सरस्वती सुमन पत्रिका के क्षणिका विशेषांक में मेरी भी क्षणिकायें है हरकीरत हीर जी का आभार और इतना सुन्दर अंक निकालने के लिए बधाई .
लड़कियां
देवी ,सुशील ,कुलीन ,
इन भरी पदवियों के नीचे
घुटती हैं
अपने ही
खुशियों की लाश लिए
चिरनिद्रा में सो जाती हैं
=============================
लड़कियां
सपनो को
आंटे में गूंध
कढ़ाही में तल देती हैं
और बाहर
सपनों की लाश पर
सज रही होती है
खाने की मेज
=================
लड़कियां
स्वेटर की मानिन्द
पहना
गर्माहट लिया
अगले जड़े उधेड़ दिया
=====================
लड़कियां
माँ ,बहन ,पत्नी
समझी जाती है
पर
इन्सान नहीं
=====================
लड़कियां
नई किताब की मानिन्द
पढ़ा सहलाया
अलमारी में ठूंस दिया
न झाडा ,न पोंछा
न धुप दिखाया
अस्तित्व की चीख
धीरे धीरे ,
दीमक चाटता गया
=================
लड़कियां
मौसम है
बदलती है रूप
औरों के लिए
सुगंधों में खिल के
सुख के बादल बिखराती हैं
और
पत्तियों सी झड जाती हैं
======================
लड़कियां
वो कोख हैं
जो कोसी जाती
श्रापी जाती
फिर गिरा दी जाती हैं
=========================
लड़कियां
देह से मापी जाती हैं
गोरी ,पतली ,लम्बी
शिक्षा ,रूह की रज़ा
कोई नहीं पूछता
===========================
लड़कियां
क्यों ?
कहाँ ?
कब?
के तीरों से घायल .
और सवालों का लक्ष्य होती हैं
पर जवाब
सुनता कोई नहीं
===========================
लड़कियां
जब बैठती है एकांत में
खुद से रूबरू होने को
नागफनी सी उगती है
चारो ओर अभिलाषाएं
पूछती हैं
एक ही सवाल
मेरी हत्या क्यों की ?
==========================
ये दो क्षणिकायें इस में नहीं है पर सोचा की शायद आपको पढ़ कर अच्छी लगे
लड़कियां
किसी की नहीं होतीं
माँ पिता के लिए
पराया धन
और उनके लिए
पराये घर से आई (बहू)
======================
लड़कियां
जिनका
कोई नहीं होता
खुद लड़कियां भी नहीं
===========================
लड़कियां
देवी ,सुशील ,कुलीन ,
इन भरी पदवियों के नीचे
घुटती हैं
अपने ही
खुशियों की लाश लिए
चिरनिद्रा में सो जाती हैं
=============================
लड़कियां
सपनो को
आंटे में गूंध
कढ़ाही में तल देती हैं
और बाहर
सपनों की लाश पर
सज रही होती है
खाने की मेज
=================
लड़कियां
स्वेटर की मानिन्द
पहना
गर्माहट लिया
अगले जड़े उधेड़ दिया
=====================
लड़कियां
माँ ,बहन ,पत्नी
समझी जाती है
पर
इन्सान नहीं
=====================
लड़कियां
नई किताब की मानिन्द
पढ़ा सहलाया
अलमारी में ठूंस दिया
न झाडा ,न पोंछा
न धुप दिखाया
अस्तित्व की चीख
धीरे धीरे ,
दीमक चाटता गया
=================
लड़कियां
मौसम है
बदलती है रूप
औरों के लिए
सुगंधों में खिल के
सुख के बादल बिखराती हैं
और
पत्तियों सी झड जाती हैं
======================
लड़कियां
वो कोख हैं
जो कोसी जाती
श्रापी जाती
फिर गिरा दी जाती हैं
=========================
लड़कियां
देह से मापी जाती हैं
गोरी ,पतली ,लम्बी
शिक्षा ,रूह की रज़ा
कोई नहीं पूछता
===========================
लड़कियां
क्यों ?
कहाँ ?
कब?
के तीरों से घायल .
और सवालों का लक्ष्य होती हैं
पर जवाब
सुनता कोई नहीं
===========================
लड़कियां
जब बैठती है एकांत में
खुद से रूबरू होने को
नागफनी सी उगती है
चारो ओर अभिलाषाएं
पूछती हैं
एक ही सवाल
मेरी हत्या क्यों की ?
==========================
ये दो क्षणिकायें इस में नहीं है पर सोचा की शायद आपको पढ़ कर अच्छी लगे
लड़कियां
किसी की नहीं होतीं
माँ पिता के लिए
पराया धन
और उनके लिए
पराये घर से आई (बहू)
======================
लड़कियां
जिनका
कोई नहीं होता
खुद लड़कियां भी नहीं
===========================
20 comments:
बहुत सुन्दर क्षणिकायें । बधाई आपको।नवरात्रि की शुभकामनायें।
बहुत लाजबाब क्षणिकायें,,,,
नवरात्रि की बहुत२ शुभकामनायें,,,,,
RECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
लड़कियां
सपनो को
आंटे में गूंध
कढ़ाही में तल देती हैं
और बाहर
सपनों की लाश पर
सज रही होती है
खाने की मेज ....... क्यूँ होने देती हैं यह सब लडकियां !!!
लड़कियां
जिनका
कोई नहीं होता
खुद लड़कियां भी नहीं
==================
बहुत सुन्दर क्षणिकायें
नवरात्रि की शुभकामनायें।
बहुत सुंदर रचना, क्या कहने
लड़कियां
क्यों ?
कहाँ ?
कब?
के तीरों से घायल .
और सवालों का लक्ष्य होती हैं
पर जवाब
सुनता कोई नहीं
बहुत बढिया
वाह ... बहुत ही बढिया ... क्षणिकाओं के प्रकाशन पर बहुत-बहुत बधाई
सभी क्षणिकाएँ रूह में समा कर टीस दे गई. जाने क्यों होती हैं लडकियां? सभी लड़कियों का सच...
लड़कियां
जिनका
कोई नहीं होता
खुद लड़कियां भी नहीं
शुभकामनाएँ.
आपकी क्षणिकाएं रूह तक असर करने वाली हैं। लड़कियांे के अंतस की भावना को सच्चाई और बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है आपने। बस तारीफ के लिए एक ही शब्द अंतस से आ रहा है- लाजवाब।
आपकी क्षणिकाएं रूह तक असर करने वाली हैं। लड़कियांे के अंतस की भावना को सच्चाई और बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है आपने। बस तारीफ के लिए एक ही शब्द अंतस से आ रहा है- लाजवाब।
मार्मिक.....
तारीफ के लिए शब्द नहीं....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
बहुत सुन्दर क्षणिकायें ।
एक कटाक्ष मैं करना चाहता हूँ उन लोगों पर जो ये कहते हैं की मेरे यहाँ तो बेटा ही पैदा होगा वो कहीं न कही भ्रूण हत्या का पहला पायदान हैं।
किसी को चुभता हो तो क्षमा चाहता हूँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत हैं
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/10/blog-post_17.html
पढ़ा तो इसे पहले भी हू,
शुभकामनाएं
अपने समाज का एक कड़वा सच. सदियाँ बीत लेकिन लड़कियों की दशा नहीं. लेकिन उम्मीद है और यकीन भी की अपने जीवनकाल में बहुत सुधार देखने को मिलेगा.
अपने समाज का एक कड़वा सच. सदियाँ बीत लेकिन लड़कियों की दशा नहीं. लेकिन उम्मीद है और यकीन भी की अपने जीवनकाल में बहुत सुधार देखने को मिलेगा.
लड़कियां
सपनो को
आंटे में गूंध
कढ़ाही में तल देती हैं
और बाहर
सपनों की लाश पर
सज रही होती है
खाने की मेज
बहुत सुंदर रचना जी । और ये भी कि लडकियां किसी की नही होतीं खुद अपनी भी नही ।
वाकई बहुत सुंदर ....
मंगलकामनाएं आपको !
लड़कियां
किसी की नहीं होतीं
माँ पिता के लिए
पराया धन
और उनके लिए
पराये घर से आई (बहू)
======================
लड़कियां
जिनका
कोई नहीं होता
खुद लड़कियां भी नहीं
निशब्द करती भावनाएं
क्या कहूँ !
Post a Comment