मेरी माँ हमेशा कहती है कि इस एक चुटकी सिंदूर में न जाने क्या होता है की स्त्री जीवन भर के लिए उसी की हो के रह जाती है .सारे रिश्ते पीछे छूट जाते हैं . उसकी ख़ुशी में खुश और उसके दुःख में दुखी होती रहती है और ऐसा करने में ही स्त्री को सवार्गिक सुख मिलता है .इसी भाव से प्रभावित है ये कविता ......................
समर्पण
==============
सामाजिक रीत निभाने को
मेरी मांग में ,
लाली भरी
पर रिश्ते को पागा नहीं
प्रेम की चाशनी मेंl
तुम्हारी नजरो की चाह में
चन्द्र किरण से सजी
पर देखा इस तरह
जैसे बेवख्त आये मेहमान को
देखता है कोई
स्नेह की रोली बन
बिकी मै हाट में
तुमने ख़रीदा ,
और बिखेर दिया
तुम्हारी बेल में फूल बन खिली
गैर के लिए तोडा मुझे
शी लव मी शी लव मी नोंट
कहते हुए
मेरी पंखुड़ी पंखुड़ी नोच डाली
कभी जोड़ा जो नेह
तो इस तरह
के दो वख्त की रोटी के बदले
ले लेता है आबरू
मालिक जैसे
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
समर्पण
==============
सामाजिक रीत निभाने को
मेरी मांग में ,
लाली भरी
पर रिश्ते को पागा नहीं
प्रेम की चाशनी मेंl
तुम्हारी नजरो की चाह में
चन्द्र किरण से सजी
पर देखा इस तरह
जैसे बेवख्त आये मेहमान को
देखता है कोई
स्नेह की रोली बन
बिकी मै हाट में
तुमने ख़रीदा ,
और बिखेर दिया
तुम्हारी बेल में फूल बन खिली
गैर के लिए तोडा मुझे
शी लव मी शी लव मी नोंट
कहते हुए
मेरी पंखुड़ी पंखुड़ी नोच डाली
कभी जोड़ा जो नेह
तो इस तरह
के दो वख्त की रोटी के बदले
ले लेता है आबरू
मालिक जैसे
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
47 comments:
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
यह बात विडम्बना की भी है और विश्वास की भी , बेहतरीन लिखा है रचना जी.....
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
लाजवाब अभिव्यक्ति..सामाजिक सच्चाई को सुंदरता से लिखने के लिए बधाई|
रचना जी.....बेहतरीन
सच्चाई को सुंदरता से लिखा है
एक चुटकी सिंदूर और गुलाम !सिंदूर रिश्ते की गरिमा है , कहीं कहीं दिखती भी है , पर अधिकतर ऐसे ही
आपकी प्रस्तुति दिल को झंझोडती है.
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'हनुमान लीला भाग-' पर आपके
सुविचार आमंत्रित हैं.
संस्कार और इससे बंधी गुंजन से सराबोर कविता , किन्तु मानव के अधूरे अत्याचार को भी खोल कर रख दी है ! बधाई !
लाजवाब अभिव्यक्ति.. बधाई !
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति!
आशा है ऐसी कड़वी सच्चाई समाज से जल्द ही उन्मूलित हो जाएगी!
बहुत-बहुत-बहुत बढ़िया कविता.....
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
Bahut sunder bhaav...
क्या कहें रचना जी ! ये रिवाज़ भी हैं और विश्वास भी और कुछ हद तक मजबूरी भी.
बेहद सटीक और सुन्दर लिखा है समाज के इस पहलु को.
रचना जी,
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति है आपकी...
बेहतरीन रचना लिखने के लिए बधाई|
सच से रु -बा -रु इसकी उसकी सबकी बात .साधारणीकरण कर दुःख से ऊपर उठती बात .
सिंदूर का मतलब पहले प्रति -बद्धता होता था .
युगीन अर्थ बदलें हैं .नित बदल रहें हैं .हज़ारों प्यार करतें हैं निभाना किसको आता है ....
बेहतरीन रचना
वाह रचना ही.
ये सच है ... स्त्री का भाव ऐसा ही होता है ... पर आदमी हमेशा उसे कदम कदम पे प्रताडित ही करता है ... भावों को शब्दों में उतारा है अपने ...
बहुत भावपूर्ण कविता है...। यह शायद हर विवाहित स्त्री के जीवन की त्रासदी है...ज़्यादातर पति अपनी पत्नी को taken for granted वाले नज़रिए से ही देखते हैं...। एक बेहतरीन रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...।
प्रियंका
सिंदूर.....एक ऐसा बंधन जिसे सामाजिक मान्यता प्राप्त है....जिसकी आड़ में औरत को तार-तार किया जाता है ....फिर भी
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
संजीदगी भरी बातों को इतनी खूबसूरती से कहने के लिए आभार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ..
सस्नेह.
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
सच्चाई को स्वीकार करने का नायब नमूना पेश किया है रचना जी. बहुत बेहतरीन लिखा है.
Wah rachana ji ....... ..
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
gahri abhivykti
रचना जी का अंदाज़े बयां सबसे अलग है। चिन्तन और अनुभव की नव्यता लिए हुए । ये पंक्तियाँ तो बेहद प्रभावित करती हैं-
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
के दो वख्त की रोटी के बदले
ले लेता है आबरू
मालिक जैसे
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
DEVOTED AND DEDICATED LINES BY A TRADITIONAL AND RELIGIOUS LADY.
PRANAM
behad bhawpoorn......
बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन सुंदर लाजबाब रचना,...
MY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत अच्छी रचना एवं सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।
kavita ko pasand karne ke liye aap sabhi ka bahut bahut abhar.apna sneh aese hi banaye rakhiye
rachana
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम -
रचना श्रीवास्तव ने नारी की विवशता और समर्पण को बहुत मार्मिकता से पेश किया है । भाषा का माधुर्य तो इतना बेजोड़ है कि मन-प्राण स्पर्श कर लेता है । हार्दिक बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिए ।
सोचने पर मजबूर करती रचना !
बेहतरीन प्रस्तुति !
आभार !
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है!
"AAJ KA AGRA BLOG"
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
bahut bahut bahut badhiya .ise padhkar mujhe kuchh yaad aa raha hai ----uljhan hai bahut phir bhi hum tumko na bhulange ,mushkil hai bahut mushkil chahat ka bhoola dena .....
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,बहुत अच्छा लगा.
आभारी हूँ आपका.
मेरे बात.. पर भी आईएगा.
माँ की सोच में सिमटी नारी के मन को बखूबी लिखा है ... बस समर्पण की भावना ही सर्वोपरि है ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है
..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
मेरे ब्लॉग पर आपकी दस्तक का शुक्रिया .
.बहुत अच्छी रचना है यह आपकी बारहा पढने लायक .
इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
Lmbi bimari ke baad aap sabko padhne ka avsar mila...dilo dimaag par chha gayi aapki ye rachna... bahut2 badhai..
ना मानने वाले के लिए बस एक परम्परा या प्रतीक, मानने वाले के लिए सर्वस्व!
दिल को झंझोडती है.
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.रचना जी
फालोवर बन गया हूँ आप भी बने खुशी होगी
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
लाजवाब रचना ,रचना जी... बधाई !
आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं
नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है
नई पोस्ट
स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी
razrsoi.blogspot.com
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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bahut hi lajawab ... the best rachnaon par likhne ke liye shabd kam pad jate hai yaha bhi kuch yesa hi hai !!
सुन्दर प्रस्तुति....
सच्चाई बयाँ करती...
स्नेह...
तुम्हारी नजरो की चाह में
चन्द्र किरण से सजी
पर देखा इस तरह
जैसे बेवख्त आये मेहमान को
देखता है कोई .....
सारी व्यथा कह दी .....
रचनाजी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ....लाजवाब लिखती हैं आप
एक चुटकी सिंदूर बदल देता है इंसानी रिश्तों को .
बहुत उतार चढ़ाव लिए हुए सुन्दर कविता
संबंधों के दरख्त को मै लहू से सीचती रही खुद को समेट सौपती रही तुम्हें और तुम, मुझे तार तार उधेड़ते रहे फिर भी, हर धागा बस यही कहता रहा मेरे मांग की लाली, कलाई की खनक मंगल सूत्र की चमक हो तुम - रचना श्रीवास्तव ने नारी की विवशता और समर्पण को बहुत मार्मिकता से पेश किया है । भाषा का माधुर्य तो इतना बेजोड़ है कि मन-प्राण स्पर्श कर लेता है । हार्दिक बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिए ।
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