स्त्री अपने सिन्दूर के लिए टुकड़े टुकड़े बिखरे बादल को बटोर कर साया कर देती है सूरज अपनी गति कभी भी बदले धूप को अपने आँचल में समेट अँधेरे पथ को उजाले से भर देती है .स्नेह की दरिया आँगन में बहाने को नाजाने कितने व्रत उपवास रखती है .वो पूजती है तुम्हारे एक एक शब्द को ,तुम्हारे अनुसार ढल कर तुम जैसी बन जाती है और तुमको पता भी नही चलता .
करवा चौथ आने को है उसी स्त्री के स्नेह रस में सजी एक पुरानी कविता आप सभी के सामने रखी है
करवा चौथ आने को है उसी स्त्री के स्नेह रस में सजी एक पुरानी कविता आप सभी के सामने रखी है
अपने प्रेम को लिखने के लिए
शब्द ढूंढे
पर छोटे लगे
अलंकर ,संजा ,रस सब बहते रहे
फिर भी कुछ अधूरा रहा
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी होगई
=======================
भावनाएं
जो उभरती है सिर्फ तुम्हारे लिए
सूरज में झुलसती ,बर्फ में पिघलती
बरसात में बहती है
पर तुम्हारी बांहों के लंगर में समां
शांत होजाती है
महकने के लिए
------------------------------------------------
प्रेम रस से सीचती हूँ
अपने रिश्तों की जड़ें
तुम्हारे समर्पण से
वो गहरी, मजबूत हो जाती हैं
संबंधो के वट वृक्ष को थामने के लिए
===================================
घटाओं से चुरा ,
कुछ बूंदें
तुमने रख दीं मेरे आँचल में
मैने पल पल समेटा उन्हें
और अंतर घट तक तृप्त हो गई
=====================================
कागज को ले हाथों में
मै सोचती रही तुम्हें
खोला तो देखा
उसपर लिखा था
प्रेम
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प्रेम दरिया में बहते हुए
हम आये इतनी दूर
पीड़ा के दंश से
हर पल बचाया मुझे
पर तुम्हारे पांवों में छाले थे
और ज़ख़्मी थे हाथ
=========================
55 comments:
प्रेम पगी कविता.सही मौके पर बांटा आपने.
सुंदर और भावपूर्ण क्षणिकाएँ. बहुत अच्छी लगीं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार
behad pyari......pyar bhari.
bhut sunder prem abhivyakti...mauka bhi sahi,sabhi rachnaye acchi lagi.
प्रेम रस से सीचती हूँ
अपने रिश्तों की जड़ें
तुम्हारे समर्पण से
वो गहरी, मजबूत हो जाती हैं
संबंधो के वट वृक्ष को थामने के लिए
बहुत सुंदर .... आपने हर स्त्री के मन के भावों को शब्द दे दिए......
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रेममयी रचना आभार
प्रेम सुलभ मन की वाहक नारी जब कोई रचना गढ़ती हैं तो उस से स्नेह का झरना झर-झर कर के बहता ही है। बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए।
गुजर गया एक साल
हर क्षणिका लाजवाब ...
प्रेम दरिया में बहते हुए
हम आये इतनी दूर
पीड़ा के दंश से
हर पल बचाया मुझे
पर तुम्हारे पांवों में छाले थे
और ज़ख़्मी थे हाथ ..
बहुत भावपूर्ण
बहुत ही अच्छी कविता।
सादर
सुंदर और भावपूर्ण क्षणिकाएँ. बहुत अच्छी लगीं.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार
bhaavmayee kanak kanikaaon jaisee sundar chhadikaayen .sundar srijan par subhkaamnaayen .
प्रेम-रस से संसिक्त भावपूर्ण कविताएं बहुत अच्छी लगीं।
श्रृंगार रस सही मौके पर..
आशा है करवा चौथ ख़ुशी के साथ बीती होगी..
हर पल बचाया मुझे
पर तुम्हारे पांवों में छाले थे
और ज़ख़्मी थे हाथ ..
सुन्दर भाव भरी क्षणिकाएं....
सादर आभार....
भावनाएं
जो उभरती है सिर्फ तुम्हारे लिए
सूरज में झुलसती ,बर्फ में पिघलती
बरसात में बहती है
पर तुम्हारी बांहों के लंगर में समां
शांत होजाती है
महकने के लिए
*बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
मेरी बधाई स्वीकार करें ||
भावमय करते शब्दों का संगम ।
रचना जी ,
बहुत देर के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ .....मगर जब भी आना हुआ ...साकार हुआ ...आप क्या लिखतीं हैं.........गागर में सागर .......
हर क्षणिका लाजवाब है .........बहुत सुन्दर भाव ........
यह तो कुछ खास ही है ..........
..........फिर भी कुछ अधूरा रहा
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी होगई !
वाह क्या बात है .
सुन्दर लेखन के लिए बधाई !
हरदीप
रचना जी ,
बहुत देर के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ .....मगर जब भी आना हुआ ...साकार हुआ ...आप क्या लिखतीं हैं.........गागर में सागर .......
हर क्षणिका लाजवाब है .........बहुत सुन्दर भाव ........
यह तो कुछ खास ही है ..........
..........फिर भी कुछ अधूरा रहा
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी होगई !
वाह क्या बात है .
सुन्दर लेखन के लिए बधाई !
हरदीप
प्रेम रस से सीचती हूँ
अपने रिश्तों की जड़ें
सुंदर!
बहुत सुंदर ...
शुभकामनायें आपको !
Very deeply written..
Very nice creation...
Regards..!
प्रेम सरोबर को डूबती-उतरती सुन्दर रचना..
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है...प्रेम रस से पगी हुई...सुन्दर...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका
बहुत सुंदर प्रस्तुति ....
bahut sundar aur bhavpurn rachna..
mere blag pe v aye..
सुन्दर भावपूर्ण अहसास से मन मग्न हो
गया है,रचना जी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार और
अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा.
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं
आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
नमस्कार,
आप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
धन्यवाद |
विनीत नागपाल
रचना जी आप की कृति भावों से भरी है। जितनी सुन्दर आप हैं उस से भी ज्यादा सुन्दर भाव
सार्थक रचना, सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
समय- समय पर मिली आपकी प्रतिक्रियाओं , शुभकामनाओं, मार्गदर्शन और समर्थन का आभारी हूँ.
"शुभ दीपावली"
==========
मंगलमय हो शुभ 'ज्योति पर्व ; जीवन पथ हो बाधा विहीन.
परिजन, प्रियजन का मिले स्नेह, घर आयें नित खुशियाँ नवीन.
-एस . एन. शुक्ल
दीपावली पर शुभकामनायें स्वीकार करें .
रचना जी नमस्कार, बहुत सुन्दर अह्सास भरी कविता।
भावमय रचना। शुभकामनायें।
बहुत ही उम्दा , कविता दूसरा और आखिरी पैरा बहुत ही पसंद आया . बधाई . मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद . आपकी समीक्षा मेरे लिए अनमोल है
पहली बार आपके ब्लॉग में आया,क्षणिकाएं अच्छी लगी सुंदर पोस्ट के लिए बधाई.....
ati uttam...
भावनात्मक कविता
लाजवाब प्रेमाभिव्यक्ति
rachna ji
bahut bahut achhi lagi aapki saari rachnayen .
sabhi ek se badh kar ek
prem -ras se sarobaar aapki prastuti prem may kar gai.
bahut bahut badhai
poonam
acchhaa likhti hain aap....
अपने प्रेम को लिखने के लिए
शब्द ढूंढे
पर छोटे लगे
अलंकर ,संजा ,रस सब बहते रहे
फिर भी कुछ अधूरा रहा
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी हो गई ।
आपकी रचना अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आकर मेरा भी मनोबल बढ़ाएं । धन्यवाद ।
प्रेम में भीगी रचना । शुभकामनाएँ ।
आदरणीय महोदया
इस अवसर पर आपके साथ एक महत्वपूर्ण
साहित्यिक उद्देश्य साझा करना चाहूँगा । बात यूँ है कि प्रेम की उपासक अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
क्या कहने, बहुत सुंदर।
प्रेम रस से सीचती हूँ
अपने रिश्तों की जड़ें
तुम्हारे समर्पण से
वो गहरी, मजबूत हो जाती हैं
संबंधो के वट वृक्ष को थामने के लिए
घटाओं से चुरा ,
कुछ बूंदें
तुमने रख दीं मेरे आँचल में
मैने पल पल समेटा उन्हें
और अंतर घट तक तृप्त हो गई .bhut hi expressive.
सारी क्षणिकाएं ह्रदय के कोमल ,समर्पित गहन भाव से उपजी हैं जो शब्दों में ढल कर और भी पावन हो गयी हैं !
आभार !
समय मिले तो मेरे एक नए ब्लाग "रोजनामचा" को देखें। कोशिश है कि रोज की एक बड़ी खबर जो कहीं अछूती रह जाती है, उससे आपको अवगत कराया जा सके।
http://dailyreportsonline.blogspot.com
♥
आदरणीया रचना जी
सादर सस्नेह अभिवादन !
ओह ! क्यों अब तक आपकी इस पोस्ट पर नहीं पहुंच पाया ?
इतनी सुंदर प्रेम कविताएं !
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी होगई
…आऽऽह्… ! निःशब्द हूं…
भावनाएं …
तुम्हारी बांहों के लंगर में समा'
शांत हो जाती हैं
महकने के लिए
भावनाओं की सुंदर परिणति …
प्रेम रस से सीचती हूं
अपने रिश्तों की जड़ें
ये जड़ें निरंतर गहरी हों … तथास्तु !
बूंदें
तुमने रख दीं मेरे आंचल में
मैने पल पल समेटा उन्हें
और अंतर घट तक तृप्त हो गई
प्रिय इस मान से गौरवान्वित हुए हैं … निस्संदेह !
खोला तो देखा
उसपर लिखा था
प्रेम
उत्तरोतर पुष्पित-पल्लवित होता रहे यह प्रेम !! आमीन …
साधुवाद सुंदर सृजन के लिए …
मंगलकामनाएं! शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अति उत्तम प्रेम पगी कब्यांजलि...शब्द नहीं ढूँढ पा रहा हूँ...बेहद ही भाव स्पर्शी रचना के लिये कोटि कोटि शुभ कामनाएं एवं आभार...
g Aur mai antarghat tak tript ho gyee..... vah bahut hi achhi rachna ......sadar abhar Rachna ji.
very beautiful lines......loaded with love..सचमुच सराबोर प्यार से..
शुभकामनाएं.
प्रेम रस से सीचती हूँ
अपने रिश्तों की जड़ें
तुम्हारे समर्पण से
वो गहरी, मजबूत हो जाती हैं
संबंधो के वट वृक्ष को थामने के लिए ...
Bahut bhavpurn khnikayen...apnepan se pagi..
भावपूर्ण सुंदर क्षणिकाएं,
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ,..
--"नये साल की खुशी मनाएं"--
कितना सुन्दर लिखती हैं आप रचनाजी ..एक एक शब्द गुंथा हुआ सा ..अपनी भावनाओं को कसकर थामे ...सही दिशा देते हुए .....अपनी बात आखरी लफ्ज़ तक कितनी सादगी और खूबसूरती से कह जाती हैं ...वाह !!!!!
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