भैया
काश तुम समझ पाते
पापा की झिड़कियों मे था
तुम्हारा ही भला
उनके गुस्से मे छुपे
प्यार को जो देख पाते
तो शायद
तुम घर छोड़ के नही जाते
पापा के ठहाकों से
जो गूंजता था घर कभी
आज उनकी
बोली को तरस जाता है
तुम्हारे कमरे मे
बैठे न जाने क्या
देखते रहते हैं
अकेले मे कई बार
बाते करते हैं
पापा अब बुझ से गए हैं
उनकी डाट को
गांठ बाँध लिया
पर न देखा की
तुम्हारी सफलता को
मेरे बेटे ने किया है
बेटे को मिला है
कह के
सब को कई बार बताते थे
तुम्हारे सोने के बाद
तुम्हें कई बार
झाक आते थे
क्यों नही
देखा तुम ने
के खीर पापा कभी
पूरी कटोरी नही खाते थे
तुम्हारी पसंद के
फल लाने
कितनी दूर जाते थे
आपने वेतन पे लिया कर्ज
तुम्हारी मोटर साईकिल लाने को
काम के बाद भी किया काम
तुम्हें मुझे ऊँची शिक्षा दिलाने को
तुमने उन्हें दिया
मधुमेह ,उच्च रक्तचाप ,
छुप के रोती
आंखों को मोतिया
लेली उनकी मुस्कान
उनकी बातें
उनका गर्व से उठा सर
और सम्मान
यदि तुम ये सब जानते
तो शायद नही जाते
आजो
इस से पहले
के कंही देर न हो जाए
पितृ दिवस पे तो पिता को
बेटे का उपहार दे जाओ
तुम आजो
7 comments:
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने !
हिन्दीकुंज
aap ka dil se dhnyavad
rachana
Shabdoon ki ye mala
Har bhaiya ke liye
Baisakhi se kam nahi
Pyari bitia
tumhare ye panktiyaan
Rakshabandhan se kam nahi...
mere blog par "Rakshabandhan" padhiye aur tab bhaiye ke naam ek naya sandesh likhiye....Rachna ji..aap bahut pratibhashalini hain
really you are very expressive what you want to say by your poem
kavya me shabdon ki jagah bhavnao ko piroya he aapne bahut sundar
aap sabhi kabut bahut dhnyavad
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