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Wednesday, June 8, 2011

सच जब  बोलना  चाहता है ,तो हजारों हाथ उसके पंख नोच धरा पर पटक देते  हैं l जो सच इस दर्द को सह नहीं पाता वो दम तोड़ देता है या फिर खुद को बिकता हुआ देखता रहता हैl


सच  

मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
 टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।

67 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सदैव प्रासंगिक रहेंगें यह विचार...... सच का यही हाल है.....उम्दा रचना

रश्मि प्रभा... said...

chand lafz aur vistrit bhawnayen ... nihsandeh prashansniye

shikha varshney said...

बहुत सटीक ...सच को ऐसे ही दबा दिया जाता है.
प्रभावशाली पंक्तियाँ.

Sunil Kumar said...

क्या बात है बहुत अच्छी रचना, बधाई .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था

सटीक बात ..सुन्दर अभिव्यक्ति

ZEAL said...

सत्य की कद्र करने वाले बहुत कम हैं , बहुत सुन्दर सृजन ।

Jyoti Mishra said...

the true depiction of people who dares to go with truth in today's world.

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत अच्छी रचना है...। मेरी बधाई...।
प्रियंका गुप्ता

ज्योति सिंह said...

sach sundar hote huye bhi laachar kyo ?,mera bhi yahi sawaal hai .rachna taarife kabil hai .

श्यामल सुमन said...

कम शब्द और करारा चोट - बहुत खूब रचना जी.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत कम शब्दों में आज के सच की दयनीय स्थिति को उजागर करती एक उच्च स्तरीय प्रस्तुति - करारा व्यंग - बहुत बहुत सुंदर

Harshvardhan said...

bahut khoob. sundar abhivyakti

Bharat Bhushan said...

सच की सच्ची कहानी, छोटी-सी कविता की ज़बानी.

Vivek Jain said...

मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
बहुत ही सटीक
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Urmi said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

निर्मला कपिला said...

सच जब बोलना चाहता है ,तो हजारों हाथ उसके पंख नोच धरा पर पटक देते हैं l जो सच इस दर्द को सह नहीं पाता वो दम तोड़ देता है या फिर खुद को बिकता हुआ देखता रहता हैl
कितना सटीक सच है इन पँक्तिओं मे। और वाकई ये नोट कितने करामाती हैं कितना कुछ समा लेते हैं खुद मे और सच हम देख ही नही पाते। भावनात्मक सोच के लिये बधाई।

SANDEEP PANWAR said...

सच के साथ ये ही हुआ है

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर

संजय भास्‍कर said...

टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
सटीक बात.......सुन्दर अभिव्यक्ति

अजित गुप्ता का कोना said...

छोटी सी रचना है लेकिन बहुत कुछ कह देती है।

Rachana said...

aap sabhi ka bahut bahuut dhnyavad .aap ka ek ek shbad mere liye moti hai.aur me nahi chahti ki mera koi bhi moti koye
punaha dhnyavad
rachana

Kunwar Kusumesh said...

वाह जी,क्या बात है .

अजय कुमार said...

सच की सच्ची तस्वीर

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक प्रस्तुति...कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..

Dr Varsha Singh said...

सशक्त रचना ....हार्दिक शुभकामनायें !
एवं साधुवाद !

BrijmohanShrivastava said...

दिल तो बहुत करता है कि सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता

सहज साहित्य said...

सच की दुर्गति का यथार्थ चित्रण आज के समाज की कलई खोल देता है ।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच

Anonymous said...

टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था
पूछा- ये कैसे हुआ ?
कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।

वाह ..बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

रविकर said...

प्रभावशाली पंक्तियाँ

neelima garg said...

thoughts provoking..

manu said...

bahut sunder lagi laghu-kavita

manu said...

bahut sunder lagi laghu-kavita......

amita kaundal said...

sahi kaha aapne rachna ji.
amita kaundal

Pawan Kumar said...

Rachna ji
आईना दिखाया है आपने इस कविता में.... सच ही कहा है

मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था

Manoranjan Manu Shrivastav said...

दिल को छूने वाली कविता.
परन्तु, मेरा मानना है की सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं.
--------------------------------------------
क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?

बाबा का अनशन टुटा !

डॉ0 अशोक कुमार शुक्ल said...

रचना जी ,
गागर में सागर जैसी आपकी इस रचना ने मुझे भी इस विषय पर कुछ लिखने की प्रेरणा दी है। सामग्री साहित्यशिल्पी पर प्रदर्शित है। कृपया अवसर निकालकर अनुगृहीत करे। आभारी रहूँगा।
भवदीय
अशोक कुमार शुक्ला

Kunwar Kusumesh said...

सच का यही हाल है.....उम्दा रचना

सदा said...

वाह ... बहुत खूब कहा है ।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अद्भुत... बहुत सुंदर।

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सटीक
-----------------
कल 17/06/2011 को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .

धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बहुत गहरी...बहुत मार्मिक कविता...
चंद शब्दों में रोजमर्रा के जीवन का सच व्यक्त कर दिया....बहुत खूब.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दिस ईज़ फोर द फर्स्ट टाइम आई विजिटेड .. ऑन यौर ब्लॉग... ओवर ऑल ग्लैन्सड.... वेरी नाइज़ ब्लॉग....

थैंक्स फोर शेयरिंग....

रिगार्ड्स........

Udan Tashtari said...

एकदम सटीक!!!

Amrita Tanmay said...

Maine sach kaha to aapke coment box men ankit hua....achchha likha hai....

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत सुंदर पोस्ट रचना जी बधाई |

मुकेश कुमार तिवारी said...

रचना जी,

सच ने कुछ कहने की हिम्मत जुटा ली शायद यही उम्मीद की किरण है भले ही उसे कुचला गया हो लेकिन वह अपने पूरे स्वरूप में ही विद्यमान है।

सच के साथ हम भी हैं......

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

पूनम श्रीवास्तव said...

rachna ji
is chhoti si kavita me bahut hi kadva sach bhi chhupa hua haii jise aapne badi hi khoobsurati ke saath prastut kiya hai .
sach -----
bahut hi badhiya
badhai
poonam

Rachana said...

aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
meri kavita jivit kar dete hain aapke sneh shabad

अनामिका की सदायें ...... said...

gagar me saagar bhar diya. sateek lekhan.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

छोटी सी क्षणिका में बहुत बड़ी बात कह गए हैं आप

Manish Khedawat said...

bahut hi umda rachna
sach ko yuhi daba diya jata hai :)
aapke chand alfazo ne bahut kuch keh diya
__________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||

Admin said...

bahut sundar yaha bhi aaye

mridula pradhan said...

कहने लगा -
मैने बोलने की कोशिश की थी ।
sachchayee ko ekdam khol kar rakh di aapne.achcha kiya....

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

विषय-वस्तु को पात्र बना कर रचना करना अत्यंत ही कठिन होता है और इससे भी कठिन होता है कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक बात को कहना. दोनों ही विशिष्टताएं आपकी रचना में एक साथ परिलक्षित हैं.

रचना दीक्षित said...

गागर में सागर भर दिया है. सच का यही हालाते बयां है.

Satish Saxena said...

वा वाह ...वा वाह ! ! शुभकामनायें आपको !

Shabad shabad said...

मै सच को खोजने निकली
देखा नोटों के नीचे दबा था

प्रभावशाली पंक्तियाँ !

amrendra "amar" said...

सच का यही हाल है....प्रभावशाली, बहुत अच्छी रचना, बधाई *****

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

great!!!

zabardast kataaksh....

uchch star ki behtareen saathak rachna....

kam shabd lekin bade shabd!!

virendra sharma said...

बहुत सुन्दर !

संजय कुमार चौरसिया said...

सच का यही हाल है.....उम्दा रचना

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

रचना जी


मैने बोलने की कोशिश की थी बहुत हृदयस्पर्शी रचना है …
सच की आजकल यही हालत है …

…लेकिन कभी तो बदलेगी स्थिति , उम्मीद पर ही चल रही है दुनिया !
श्रेष्ठ लघु रचना के लिए आभार !

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

virendra sharma said...

एक सच यह भी है "कलावती के हिस्से का खाना भारत के भावी प्रधान मंत्री टूंग आतें हैं .".

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गागर में सागर सरीखी हैं आपकी रचनाएं।


रचना जी, यह देख कर अच्‍छा लगा कि आप लखनऊ से ताल्‍लुक रखती हैं। आपसे एक आग्रह है कि ब्‍लॉग में कृपया फॉलोअर विजेट जोड़ लें, जिससे आपको नियमित रूप से पढने में सहुलियत हो।

Anonymous said...

मै सच को खोजने निकली
देखा ,नोटों के नीचे दबा था
कहीं झूठ की चाकरी कर रहा था
तो कहीं ,
टूटी झोपडी के कोने में
घायल पड़ा था

एकदम सही कहा आपने, आज सच की ऐसी ही दयनीय स्थिति है .

Dr.Bhawna Kunwar said...

Ekdam sahi kaha aapne ...