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Tuesday, March 20, 2012

 उम्र ओस की बूंद सी भाप बन  उड़ जाती है ,बालों में चांदनी  सी खिलती है और घुटने के दर्द में अपना वजूद छोड़ जाती है .इसी समय सही मायने में जीवन साथी की सबसे अधिक जरूरत होती है और  उसके साथ  छूटने का डर भी सबसे ज्यादा होता है



उम्र की साँझ में
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सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
आँखों के
इन स्याह घेरे मे
मेरी गलतिओं ने पनाह ली है
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी  हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना

50 comments:

shashi purwar said...

एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना

......very nicely created poem .lovely

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर पोस्ट

my resent post

काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.

रश्मि प्रभा... said...

आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ ... jeene do in palon ko ... maa phir main maa ...

सदा said...

आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी ...अनुपम भाव संयोजन इन शब्‍दों में ...आभार ।

vandana gupta said...

बस जब साथ छूटने का डर समाता है तभी साथी की अहमियत समझ आती है। सुन्दर भाव्।

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर भावों से गूंधा है, आप ने अपने मन के उदगारों को..अनुपम रचना..

दिगम्बर नासवा said...

उफ ... सीधे दिल में उतरती है आपकी रचना ... जीवन के उस लम्हे में जीवन साथी की सच में बहुत जरूरत होती है .... बहुत ही मर्म स्पर्शीय ...

Anonymous said...

तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं...बहुत सुंदर पोस्ट

raadheji said...

bahut hi sundar rachna hai ,aap ko khub bdhaai...

shikha varshney said...

आखिरी पंक्ति में जैसे उम्र भर का सवाल छुपा है.

G.N.SHAW said...

बिलकुल सही रचना जी ! आखरी समय में संगिनी के साथ छुटने और कई डर, बहुत याद आते है !

सहज साहित्य said...

आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
रचना जी आपकी ये पंक्तियां कटु यथार्थ अहि और एक बारगी भीतर तक झकझोर जाती हैं । गज़ब की अभिव्यक्ति !

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर.
नवरात्रि की हार्दिक बधाई.

Dinesh pareek said...

बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना

कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...

http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर..........

दिल को कहीं छू गयी...

जाने कैसे आपकी पोस्ट का अपडेट आया नहीं...
क्षमा...
आपको नव संवत और चैत्र नवरात्र की शुभकामनाएँ.

dinesh gautam said...

आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना

बहुत ऊर्जा है आपकी लेखनी में । अपनी बात अलग तरीक़े से कहने का अंदाज़ आपको औरों से जुदा करता है। बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर। अंत के मार्मिक अनुरोध ने आँखें नम कर दी।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो ...

बहुत भावपूर्ण सुंदर लिखा है आपने ... मार्मिक !
बधाई !

sangita said...

प्यार की तीव्र अनुभूति कराती पोस्ट है आपकी । बधाई स्वीकारें।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
bahut pyare se bhaw!!
bahut behtareen..

Saras said...

हर बेटी की आवाज़ ....बहुत सुकोमल भाव ...सच्ची कविता !

प्रेम सरोवर said...

अपने मन के भावों को प्रकट करने का यह तरीका अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Satish Saxena said...

सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...
आभार आपका !

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

रचना दीक्षित said...

उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना.

उफ़ संवेदनाओं का अतिरेक. विछोह का दुःख समझ पाना आसान नहीं.

बहुत संजीदा प्रस्तुति रचना जी.

Sunil Kumar said...

गज़ब की अभिव्यक्ति

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!! वाह!!

विभूति" said...

दिल को छू हर एक पंक्ति....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

maa ko samarpit pyari si rachna... :)

प्रेम सरोवर said...

आपके उदगार में सब कुछ समाहित है , प्रश्न भी उत्त्तर भी ।

एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना ।

सातो जनम सुहागिन बने रहने का भाव, एवं मानसिक विचार बहुत ही अच्छा लगा । हृदयस्पर्शी । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

Smart Indian said...

मर्मस्पर्शी कविता। यही सोचता हूँ कि ज़िन्दगी केतने अजीब रास्ते से साथ छोड़ती है।

Rohit_blogger at http://floating-expressions.blogspot.in/ said...

rachna ji,sundar gehre pankitya!apka blog sarahney hai!!samarthak bah rha hun..thanks for sharing!

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/4.html

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ओह , गजब के भाव ... आपकी यह प्रस्तुति का अपडेट नहीं आया था .... रश्मि प्रभा जी का शुक्रिया जिनकी वजह से यहाँ तक आना हुआ .... बहुत सुंदर

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत अच्छा लिखा है...मन को छू गई|

Rachana said...

आपसभी के स्नेह शब्दों का बहुत बहुत आभार .आपका स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा यही आशा है
रचना

आत्ममुग्धा said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति,एक उम्र के बाद साथ छूटने का डर हम सभी को सताता है .....धन्यवाद

Dr (Miss) Sharad Singh said...

शब्द-शब्द राग और समर्पण के भावों से भरी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें...

vikram7 said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति,मन को छू गई

शाहजाहां खान “लुत्फ़ी कैमूरी” said...

ACHHI LAGI..

bhagat said...

excellent

Dr. Hardeep Sanshu said...

रचना जी,
बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ।

Santosh Kumar said...

तारीफ़ को शब्द कम है..बहुत बड़ी बात बड़ी सहजता से कह दी आपने.

शुक्रिया

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

बहुत ही भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी रचना !

mridula pradhan said...

bhawbhini.....

प्रेम सरोवर said...

उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना

आपकी उपर्युक्त चंद पक्तियां चाहे जिस किसी के संदर्भ में आपके दिल में थोड़ी सी जगह बना पाई है, बहुत ही अच्छी लगी । धन्यवाद ।

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बेहद मार्मिक रचना. वृद्ध पुरुष की आकांक्षा और संवेदना अपनी जीवन संगिनी के लिए. बहुत बधाई.

Rakesh Kumar said...

आपकी भावमय प्रस्तुति भावविभोर कर रही है.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.

amrendra "amar" said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति

सदा said...

आपका Email चाहिये कृपया इस मेल पर
sssinghals@gmail.com

आभार सहित सादर