सच जब बोलना चाहता है ,तो हजारों हाथ उसके पंख नोच धरा पर पटक देते हैं l जो सच इस दर्द को सह नहीं पाता वो दम तोड़ देता है या फिर खुद को बिकता हुआ देखता रहता हैl
सच
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
सच
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
67 comments:
सदैव प्रासंगिक रहेंगें यह विचार...... सच का यही हाल है.....उम्दा रचना
chand lafz aur vistrit bhawnayen ... nihsandeh prashansniye
बहुत सटीक ...सच को ऐसे ही दबा दिया जाता है.
प्रभावशाली पंक्तियाँ.
क्या बात है बहुत अच्छी रचना, बधाई .....
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
सटीक बात ..सुन्दर अभिव्यक्ति
सत्य की कद्र करने वाले बहुत कम हैं , बहुत सुन्दर सृजन ।
the true depiction of people who dares to go with truth in today's world.
बहुत अच्छी रचना है...। मेरी बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
sach sundar hote huye bhi laachar kyo ?,mera bhi yahi sawaal hai .rachna taarife kabil hai .
कम शब्द और करारा चोट - बहुत खूब रचना जी.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत कम शब्दों में आज के सच की दयनीय स्थिति को उजागर करती एक उच्च स्तरीय प्रस्तुति - करारा व्यंग - बहुत बहुत सुंदर
bahut khoob. sundar abhivyakti
सच की सच्ची कहानी, छोटी-सी कविता की ज़बानी.
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
बहुत ही सटीक
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
सच जब बोलना चाहता है ,तो हजारों हाथ उसके पंख नोच धरा पर पटक देते हैं l जो सच इस दर्द को सह नहीं पाता वो दम तोड़ देता है या फिर खुद को बिकता हुआ देखता रहता हैl
कितना सटीक सच है इन पँक्तिओं मे। और वाकई ये नोट कितने करामाती हैं कितना कुछ समा लेते हैं खुद मे और सच हम देख ही नही पाते। भावनात्मक सोच के लिये बधाई।
सच के साथ ये ही हुआ है
बहुत सुन्दर
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
सटीक बात.......सुन्दर अभिव्यक्ति
छोटी सी रचना है लेकिन बहुत कुछ कह देती है।
aap sabhi ka bahut bahuut dhnyavad .aap ka ek ek shbad mere liye moti hai.aur me nahi chahti ki mera koi bhi moti koye
punaha dhnyavad
rachana
वाह जी,क्या बात है .
सच की सच्ची तस्वीर
बहुत सटीक प्रस्तुति...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..
सशक्त रचना ....हार्दिक शुभकामनायें !
एवं साधुवाद !
दिल तो बहुत करता है कि सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
सच की दुर्गति का यथार्थ चित्रण आज के समाज की कलई खोल देता है ।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
वाह ..बहुत ही अच्छा लिखा है ।
प्रभावशाली पंक्तियाँ
thoughts provoking..
bahut sunder lagi laghu-kavita
bahut sunder lagi laghu-kavita......
sahi kaha aapne rachna ji.
amita kaundal
Rachna ji
आईना दिखाया है आपने इस कविता में.... सच ही कहा है
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
दिल को छूने वाली कविता.
परन्तु, मेरा मानना है की सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं.
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क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?
बाबा का अनशन टुटा !
रचना जी ,
गागर में सागर जैसी आपकी इस रचना ने मुझे भी इस विषय पर कुछ लिखने की प्रेरणा दी है। सामग्री साहित्यशिल्पी पर प्रदर्शित है। कृपया अवसर निकालकर अनुगृहीत करे। आभारी रहूँगा।
भवदीय
अशोक कुमार शुक्ला
सच का यही हाल है.....उम्दा रचना
वाह ... बहुत खूब कहा है ।
अद्भुत... बहुत सुंदर।
बहुत सटीक
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कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
बहुत गहरी...बहुत मार्मिक कविता...
चंद शब्दों में रोजमर्रा के जीवन का सच व्यक्त कर दिया....बहुत खूब.
दिस ईज़ फोर द फर्स्ट टाइम आई विजिटेड .. ऑन यौर ब्लॉग... ओवर ऑल ग्लैन्सड.... वेरी नाइज़ ब्लॉग....
थैंक्स फोर शेयरिंग....
रिगार्ड्स........
एकदम सटीक!!!
Maine sach kaha to aapke coment box men ankit hua....achchha likha hai....
बहुत सुंदर पोस्ट रचना जी बधाई |
रचना जी,
सच ने कुछ कहने की हिम्मत जुटा ली शायद यही उम्मीद की किरण है भले ही उसे कुचला गया हो लेकिन वह अपने पूरे स्वरूप में ही विद्यमान है।
सच के साथ हम भी हैं......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
rachna ji
is chhoti si kavita me bahut hi kadva sach bhi chhupa hua haii jise aapne badi hi khoobsurati ke saath prastut kiya hai .
sach -----
bahut hi badhiya
badhai
poonam
aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
meri kavita jivit kar dete hain aapke sneh shabad
gagar me saagar bhar diya. sateek lekhan.
छोटी सी क्षणिका में बहुत बड़ी बात कह गए हैं आप
bahut hi umda rachna
sach ko yuhi daba diya jata hai :)
aapke chand alfazo ne bahut kuch keh diya
__________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
bahut sundar yaha bhi aaye
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
sachchayee ko ekdam khol kar rakh di aapne.achcha kiya....
विषय-वस्तु को पात्र बना कर रचना करना अत्यंत ही कठिन होता है और इससे भी कठिन होता है कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात को कहना. दोनों ही विशिष्टताएं आपकी रचना में एक साथ परिलक्षित हैं.
गागर में सागर भर दिया है. सच का यही हालाते बयां है.
वा वाह ...वा वाह ! ! शुभकामनायें आपको !
मै सच को खोजने निकली
देखा नोटों के नीचे दबा था
प्रभावशाली पंक्तियाँ !
सच का यही हाल है....प्रभावशाली, बहुत अच्छी रचना, बधाई *****
great!!!
zabardast kataaksh....
uchch star ki behtareen saathak rachna....
kam shabd lekin bade shabd!!
बहुत सुन्दर !
सच का यही हाल है.....उम्दा रचना
रचना जी
मैने बोलने की कोशिश की थी बहुत हृदयस्पर्शी रचना है …
सच की आजकल यही हालत है …
…लेकिन कभी तो बदलेगी स्थिति , उम्मीद पर ही चल रही है दुनिया !
श्रेष्ठ लघु रचना के लिए आभार !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
एक सच यह भी है "कलावती के हिस्से का खाना भारत के भावी प्रधान मंत्री टूंग आतें हैं .".
गागर में सागर सरीखी हैं आपकी रचनाएं।
रचना जी, यह देख कर अच्छा लगा कि आप लखनऊ से ताल्लुक रखती हैं। आपसे एक आग्रह है कि ब्लॉग में कृपया फॉलोअर विजेट जोड़ लें, जिससे आपको नियमित रूप से पढने में सहुलियत हो।
मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
एकदम सही कहा आपने, आज सच की ऐसी ही दयनीय स्थिति है .
Ekdam sahi kaha aapne ...
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