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Sunday, September 27, 2009

खामोशी

आवाज़ मिलती है अंदाज मिलता नहीं
दूर तक राहों में चिराग कोई जलता नहीं    
पानी में है शोले और हवाएं नफरत की
फूल चाहत का अब कोई खिलता नहीं
कुरेद्तें है ज़ख्म हरा करने को
चाक   जिगर अब कोई सिलता नहीं
उस बस्ती में इतजार का है मतलब क्या
लाख चीखने पर भी दरवाजा जहाँ खुलता नहीं
कुछ यूँ बेनूर हुए है गाँव हमारे
के पत्ता भी अब कहीं खिलता नहीं
देती रही  माँ देर तक आवाजें उस को
जाने वाला कभी रुकता नहीं  नहीं

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