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Sunday, April 27, 2008

अमेरिका में माँ

अमेरिका में माँ



माँये जब कुछ अलग करना चाहती हैं
तो आँखे हमारी क्यो आश्चर्य से भर जाती हैं

उधरते रिश्तों की सिवन को ,
चुप चाप सीती जाती है ..
कर्तव्य करती जीवन भर ,
अधिकारों का कब सोचती है.
सब की खुशियों के लीये स्वयं कांटो पे चलती है .
पर छालो पे अपने जब वो मरहम लगाती है
तो आँखें हमारी क्यो आश्चर्य से भर ाती हैं.

तो क्या जो पानी मे थोड़ा सा खेल लिया
बड़े से झूले पे जी भर के झूल लिया
सब के लिया जीती रही जीवन भर
तो क्या आज जो कुछ पल अपने लिए जी लिया
औरों की कही करती रही सदा
आज अपनी कही जो करना चाहती है
तो आँखें हमारी क्यो आश्चर्य से भर जाती हैं.

कभी सिन्दूर कभी ममता की कसौटी पे कसी जाती है.
पलके झुका हर पीडा सह जाती है
आंसू अपने सब से छुपाती है
और सदा मुस्कुराती है
आज यदि हमे वो आपनी चाहते बताती है
तो आँखे हमारी क्यों आश्चर्य से भर जाती हैं

माँ सहनशीलता की मूर्ती कही जाती है
सहते सहते मूर्ती ही हो जाती है
मन मे उसके कंही एक बंद कोना है
ये कोा ही शायद उसका अपना होना है
छुपी इसमे एक छोटी सी बच्ची
जब चुपके से झांकती है
आँखे हमारी क्यों आश्चर्य से भर जाती है

माँ जब यहाँ से चली जाती है
थोड़ा यहाँ भी रह जाती है
आपनी हँसी महक यंही छोर जाती है
उसके बनाये बेसन के लडू जब मै खाती हूँ
माँ याद बुत याद आती है
तब आँखे हमारी आश्चर्य से नही आंसू से भर जाती हैं


1 comment:

Rachana said...
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