विदेशी धरती का कुछ ऐसा आकर्षण होता है कि एक बार आने के बाद जाना मुश्किल होजाता है .कहते हैं ये पांच सितारा जेल है .फिर भी सभी यहाँ रहना चाहते हैं .पीछे गालियाँ चौबारे बुलाते हैं , याद में सूखते हैं ताल ,नदिया पर ....
कहो तुम कब आओगे ?
कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
पनघट के
प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू
धूल बन
गलियों-गलियों भटकता रहा
हवाओं में लगी
नफरत की गाँठ खोलने
क्या तुम आओगे
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
या तुम आओगे
बहते हुये
चाँद के पानी में
या ढल के
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
कहो तुम कब आओगे ?
कहो
तुम कब आओगे
अब तो
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है
पनघट के
प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू
धूल बन
गलियों-गलियों भटकता रहा
हवाओं में लगी
नफरत की गाँठ खोलने
क्या तुम आओगे
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
या तुम आओगे
बहते हुये
चाँद के पानी में
या ढल के
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
45 comments:
सुन्दर रचना । बधाई
बहुत मार्मिक...मन को छू लेने वाले भाव हैं...। एक सुन्दर रचना के लिए बधाई।
प्रियंका गुप्ता
rachna ji
bahut sundar ,bahut hi badhiya likhti hai aap
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
bahut bahut hardik badhai swikaren is shandar vman ko chhoo lene wali pravan prama bhivykti ke liye
dhanyvaad
poonam
भावों के अति सुन्दर बिम्ब और उसकी सम्प्रेश्यता इस कबिता को उच्चतम कृति बना रही है. वाह !!
इंतज़ार को शिद्दत से शब्द दिए हैं आपने.
बहुत ही सुन्दर मन को छू लेने वाले रचना .
manoj ji priyanka ji,poonam ji,chacha ji ,shikha ji
aap sabhi ke sneh shbdon ka bahut bahut dhnyavad
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
पानी में सूरज बुझ चुका
बूढ़ा बरगद
चौपाल से कट चुका है....
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
मर्मस्पर्शी एवं भावपूर्ण काव्यपंक्तियों के लिए कोटिश: बधाई !
मुझे अपने कुछ शेर याद आ रहे हैं....
एक इबारत सुख की खातिर,
बांचे कतरन बूढ़ी आंखें ।
सपनों में देखा करती हैं,
वर्षा - सावन बूढ़ी आंखें ।
हार्दिक शुभकामनायें।
कहो कब आओगे / आपकी कविता बहुत सारी कचोट छोड़ जाती है आपकी कविताओं की यह सादगी हम सबको यथार्थ-बोध कराती है । आपकी परिपक्व , मर्मस्पर्शी कविताएँ पढ़कर मंचीय कवियों की भौण्डी तुकबन्दी कौन सुनना चाहेगा । ऐसी रचनाएँ ही बेहूदा तुकबन्दियों को किनारे कर सकती हैं । आपको मेरी हारदिक बधाई ! ऐसा ही लिखते रहिए और हम सबको उदात्त काव्य के रस-माधुर्य से दिक्त करते रहिए ।
babli ji varsha ji bhai himanshu ji bahut bahut dhnyavad
rachana
पहली दफा आपके ब्लॉग पर आना हुआ.मन अभिभूत हुआ आपके बारे में जानकर और आपकी अनुपम अभिव्यक्ति को पढकर.बहुत मार्मिक और भावुक प्रस्तुति है.आँखे नम कर रही है.
मेरे ब्लॉग पर आयें,आपका हार्दिक स्वागत है.
intazaar ki ghadiyaan jarur samaapt hongi, jab wo aayenge....
sunder rachna...
ओबामा के शब्दों में
भारत-अमेरिका की बातचीत में
फॉरेन रिटर्न का तमगा लिए
सुख-चाशनी की चन्द बूँदे
फटे आँचल में टपकाते
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
बहुत बढ़िया ...प्रासंगिक भावों से इस गहन अभिव्यक्ति लिए रचना को जोड़कर और प्रभावी बना दिया आपने.....
बहुत खूब ....शुभकामनायें आपको !!
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे? .....
कितना दर्द है
बहुत बढ़िया .
बहुत ही सुन्दर मन को छू लेने वाले रचना|
बहुत सुंदर पोस्ट बधाई |
pata nahin kab aayenge we log......
वाह क्या बात है इंतजार की हद है| खुबसूरत अहसास से सराबोर रचना, मुबारक हो....
आदरणीया रचना जी
सादर अभिवादन !
… या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
प्रतीक्षा की पराकाष्ठा को प्रतिबिंबित करती आपकी रचना के लिएहार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे
कहो कब आओगे?
शायद तभी आयेंगे !........
खूबसूरत अभिव्यक्ति
प्रतीक्षा को स्वर दे दिया है आपने.
बेहतरीन
.कहते हैं ये पांच सितारा जेल है .फिर भी सभी यहाँ रहना चाहते हैं ....
sahi kahte hain ji...
.कहते हैं ये पांच सितारा जेल है .फिर भी सभी यहाँ रहना चाहते हैं ....
ekdam sahi kahte hain ji...
I again most humbly request you to,please visit my blog.
यहाँ आना बहुत सुखद लगा बहुत सुंदर कविता रचना जी बधाई और शुभकामनाएं |
या आओगे तब
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
तब आओगे.
सच कहा रचना जी विदेश का आकर्षण अपने गांव कि सोंधी खुशबू पर भारी पद जाता है और इन्तेजार का सफर यूँ ही लंबा होता जाता है.
सुंदर कविता के मध्यम से अपने भावनाओं को शब्द दे दिए हैं.
और जाने वाला कभी लौट कर नही आ पाता ... ये मजबूरी या कुछ और है ... पता ही नही चल पाता ...
मेरे ब्लॉग पर आने और अपने विचार लिखने के लिए आप सभी की आभारी हूँ .आशा करती हूँ आप सभी का स्नेह ऐसे ही मिलता रहेगा
rachana
लाजवाब रचना
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
मन को छू लेने वाले भाव ...
बहुत सुन्दर ,ईश्वर आपके बुलाने से ही आये पर आये तो.
रचना जी,
यूँ तो आपको हिन्द-युग्म के मंच से पहचनाता हुँ और अपहले वहीं पढ़ा भी है।
घर में
ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है
पगडण्डी पर ख़ामोशी
सन्नाटे को आगोश में भींचे
सहमी चलती है
चिड़ियाँ भी अब
फुसफुसा के बोलती हैं
क्या तुम आओगे
इस डर की चुप्पी को आवाज देने
या तुम आओगे
बहते हुये
चाँद के पानी में
सन्नाटे, खामोशी, एकाकी या अकेलापन ऐसे न जाने कितने भावों को एक साथ उकेरा है, कमाल का लिखा है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
प्रभावशाली रचना ! शुभकामनायें आपको !
बहुत सुंदर... भावपूर्ण
आपकी उत्साह भरी टिप्पणी और हौसला अफजाही के लिए शुक्रिया!
man ki vedna ka satik chitran .
bahut khoob.
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जड़ों से दूर होने पर दिलों पर क्या गुजरती है
ये उनसे पूछ कर देखो जिन्होंने घर को छोड़ा है
वजह कुछ भी रही हो अपने घर से दूर जाने की लेकिन प्रवासी होने की कचोट पूरी तरह से समझने के लिए उसे महसूस करना जरुरी है. वो कहते हैं न घायल की गति घायल जाने... बस आप ने भी हर मन की बात कह दी है .
रचना, आपकी इस रचना को पढ़ कर मै अभिभूत हूँ. इसे पढ़ कर एक वाकया याद आगया, जब पंकज उधास जी ने अपनी ग़ज़ल "चिट्ठी आई है" अमेरिका में पढ़ी थी तो वहाँ बैठा हुआ हर व्यक्ति रो पड़ा था, कुछ ऐसी ही है यह रचना, इसे पढ़ कर हर आंख नम जरूर होगी.
जब चूहे कुतुर लेंगे
तुम्हारी अभिलाषाएँ
इंतजार को पूर्ण विराम लगा
करेंगीं चिर विश्राम
बूढी हड्डियाँ
bahut sunder kavita hai rachna ji badhai.
saadar
amita kaundal
एक अलग ही भाव-संसार में ले जाती आपकी कविता...
बहुत ही गहरे भाव....
हार्दिक बधाई !
bahut bhavuk kavita rachna ji ,main vaise bahut adhik kavitaen nahi likhta par jab bhi hraday me bhavna ka star badh jata he vo kavita ke roop me bah jati he kuch essi hi anubhuti hoti he aapki rachnao se,
aapne meri likhi kuch panktio ko padha unpar apne vichar diye,main iska aabhari hu.aage bhi apna margdarshan dete rahe.
dhanyvad
vijay ji ,hardeep ji ,kunwar ji ,mukesh ji amita ji ,mahendra ji satish ji ,amit ji manju ji ,sharad ji ,hemant ji
aap sabhi ka dil ki gahraiyon se shukriya.
rachana
Very beautiful words and sentiments..
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