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Tuesday, November 13, 2012

सभी को दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनायें .लिखना तो कुछ और चाहती थी पर न जाने कैसे ये लिख गया .यही कुछ फूल बटोर पाई हूँ इनमे कितनी खुशबू  है ये तो आप ही बतायेंगे


मुझे डराने को
 सुतली बम जलाते  थे तुम 
मै  डर कर
छुप जाती थी
आज भी
हर दिवाली डरती हूँ
पर सुतली बम कोई नहीं जलाता

-0-

सुनो ,
 दिए बुझने लगे है
थोडा तेल तो डालो l
उस बरस कहा था तुमने
मुझे आज भी
सुनाई  देते हैं वो शब्द
और मै  तेल ले कर
छत पर आजाती हूँ

-0-

बरसों बाद
लौटे जो तुम घर
एक ख़ुशी की किरण
आँगन उतरी
और घर
महकने  लगा

-0-

दिया लिए हाथों में
तुम चली
 चौखट की ओर
चाँद सोचता रहा
दिए में चमक ज्यादा है
या चेहरे का नूर

-0-

काले कपडे पहन
चाँद ऊँघ  रहा था
के एक शोर से चोंक गया
खिड़की से झाँका
 तारे चिल्ला रहे थे
"घरती के तारों की चमक
हमसे ज्यादा कैसे "?

-0-

चमकते घरों के बीच
मुरझाई झोपडी से
आवाज आई
माँ ये दिवाली  आती ही क्यों है ?
आज
अपने घर का अँधियारा
और गहरा लगने लगता है

-0-

लाखों तारों से
 सजी थी  धरती
इसकी सुन्दरता देख
 जल  उठा  अम्बर
और काली  चादर ओढ
सो गया

-0-

वो एक घर
अंधकार में डूबा  था
सुना है
इस घर का मालिक
तारा  बन गया है
-0-

14 comments:

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत भावपूर्ण...
हर क्षणिका अर्थपूर्ण!!
सपरिवार दीपावली की अनंत शुभकामनाएँ!!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
This comment has been removed by the author.
धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

भावों से भरी क्षणिकाए

दीपों की यह है कथा,जीवन में उजियार
संघर्षो के पथ रहो, कभी न मानो हार,

दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ,,,,
RECENT POST: दीपों का यह पर्व,,,

Ramakant Singh said...

बरसों बाद
लौटे जो तुम घर
एक ख़ुशी की किरण
आँगन उतरी
और घर
महकने लगा

ये महक ज़िन्दगी भर बनी रहे.

Kunwar Kusumesh said...

दीपोत्सव की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

कालीपद "प्रसाद" said...

अच्छी भावपूर्ण क्षणिकाएं .

मेरी नई रचना www://kpk-vichar.blogspot.in

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना,
क्या बात

सभी एक से बढ़कर एक

दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं

प्रेम सरोवर said...

सुंदर भावों में पिरोई गई आपकी रचना अच्छी लगी । मेरा नए पोस्ट बहती गंगा पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद।

Madan Mohan Saxena said...
This comment has been removed by the author.
Suman Dubey said...

bhav bhri rchna sundar

Rohitas Ghorela said...

चमकते घरों के बीच
मुरझाई झोपडी से
आवाज आई
माँ ये दिवाली आती ही क्यों है ?
आज
अपने घर का अँधियारा
और गहरा लगने लगता है.

maarmik...


baki post behad umda h :))

दिगम्बर नासवा said...

दिवाली के साथ प्रेम की महक भी आ रही अहि सभी क्षणिकाओं में ... बहुत सुन्दर ...

रचना दीक्षित said...

काले कपडे पहन
चाँद ऊँघ रहा था
के एक शोर से चोंक गया
खिड़की से झाँका
तारे चिल्ला रहे थे
"घरती के तारों की चमक
हमसे ज्यादा कैसे "?

यूँ तो सभी क्षणिकाएँ बहुत सुंदर भाव समेटे हैं परन्तु यह क्षणिका तो लाज़बाब है.

आजकल रचना जी आपके ब्लॉग पर कुछ नया सृजन नहीं चल रहा?

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




वाऽह जी वाह ! क्या बात है !
आदरणीया रचना जी
सुंदर क्षणिकाओं के लिए पुनः आभार !
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे ...
नई रचना की प्रतीक्षा है...
:)



नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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