सोचती हूँ यदि दर्द के काँटे न होते तो ये आँसूं कहाँ ठहरते. पीड़ा की नदी वेग से चलती जरुर पर ठिकाने नहीं मिलते. जीवन दर्द के काँटों, पीड़ा की नदी और आँसुओं की गठरी समेटे पथरीली राहों पर चलता है और फूलों की चाह रखता है . दर्द के इसी जज्बे को शब्दों ने आज पनाह दी है-
साँवली रात
की सिलवटों में
खोये रहते थे हम
और पहरे पर होता चाँद
खुल चुकी हैं
सिलवटें
अब तो ,
और घायल है चाँद
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की सिलवटों में
खोये रहते थे हम
और पहरे पर होता चाँद
खुल चुकी हैं
सिलवटें
अब तो ,
और घायल है चाँद
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सौप के खुशबू
दर्द ने
बढाया सदा हौसला मेरा
आज जो मुड के देखा
वो भी
हाथों में कांटे लिए खड़ा था
-----------------------------------------
चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे
-------------------------------------
आज फिर
उतरी है
मोहब्बत दरिया में
आज फिर डूबेगा
नाम कोई
कहते हैं
प्यार
करने वालों को
पक्के घड़े
नहीं मिलते
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दर्द ने
बढाया सदा हौसला मेरा
आज जो मुड के देखा
वो भी
हाथों में कांटे लिए खड़ा था
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चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे
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आज फिर
उतरी है
मोहब्बत दरिया में
आज फिर डूबेगा
नाम कोई
कहते हैं
प्यार
करने वालों को
पक्के घड़े
नहीं मिलते
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23 comments:
रचना जी आज तो आपके साहित्य का भंडार मिल गया बहुत सुंदर रचनाएँ हैं एक बार पढ़ने लगो तो समय पंख लगा कर न जाने कहाँ उड़ जाता है .
हमारे संग यह भंडार बांटने पर के लिए हार्दिक धन्यवाद .
सादर
अमिता कौंडल
Wonderful...Like a Hindustani raga, this poem seeks not to "understand" but to "feel".
You are a real poetess ....
Thanks for this creation.
Satish Chacha
आज फिर
उतरी है
मोहब्बत दरिया में
आज फिर डूबेगा
नाम कोई
कहते हैं
प्यार
करने वालों को
पक्के घड़े
नहीं मिलते
बहुत अच्छा...। सोहनी-महिवाल की याद दिला दी...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
अमिता जी ,चाचा जी ,प्रियंका जी आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद आशा है कि आपका स्नेह मिलता रहेगा
"चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे"
चाँद के माध्यम से दर्द को मार्मिक अभिव्यक्ति दी
है आपने ।प्रयोग की इस सुन्दरता-
"अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला" में भाशा का टटकापन कहाँ से ढूँढ़ लाइ हो रचना जी ? भाव और भाशा से समृद्ध यह कविता आध्यन्त बाँधे रखती है । बहुत बधाई !
बहुत ही मार्मिक दर्शन,सारी रचनाये बहुत अच्छी हैं
अक्षय-मन
wah.bahut achcha likhtin hain aap.....
चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे
सुंदर भाव ...
मार्मिक रचनाएँ!
बधाई !
himanshu ji ,hardeep ji ,marula ji,akshy ji
aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
Rachna ji, hamesha ki tarah aapki kavita lajavab hai.padkar bahut accha lag raha hai ab jab chaha(emotional bank) tab acchi kavitayen milengi. heartiest Congratulations!!! best wishes always............
साँवली रात
की सिलवटों में
खोये रहते थे हम
और पहरे पर होता चाँद
खुल चुकी हैं
सिलवटें
अब तो ,
और घायल है चाँद.
हाय क्या बात है, हम तो मुरीद हो गए. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार. बहुत बधाई.
धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए. आगे भी आपका स्नेह मिलता रहे.
आज फिर
उतरी है
मोहब्बत दरिया में
आज फिर डूबेगा
नाम कोई ...
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचनाओं के लिए आपको हार्दिक बधाई।
हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही सुन्दर रचनाएँ हैं .अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
मेरे ब्लॉग पर होस्लाफ्जाई का भात बहुत शुक्रिया.
laxmi ji sharad ji rachna ji,shikha ji aap sabhi ka bhut bahut dhnyavad
rachana
सांवली रात कि सिलवटों में खोना और चाँद का पहरे पर होना ...कमाल की सोच है ..
दर्द भी कांटे लिए खड़ा था ...ओह दर्द के बाद भी कितना दर्द ..
चाँद को भी अश्कों की बरसात रास नहीं आई ..क्या बात है
दरिया में किसी का डूबना ..प्रेम करने वालों की नियति यही है की डूब जाते हैं ...
हर क्षणिका कमाल है ..बहुत सुन्दर भाव
प्यार
करने वालों को
पक्के घड़े
नहीं मिलते
बहुत खूब...
चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे
बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने चाँद की पसंद को ......आपका आभार मेरे ब्लॉग पर आकार उत्साहवर्धन के लिए आशा है आप अपना मार्गदर्शन यूँ ही प्रदान करते रहेंगे .....!
सारी रचनाये बहुत अच्छी .
bahut sunder kshanikaayen likhi hain aapne. aur kahte he na vo baat kya jo dil se na nikle...aur jab bat dil se nikalti hai aur usme dard ka sammishran ho jata hai to soundarye ka sarvottam roop hota hai rachna ka.
bahut sunder roop hai ye.
rachna ji sarvpratham mere blog par aane ke liye aapko bahu bahut badhai
dil
pahli baar me hi aapne to dil jeet liya
kamaal hai abtak yah heera kahan chupa tha jo najron me nahi aaya.
saartki saari xhanikye behad hi khoobsurat ban padi hai aur shabdo ka chayan to kamaal ka hai.mujhe yah xhanika kuchhjyada hi bha gai
चाँद
जिसे आगोश में ले
जी भर रो लेती थी
अँगुलियों की झिर्री से
कूद कर बोला
बरसात का मौसम
भाता नहीं मुझे
bahut banut badhai v dhanyvaad
poonam
खोये रहते थे हम
और पहरे पर होता चाँद//
आज फिर
उतरी है
मोहब्बत दरिया में
आज फिर डूबेगा
नाम कोई
कहते हैं
प्यार
करने वालों को
पक्के घड़े
नहीं मिलते
Amazingly beautiful !! अभिनव सोच के साथ भाषा और भाव दोनों का सौन्दर्य अप्रतिम है...
बहुत सुन्दर नज्मे.. दिल को छूती हुई और दिल में समाती हुई .. आपको बधाई
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
मोहतरमा रचना जी
सादर
आपकी कवितायेँ पढ़ी मानव का दुःख दर्द क्या होता है बाखूबी झलकता है
आप अपने भावों को बहर(मीटर) में कहने का प्रयास करें आपकी रचनाओं में चार चाँद लग जाएंगे!
फ़ाईलुन , मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन, मुफ़ाईलुन
2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
यदि काँटे न चुभते दर्द के यह सोचती हूँ मैं
आँसूं हैं जो पीड़ा के चमकते कैसे पलकों पे
जीवन दर्द का बोझा समेटे आस की गठरी
चाहत में ये फूलों की चला पथरीली राहों पे
पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र "
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