाने में
परोस के प्यार
निहारती हूँ मुख
महकते शब्दों के आने तक
समेटती हूँ घर
बिखेरती हूँ सपने
दुलारती हूँ फूलों को
तुम्हारे सोने तक
रात को खीच कर
खुद में भरती हूँ
नींद के शामियाने में
सोती हूँ जग-जग के
तुम्हारे उठने तक
इस तरह
पूरी होती है यात्रा
प्रार्थना से चिन्तन तक।
3 comments:
Bahut Sunder
racha ji namaskaar sundar bhavo se yukt panktiyaa.
touching poems...keep writing..
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