सूरज ने मई जून में मिले लोगों के तानो से परेशान होकर जो अपने किवाड़ बंद कर लिए .घुन्ध आकाश के आँगन से निकल घरती पर पसर गई .ठंढ हाथ रगडती हुई स्वेटर पहन इतराती घूमने लगी ऐसे में कहीं कोई स्वयं को जीवित रखने के लिए कर रहा था प्रार्थना कुछ टुकड़े कम्बल के लिए .पर सुनी जाती है दुआ कब गरीबों की ................................
मौसम ने ओढ़ी
शीत की चूनर
पारा नीचे गिरता गया
छोटू ने पानी डाल
कोयले की आग बुझाई
तो शहर
लिपट गया कोहरे में
ठंढ खुद इतनी ठंढी हुई
के बैठ गई उकडू
जलते अलाव के पास
सूरज ने बढाया घर का तापमान
चाँद ने रजाई ओढ़ी ली
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट
कपड़ों की गठरी बने लोग
चल रहे थे
कम कर के शरीर का क्षेत्रफल
धुंध की महक वाली हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत
मौसम ने ओढ़ी
शीत की चूनर
पारा नीचे गिरता गया
छोटू ने पानी डाल
कोयले की आग बुझाई
तो शहर
लिपट गया कोहरे में
ठंढ खुद इतनी ठंढी हुई
के बैठ गई उकडू
जलते अलाव के पास
सूरज ने बढाया घर का तापमान
चाँद ने रजाई ओढ़ी ली
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट
कपड़ों की गठरी बने लोग
चल रहे थे
कम कर के शरीर का क्षेत्रफल
धुंध की महक वाली हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत
42 comments:
रचना जी,.बहुत खुबशुरत अच्छी पन्तियाँ बढ़िया पोस्ट,.....
मेरे नए पोस्ट के लिए-काव्यान्जलि ...: महत्व .....
प्रकृति के आँगन में खेलते ठण्ड की अटखेलियों और पीडाओं को सहते असहायों की व्यथा को व्यक्त करती काव्य जगत के हवन में सार्थक आहुति !!
बहुत उम्दा और सामयिक कविता |
बहुत उम्दा और सामयिक कविता |
रचना जी,बहुत उम्दा कविता
ओह , हृदयस्पर्शी .... सचमुच यही तो होता है.....
atyant hi samvedansheel......
बहुत खुबसूरत भावपूर्ण रचना ..बधाई रचना जी....
उफ़...शुरुआत में गुनगुनी धूप सी रचना अंत में मार्मिक हो गई.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति.
rachnaji very nice lines,sheetkal per aadharit shandar pakhtiyan
maine bhi hindi kavita likhna suru kia hai.....aap jaise kuch hindi kavi/kaviyetre se apne kavita batna chaunga aur perspar aapke gyan se sekhna ka ikchuk hun.
Rohit
meri pratham kavita
dhanyawad.
ठण्ड का सिहरन भर देने वाला चित्रण । रचना भाषा की धनी है । बेहतर भाषा की गुणवत्ता ही कवि को सामान्य अभिव्यक्ति से अलग करती है । भावों की गहराई पाठक को रससिक्त कर देती है।
ठिठुरते दम तोड़ते लोग, ठिठुरती सुबकती कविता ...
ठण्ड का अहसास कराती सुंदर प्रस्तुति,....मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे
एक बहुत ही व्यथित करने वाले विषय पर एक खूबसूरत रचना...। मेरी बधाई...।
gahri abhivyakti...
gahri abhivyakti...
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट
'मा बिलकुल ऎसी ही तो थी
बुने हुए उस के कुछ स्वेटर
उसकी याद दिला जाते हैं
पलकों को नाम कर जाते हैं'
यादों की एल्बम से झांकता एक चित्र ...
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत ...
Bahut Ji lajawab .... Sardi ko naye ehsaas mein piro diya ...
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत
मन को छू गई आपकी यह रचना
aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
rachana
ओह! ठंड का कहर सहना मुश्किल हो जाता है.
बहुत ही सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.
आभार.
आनेवाले नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वीर हनुमान का बुलावा है आपको.
SUNDAR POST KE LIYE BADHAI RACHNA JI ....SATH HI ABHAR.
namaskar rachna ji , bahut hi sunder .......shabdo ka roop bahut hi suhana tha , prakruti ka varnan .....bahut umda post. har shabd sunder dhago se bandha huya.....badhai swikar karen.
happy new year.
नई कविता के इंतज़ार के साथ ,
नव वर्ष की शुभकामनायें
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
Nav Varsh pr apko sadar badhai Rachana ji ..... ak sundar rachana ke liye abhar.
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट
वाह! बहुत सुन्दर कल्पना!!
अंतिम पंक्तियाँ मन को छू गई .....बहुत बढ़िया
अच्छे शब्द, गहरे भाव ...सार्थक रचना...बधाई
नव वर्ष की शुभ कामनाएं
नीरज
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट
इतनी ठण्ड में आपकी कविता गर्मी दे रही है ..बहुत खूबसूरत रचना
आज अचानक आपका ब्लॉग दिखा..बहुत सुन्दर...आप,आपका ब्लॉग,आपकी उपलब्धियां और सबसे ऊपर आपकी रचनाये..
बधाई.
बहुत बढ़िया रचना !
आभार !
बहुत सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
आपका समर्थक बन गया हूँ आप भी फालोवर बने
तो मुझे खुशी होगी,...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । एक-एक शब्द समवेत स्वर में बोल रहे हैं । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...
दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
● Meri Lekhani, Mere Vichar..
.
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........
thanks a lot for following my blog...
waiting for your new poetry...
regards.
बहुत सुंदर रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....
दिल से निकले उच्छवास ही किसी कविता को पूर्णता प्रदान करते हैं । आपकी हर प्रस्तुति अच्छी लगती है।
मेरे ने पोस्ट "तसलीमा नसरीन" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
Bahut marmsparshi rachna..
धुंध की महक वाली हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत
......न जाने कितने इस ठण्ड की बलि चढ़ते हैं ...अत्यंत संवेदनशील रचना ......
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