आवाज़ मिलती है अंदाज मिलता नहीं
दूर तक राहों में चिराग कोई जलता नहीं
पानी में है शोले और हवाएं नफरत की
फूल चाहत का अब कोई खिलता नहीं
कुरेद्तें है ज़ख्म हरा करने को
चाक जिगर अब कोई सिलता नहीं
उस बस्ती में इतजार का है मतलब क्या
लाख चीखने पर भी दरवाजा जहाँ खुलता नहीं
कुछ यूँ बेनूर हुए है गाँव हमारे
के पत्ता भी अब कहीं खिलता नहीं
देती रही माँ देर तक आवाजें उस को
जाने वाला कभी रुकता नहीं नहीं
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