ताज्ज़मुल चाचा ,रहीमा फूफी ,सकीना आपा नाजाने ऐसे कितने ही रिश्ते ईद पर यादों की गिरह खोल बाहर आते हैं और मेरी हथेली पर ईदी रख कर कहीं गुम हो जाते हैं .आने लगती हैं मुझे सेवईयों की खुशबू ,सुनाई देती है चूड़ियों की खनक और शीर खोरमा की याद मेरी स्वाद कलिकाओं को भिगो जाती है .जब भी माँ को फोन करो बिना पूछे बता ही देती है सकीना आपा की शादी होगई ,रहीमा फूफी बीमार है और ताज्जमुल चाचा .......................................................................
ईद मेले में
मै हरी चूड़ियाँ बन के बिका
तुम आयीं
और लाला चूड़ियाँ खरीद कर चली गईं
तुमको तो
हरा रंग पसंद था न ?
------------------------------------------
मूंद कर मेरी आँखे
पूछा था तुमने
बताओ कौन हूँ मै?
उन यादों के पल
आज भी
मेरी अलमारी में सजे हैं
तुम कभी आओ
तो दिखाऊंगा
--------------------------------------------------
अचानक
मेरे बुलाने पर
चौंक कर पलटी थी तुम
और तुम्हारे मेहँदी भरे हाथ
लग गए थे मेरी कमीज़ पर
अब हर ईद पर
मै उसको गले लगता हूँ
आज भी इनसे
गीली मेंहदी की खुशबू आती है
--------------------------------------------------------
बादल के परदे हटा के
झाँका जो चाँद ने
मुबरक मुबारक !!
के शोर से सिमट गया
सोचा ,
निकलता तो रोज ही हूँ
पर आज ..................
उसे क्या मालूम
के वो ईद का चाँद है
-------------------------------
तुमने ,
उस रोज
मेरे कानों में
हौले से कहा था
'ईद मुबारक '
अब ,
जब भी देखती हूँ ,
ईद का चाँद
खुद ही कह लेती हूँ
ईद मुबारक
-------------------------------
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
-------------------------------------
सेवईयाँ लाने
गया था बाजार वो
और ब्रेकिंग न्यूज बन गया
अब इस घर में
कभी सेवानियाँ नहीं बनती
ईद मेले में
मै हरी चूड़ियाँ बन के बिका
तुम आयीं
और लाला चूड़ियाँ खरीद कर चली गईं
तुमको तो
हरा रंग पसंद था न ?
------------------------------------------
मूंद कर मेरी आँखे
पूछा था तुमने
बताओ कौन हूँ मै?
उन यादों के पल
आज भी
मेरी अलमारी में सजे हैं
तुम कभी आओ
तो दिखाऊंगा
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अचानक
मेरे बुलाने पर
चौंक कर पलटी थी तुम
और तुम्हारे मेहँदी भरे हाथ
लग गए थे मेरी कमीज़ पर
अब हर ईद पर
मै उसको गले लगता हूँ
आज भी इनसे
गीली मेंहदी की खुशबू आती है
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बादल के परदे हटा के
झाँका जो चाँद ने
मुबरक मुबारक !!
के शोर से सिमट गया
सोचा ,
निकलता तो रोज ही हूँ
पर आज ..................
उसे क्या मालूम
के वो ईद का चाँद है
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तुमने ,
उस रोज
मेरे कानों में
हौले से कहा था
'ईद मुबारक '
अब ,
जब भी देखती हूँ ,
ईद का चाँद
खुद ही कह लेती हूँ
ईद मुबारक
-------------------------------
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
-------------------------------------
सेवईयाँ लाने
गया था बाजार वो
और ब्रेकिंग न्यूज बन गया
अब इस घर में
कभी सेवानियाँ नहीं बनती
61 comments:
अनमोल कविताएँ हैं ये रचना बहन । आपकी सोच , आपके छलकते भाव लगता समन्दर ने सँभाले थे अब तक और आपके अल्फ़ाज़ किसी टकसाल से गढ़कर निकाले गए हैं । बहुत मुबारक!!!
ईद पर बेहतरीन क्षणिकाएँ ... सब ही एक से बढ़ कर एक ..
अंतिम दो बहुत मार्मिक
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
बेहद सुंदर ...आँखें भीग गयीं पढ़कर
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
बेहद सुंदर और मार्मिक क्षणिका.
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
दुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
आखिरी दो मुक्तक बहुत जोरदार बन पड़े हैं और उन में भी खास कर 'हाथ पर गिरती दो गरम बूंदें' -
बहुत सुंदर तरीक़े से व्यक्त किया गया है मनोभावों को
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
---------------------------------eid mubarak
इतनी मार्मिक क्षणिकाएँ बहुत कम पढ़ने को मिली हैं. संवेदनशीलता से भरी हुई.
रचनाएं
काव्यमय हो, प्रभावित करती हैं
बधाई स्वीकारें .
मासूमियत भरी क्षणिकाओं ने मर्म को छू लिया.
बहुत ही गहनता से गुंथी हुयी रचनाएं...
अंतिम क्षणिका तो आवाक कर देती है...
सादर...
रचना जी ईद तो हो गयी ! बधाई ! अब गणेश चतुर्दशी की बहुत सारी शुभ कामनाये आप और आप के परिवार को !
बहुत ही सुन्दर पढ़ कर अच्छा लगा......
गणेश चतुर्थी की आपको हार्दिक शुभकामनायें
आप भी आये यहाँ कभी कभी
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
बादल के परदे हटा के
झाँका जो चाँद ने
मुबरक मुबारक !!
के शोर से सिमट गया
सोचा ,
निकलता तो रोज ही हूँ
पर आज ..................
उसे क्या मालूम
के वो ईद का चाँद है
sabhi rachnaen acchi hain,ye wali masoom hai...ek masoom sa sawal-nikalta to roz hi hoon,badhai
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली ...
bahut hi marmsparshi..dil ko chhu gayi..
बेहतरीन क्षणिकाएँ ....
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
बेहद सुंदर ...
ईद और गणेश चतुर्दशी की बधाई !
पर आज ..................
उसे क्या मालूम
के वो ईद का चाँद ....
बहुत ही भाव विहल कर देने वाली रचनाएं बचपन की इन्द्रधनुषी यादों को सहेजे हुए ..ईद की हार्दिक शुभ कामनाएं !!!
तुमने ,
sabhi rachnaayen bahut komal marmsparshi hai...
उस रोज
मेरे कानों में
हौले से कहा था
'ईद मुबारक '
अब ,
जब भी देखती हूँ ,
ईद का चाँद
खुद ही कह लेती हूँ
ईद मुबारक
bahut shubhkaamnaayen.
ईद पर बहुत सुन्दर और मार्मिक क्षणिकाएँ ... बधाई..
बहुत सुंदर क्षणिकाएं! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
भावपूर्ण अभिव्यक्ति मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
eid mubarak... maja aa gaya... agle do din uplabdh nahi rahunga... janmdin ki advance mein badhayi...
मूंद कर मेरी आँखे
पूछा था तुमने
बताओ कौन हूँ मै?
उन यादों के पल
आज भी
मेरी अलमारी में सजे हैं
तुम कभी आओ
तो दिखाऊंगा
bahut hi sundar kvita badhai aur shubhkamnayen
मूंद कर मेरी आँखे
पूछा था तुमने
बताओ कौन हूँ मै?
उन यादों के पल
आज भी
मेरी अलमारी में सजे हैं
तुम कभी आओ
तो दिखाऊंगा
bahut hi sundar kvita badhai aur shubhkamnayen
भावनाओं को खूबसूरती से प्रस्तुत करती खूबसूरत रचना |
भावनाओं को खूबसूरती से प्रस्तुत करती खूबसूरत रचना |
स्मृतियों का सुंदर कोलाज।
rachna ji
bahut hi sundar bahut bahut hi achhi lagi aapki ye saari xhanikayen .man ko moh gai bas ----
kiski tarrif karun,idke awsar par bahut hi sundar prastuti ke liye badhai tatha aapke jan-diwas ke awsar par aapko dhero shubh kamnaayen.
poonam
बेहतरीन क्षणिकाएँ बहुत -बहुत बधाई रचना जी
बेहतरीन क्षणिकाएँ बहुत -बहुत बधाई रचना जी
rachna ji
bahut bahut dil se dhanyvaad jo aapne mujhe apna bahumulya samarthan diya.
aabhaar sahit
poonam
बहुत जबरदस्त क्षणिकायें...
सेवईयाँ लाने
गया था बाजार वो
और ब्रेकिंग न्यूज बन गया
अब इस घर में
कभी सेवानियाँ नहीं बनती
-बहुत मार्मिक!!
संवेदनाओं से भरपूर है सभी क्षणिकाएं ...
एक से बढ़ कर एक ...
सेवईयाँ लाने
गया था बाजार वो
और ब्रेकिंग न्यूज बन गया
अब इस घर में
कभी सेवानियाँ नहीं बनती
हर क्षणिका गहरे अर्थ ध्वनित करती है ....आपकी रचनात्मकता को सलाम
बेहद सुंदर ...
थोडा देर से मैं यहां आ पाया हूं,
लेकिन लग रहा है कि आज ही ईद है। सच में रचना जी आपको पढना वाकई अच्छा लगता है।
संवेदनशील रचनाएँ ...
जब भी देखती हूँ ,
ईद का चाँद
खुद ही कह लेती हूँ
ईद मुबारक
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविताएं ...
सीधे सादे लफ्जों में जीवन की तल्ख सच्चाई उतर आई है।
------
चलो चलें मधुबन में....
मन की प्यास बुझाओ, पूरी कर दो हर अभिलाषा।
aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
aapka likha ek ek shbd mere liye amulya hai
rachana
रचना जी सारे मुक्तक इतने अच्छे हैं कि एक को अगर अगर बहुत अच्छा कहूँगी तो दूसरे से नाइंसाफी होगी. आपकी लेखनी चाहे कविता हो या कहानी हमेशा दिल पर दस्तक देती है. बहुत सुंदर रचना है बधाई.
सादर,
अमिता कौंडल
मैने
अब्बा के आगे
बढाया जो ईदी के लिए हाथ
गर्म मोती की दो बूंदों गिरीं
और हथेली भर गई
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
अर्थ शास्त्र ,समाज शास्त्र ,काव्य शास्त्र का सारांश.
अद्भुत !!!!
मन मग्न हो गया है आपकी कविता पढकर.
सुन्दर भावों को सहजता से सन्जोया है आपने.
मार्मिक और हृदयस्पर्शी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
bahut badiya prastuti..
haardik shubhkanayen..
aap sabhi ke sneh vachon ka bahut bahut dhnyawad
rachana
आज भी हर ईद पर
गीली हो जाती है हथेली
बहुत खूब!!
... नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं....
आपका जीवन मंगलमयी रहे ..यही माता से प्रार्थना हैं ..
जय माता दी !!!!!!
lazabab.....lekhni hai aapki.
सुन्दर पोस्ट. हार्दिक शुभकामना दुर्गा पूजा की.
बहुत सुन्दर और मार्मिक क्षणिकाएँ बधाई!
बेहतरीन रचना.. सुन्दर अभिव्यक्ति....
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ईद पर इतनी खूबसूरत क्षणिकाएं लिखीं हैं आपने रचना जी । आखरी वाली तो दिल तार तार कर गई । आपको बहुत बहुत बधाई आपकी कलम यूं ही परवान चढे ।
अर्थ अलग लगाये, मगर भावुकता तो कहीं से उभर ही आई. कौन आता है लौटकर यादों के सजाये पल को देखने.....
uff! उफ़...निःशब्द। शानदार। मुबारक़।
आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
उफ़....
शुभकामनायें !
अचानक
मेरे बुलाने पर
चौंक कर पलटी थी तुम
और तुम्हारे मेहँदी भरे हाथ
लग गए थे मेरी कमीज़ पर
अब हर ईद पर
मै उसको गले लगता हूँ
आज भी इनसे
गीली मेंहदी की खुशबू आती है
bahut sundar...
अति उत्तम रचना
रचना मै तो बस भाव-विभोर हूँ.. आपकी रचनाएँ जब भी पढ़ती हूँ... यही मनस्थिति होती है..कई-कई बार पढ़ चुकी हूँ फ़िर भी हर बार नयी सी ही लगती है. सारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक नगीने हैं.. किसी को भी दूसरे से थोड़ा कम अच्छा कहना कतई उचित नहीं होगा...
ईद के मेले में चूड़ी बन कर बिकने की कल्पना हो या अलमारी में सजे यादों के पल.. कमीज पर लगे मेंहदी के निशानों से गीली मेंहदी की खुशबू हो या ईद के चाँद का असमंजस... सब एक से बढ़ कर एक अनूठी कल्पनाएँ हैं जो दिल में कहीं गहरे तक उतर जाती हैं .. और अंत में गीली हथेली और ब्रेकिंग न्यूज तक आते आते तो आपने बस रुला ही दिया... इतनी सुद्नर भावभीनी रचनाओं के लिए प्रशंसा करने लायक शब्द नहीं मेरे पास. ईश्वर आपकी लेखनी को ऐसे ही लाखों-लाख तोहफों से नवाज़े... ईद मुबारक
सादर
मंजु
bahut marmik or bhavpoorna rachna ! mujhe bhi apne bachpn ki eid yad a gyi ........dhnyawad mujhe wo yaaden yaad dilane k liye.........ati uttam :)
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