मसर्रत का रिश्ता दर्द में न तब्दील हो जाये
जाना है हम को मालूम है फिर भी
ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें
खुली न खिड़की न खुला दरवाजा कोई
मदद के लिए वहां बहुत देर हम चिल्लाये
रूह छलनी जिस्म घायल हो जहाँ
जशन उस शहर मे कोई कैसे मनाये
लुटती आबरू का तमाशा देखा सबने
वख्ते गवाही बने धृतराषटृ जुबान पे ताले लगाये
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
6 comments:
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
बहुत खूब ...अच्छी गज़ल
लुटती आबरू का तमाशा देखा सबने
वख्ते गवाही बने धृतराषटृ जुबान पे ताले लगाये bahut hi dardmai,samaaj per achcha byang karati hui saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
जाना है हम को मालूम है फिर भी
ख्वाहिश ये के चलो आशियाँ बनायें
bahut sunder lika hai ...!!
bahut gaharayi hai aapke lekhan me ...
seedhe hriday se nikle hue udgar hain ....!!
badhai.
रचना जी नमस्कार, सुन्दर पंक्ति लुट्ते आबरू का तमाशा देखा---------------------
चूल्हा जलने से भी डरते हैं यहाँ के लोग
के भड़के एक चिंगारी और शोला न बन जाये
धो न सके यूँ भी पाप हम अपना दोस्तों
गंगा में बहुत देर मल-मल के हम नहाये
BEAUTIFUL LINES.
लुटती आबरू का तमाशा देखा सबने वख्ते गवाही बने धृतराषटृ जुबान पे ताले लगाये bahut hi dardmai,samaaj per achcha byang karati hui saarthak rachanaa.badhaai sweekaren. please visit my blog.thanks.
Post a Comment