'एड्स 'ये मेरा विषय नहीं है पर फिर भी लिखा .पता नहीं अपनी बात कहने में सफल हुई की नहीं .अब आप ही बताइये तो पता चले
तुमने कहा
----------------------
तुमने कहा
सूरज की किरण
ओढ़ने के बाद भी
तुमको गर्मी न मिली
चांदनी की
मखमली छाँह
तुम्हे शीतलता न दे सकीं
तुमने कहा
मेरा एक विचार भी
तुम्हे ऊर्जा देता है
तुम्हारी छत पे
उतरता है चाँद
और तुम्हारा घर
मेरी खुशबु से भर जाता है
तुमने कहा
बर्षों बाद लौट रहा हूँ
उस हवा की तरह
जो तुम्हारे बालों को छेड़ती है
उस धूप की तरह
जो तुम्हारे बदन को छू कर
और भी चमकीली हो जाती है
तुम आये
तुमने कहा
तुम्हारा प्यार अकेला है
उसे मुझमे पनाह चाहिए
और मैने
उसे अपना सब कुछ दे दिया
तुमने कहा
बहुत कुछ
पर ये नहीं कहा
के तुम्हारे प्यार में ज़हर है ,
तुम्हारी बेवफाई
कीटाणु बन कर दौड़ रही है लहू में l
देखो अब
तुम्हारे प्यार को
पनाह देने की चाह में
मर रही हूँ मै
तुमने कहा
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तुमने कहा
सूरज की किरण
ओढ़ने के बाद भी
तुमको गर्मी न मिली
चांदनी की
मखमली छाँह
तुम्हे शीतलता न दे सकीं
तुमने कहा
मेरा एक विचार भी
तुम्हे ऊर्जा देता है
तुम्हारी छत पे
उतरता है चाँद
और तुम्हारा घर
मेरी खुशबु से भर जाता है
तुमने कहा
बर्षों बाद लौट रहा हूँ
उस हवा की तरह
जो तुम्हारे बालों को छेड़ती है
उस धूप की तरह
जो तुम्हारे बदन को छू कर
और भी चमकीली हो जाती है
तुम आये
तुमने कहा
तुम्हारा प्यार अकेला है
उसे मुझमे पनाह चाहिए
और मैने
उसे अपना सब कुछ दे दिया
तुमने कहा
बहुत कुछ
पर ये नहीं कहा
के तुम्हारे प्यार में ज़हर है ,
तुम्हारी बेवफाई
कीटाणु बन कर दौड़ रही है लहू में l
देखो अब
तुम्हारे प्यार को
पनाह देने की चाह में
मर रही हूँ मै
17 comments:
रचनाजी आपकी रचना गहरे पैठ गयी...और सफलता ...आप खुद ही अनुमान लगा लीजिये ..!!!
दिल को छू हर एक पंक्ति....
Heart touching lines
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!दिल को छू गई.
सच कहा....इस व्याधि ने बहुतों को सज़ा दी है जिनकी कोई ख़ता नहीं.....
रचना जी , आपकी इस कविता में कितनी गहराई और सचाई है , एक-एक शब्द पढ़ने वाले को साथ लिए चलता है, आज का सच , न जाने कितने लोग इस से पीड़ित हैं।
दिल को छू गई ये कविता और बार बार पढ़ी।
बहुत बधाई !
हरदीप
हर पंक्ति दिल को छूते हुई ......
कैसे दर्द बताते लोग !!
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
वाह...उत्तम...इस प्रस्तुति के लिये आप को बहुत बहुत धन्यवाद...
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
वाह ,
अंत में जो भी कहा कम कहा !!
सुन्दर प्रस्तुति...भावपूर्ण....
Wah sateek likha
कितना झूठा था वो अकेला... प्यार लिया पनाह लिया और बदले में पल पल की मौत दे गया. बहुत उम्दा रचना.
मन के उल्लास और अंत मेँ इक अनकही पीडा को व्यक्त करती सुंदर भाव अभिव्यक्ति
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