ठण्ड की सिमटी रातों में शब्दों को विस्तार मिलता है और वो भावनाओं के पख लगा उड़ने लगते हैं उन्हीको पकड़कर कविता में ढाल दिया है-
1.
चाहत की गर्मी से
पिघले थे अरमान
और धुंआ
खोहरा बन छा गया था
उसकी कालिख
दिल के दीवारों पर
आज भी दस्तक देती है
2.
हफ्ते भर
घर में बंद रहने के बाद
सूरज ने खिड़की खोली
ठण्ड में सिकुड़ी एक किरण
पड़ी जो बर्फ पर
स्वयं उसकी आँख चुंधिया गई
वो ढुंढने लगा
एक टुकड़ा बादल
3.
ठंढा सफ़ेद हवा का झोका
मेरी हड्डियों को
गुदगुदा गया
सुनाई दी एक आवाज तभी
बेटा स्वेटर पहन लो
लग जाएगी ठण्ड
औए मैने जैकेट उठा ली
4.
सर्द कोहरे को ओढ
ठिठुरता गुलाब
ढूंढ़ रहा था
अपनी महक ,
अलसाई पंखुड़ियों में शबनम
और अपना वजूद
तभी क्रूर हाथों ने
उसे डाली से अलग कर
खोज को विराम देदिया
4.
धुन्ध को ओढ़ मै
कई दिनों से
ढूंढ़ रही थी सूरज को
आकाश के किनारे
एक कराह सुनी
देखा तो सूरज घायल पड़ा था
पूछने पर बोला
तानो और गलियों से ज़ख़्मी हूँ
जो लोगों ने
गर्म मौसम मे दिए थे मुझे
5.
पिछली सर्दी मे
हथेली की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते
6.
तुम्हारी यादों की सिहरन
जो मुझमे उतरी
ओस मे डूबे गुलाब
तुम्हारे सपनो पर रख आई
उनकी खुशबु से
आज भी मेरी हथेलियाँ महक जाती है
7.
हमारे रिश्ते की म्रत्यु पर
भिजवाये थे तुमने
कुछ बर्फ के फूल
उन्ही फूलो की कब्र पर
आज धुन्ध ने पैहरे बैठाएं हैं
18 comments:
प्रिय बहन आपकी ये दो कवियाएँ मर्म को छू लेती हैं6 पिछली सर्दी मे
हथेली की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते 7
तुम्हारी यादों की सिहरन
जो मुझमे उतरी
ओस मे डूबे गुलाब
तुम्हारे सपनो पर रख आई
उनकी खुशबु से
आज भी मेरी हथेलियाँ महक जा
-सभी पंक्तियों की वाग्विदग्धता देखते ही बनती है ।
रचना दीदी !!
आपकी कवितायेँ .. मैंने पढ़ीं .. मेरे मिसेज ने उन्हें डायरी में लिख लिया है..:)
आपकी कवितायेँ अन्य हिंदी प्रेमियों के मध्य आयें , इसके लिए ..आप ब्लॉगप्रहरी से जुड़ें. http://blogprahari.com
kanishka ji aapka bahut bahut dhnyavad
rachana
himanshu ji aapka bahut bahut dhnyavad
rachana
blog banaane ke liye bahut bahut badhaayi rachanaa ji...
blogging shuru karne ke liye bahut bahut badhaayi rachna ji
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
Bahut achchi panktiyan,
Saadar
Madhuresh
ओस मे डूबे गुलाब
तुम्हारे सपनो पर रख आई
उनकी खुशबु से
आज भी मेरी हथेलियाँ महक जाती है ... वाह!
सभी बहुत सुन्दर क्षनिकाएं हैं...
सादर बधाइयां...
पिछली सर्दी मे
हथेली की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते....dil ko chhu gai ye panktiyan...abhaar...
मौसम और संवेदनाओं का भावनात्मक और सुंदर समन्वय। प्रकाशित करने से पहले एक बार त्रुटियां देख लिया करें तो और मज़ा आ जाएगा। जैसे कोहरा का खोहरा हो गया है, पहरे का पैहरे, गालियों का गलियों, आदि। आशा है अन्यथा न लेंगी
बेहतरीन पंक्तियाँ।
सादर
bahut umda kshanikayen.swagat hai aapka blog jagat me.
हमारे रिश्ते की म्रत्यु पर
भिजवाये थे तुमने
कुछ बर्फ के फूल
उन्ही फूलो की कब्र पर
आज धुन्ध ने पैहरे बैठाएं हैं …………उफ़ …………क्या कहूँ अब ?बेहद उम्दा रचनायें।
पिछली सर्दी मे
हथेली की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते
क्या कहना है इन भाव कणिकाओं का विचार की डालियों का .
पिछली सर्दी मे
हथेली की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते
Rachna ji ye panktiyan sheere se dil me utar gayin...bhut sundar..bhut komal!!
हमारे रिश्ते की म्रत्यु पर
भिजवाये थे तुमने
कुछ बर्फ के फूल
उन्ही फूलो की कब्र पर
आज धुन्ध ने पैहरे बैठाएं हैं
बहुत खूब ।
aapke sneh bhare shbdon ka mbahut bahut abhar.
rachana
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