उम्र ओस की बूंद सी भाप बन उड़ जाती है ,बालों में चांदनी सी खिलती है और घुटने के दर्द में अपना वजूद छोड़ जाती है .इसी समय सही मायने में जीवन साथी की सबसे अधिक जरूरत होती है और उसके साथ छूटने का डर भी सबसे ज्यादा होता है
उम्र की साँझ में
=====================
सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
आँखों के
इन स्याह घेरे मे
मेरी गलतिओं ने पनाह ली है
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
उम्र की साँझ में
=====================
सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
आँखों के
इन स्याह घेरे मे
मेरी गलतिओं ने पनाह ली है
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
50 comments:
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
......very nicely created poem .lovely
सुंदर पोस्ट
my resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ ... jeene do in palon ko ... maa phir main maa ...
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी ...अनुपम भाव संयोजन इन शब्दों में ...आभार ।
बस जब साथ छूटने का डर समाता है तभी साथी की अहमियत समझ आती है। सुन्दर भाव्।
बहुत सुन्दर भावों से गूंधा है, आप ने अपने मन के उदगारों को..अनुपम रचना..
उफ ... सीधे दिल में उतरती है आपकी रचना ... जीवन के उस लम्हे में जीवन साथी की सच में बहुत जरूरत होती है .... बहुत ही मर्म स्पर्शीय ...
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं...बहुत सुंदर पोस्ट
bahut hi sundar rachna hai ,aap ko khub bdhaai...
आखिरी पंक्ति में जैसे उम्र भर का सवाल छुपा है.
बिलकुल सही रचना जी ! आखरी समय में संगिनी के साथ छुटने और कई डर, बहुत याद आते है !
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
रचना जी आपकी ये पंक्तियां कटु यथार्थ अहि और एक बारगी भीतर तक झकझोर जाती हैं । गज़ब की अभिव्यक्ति !
बहुत सुन्दर.
नवरात्रि की हार्दिक बधाई.
बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
दिनेश पारीक
मेरी नई रचना
कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...
http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl
बहुत सुन्दर..........
दिल को कहीं छू गयी...
जाने कैसे आपकी पोस्ट का अपडेट आया नहीं...
क्षमा...
आपको नव संवत और चैत्र नवरात्र की शुभकामनाएँ.
आंटे में
न जाने कितने बार
गूंधी हैं
तुमने बेबसियाँ
पर चूड़ियों की खनक में
आने न दी उदासी
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
बहुत ऊर्जा है आपकी लेखनी में । अपनी बात अलग तरीक़े से कहने का अंदाज़ आपको औरों से जुदा करता है। बहुत अच्छा लगा आपकी रचना पढ़कर। अंत के मार्मिक अनुरोध ने आँखें नम कर दी।
♥
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो ...
बहुत भावपूर्ण सुंदर लिखा है आपने ... मार्मिक !
बधाई !
प्यार की तीव्र अनुभूति कराती पोस्ट है आपकी । बधाई स्वीकारें।
सुनो
तुम्हारे पिंजर हुए हाथों की
चटकती नसों मे
मेरी भावनाएं
आज भी दौडती हैं
तुम्हारे चेहरे की झुर्रियां
मेरे अनुभवों का ठिकाना है
bahut pyare se bhaw!!
bahut behtareen..
हर बेटी की आवाज़ ....बहुत सुकोमल भाव ...सच्ची कविता !
अपने मन के भावों को प्रकट करने का यह तरीका अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति ...
आभार आपका !
बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना.
उफ़ संवेदनाओं का अतिरेक. विछोह का दुःख समझ पाना आसान नहीं.
बहुत संजीदा प्रस्तुति रचना जी.
गज़ब की अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!! वाह!!
दिल को छू हर एक पंक्ति....
maa ko samarpit pyari si rachna... :)
आपके उदगार में सब कुछ समाहित है , प्रश्न भी उत्त्तर भी ।
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना ।
सातो जनम सुहागिन बने रहने का भाव, एवं मानसिक विचार बहुत ही अच्छा लगा । हृदयस्पर्शी । मेरे पोस्ट पर आपकी प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
मर्मस्पर्शी कविता। यही सोचता हूँ कि ज़िन्दगी केतने अजीब रास्ते से साथ छोड़ती है।
rachna ji,sundar gehre pankitya!apka blog sarahney hai!!samarthak bah rha hun..thanks for sharing!
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/04/4.html
ओह , गजब के भाव ... आपकी यह प्रस्तुति का अपडेट नहीं आया था .... रश्मि प्रभा जी का शुक्रिया जिनकी वजह से यहाँ तक आना हुआ .... बहुत सुंदर
बहुत अच्छा लिखा है...मन को छू गई|
आपसभी के स्नेह शब्दों का बहुत बहुत आभार .आपका स्नेह इसी तरह मिलता रहेगा यही आशा है
रचना
भावपूर्ण अभिव्यक्ति,एक उम्र के बाद साथ छूटने का डर हम सभी को सताता है .....धन्यवाद
शब्द-शब्द राग और समर्पण के भावों से भरी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
भावपूर्ण अभिव्यक्ति,मन को छू गई
ACHHI LAGI..
excellent
रचना जी,
बहुत ही सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ।
तारीफ़ को शब्द कम है..बहुत बड़ी बात बड़ी सहजता से कह दी आपने.
शुक्रिया
बहुत ही भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी रचना !
bhawbhini.....
उम्र की साँझ में
एक तुम ही उजाला हो
सुनो ,
मुझे
मुझसे पहले छोड़ के न जाना
आपकी उपर्युक्त चंद पक्तियां चाहे जिस किसी के संदर्भ में आपके दिल में थोड़ी सी जगह बना पाई है, बहुत ही अच्छी लगी । धन्यवाद ।
बेहद मार्मिक रचना. वृद्ध पुरुष की आकांक्षा और संवेदना अपनी जीवन संगिनी के लिए. बहुत बधाई.
आपकी भावमय प्रस्तुति भावविभोर कर रही है.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
खूबसूरत अभिव्यक्ति
आपका Email चाहिये कृपया इस मेल पर
sssinghals@gmail.com
आभार सहित सादर
Post a Comment