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Thursday, May 22, 2014

जब वो उदास होती है
तितलियों से मांग के रंग
बनाती  है इन्द्रधनुष
खामोश शब्दों मे
भरती है गुनगुनाहट
लेट कर घास पर
ढूंढती है चेहरे  बादलों मे
खेलती है पानी से
 बटोरती है सीपें
बना के अपने चारों ओर क्यारियाँ
खुशियाँ बीजती है
दौड़ती है नंगे पाँव
ओस के खेतों मे
खुद को दुलारती ,है
 मनाती है खुद ही को
जब वो उदास होती है
अपने बहुत पास होती है

9 comments:

dinesh gautam said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति! अपनी उदासियों में माँगे हुए रंगों से अपना इंद्रधनुष
रच लेना, अपनी निःशब्दता को खुद ही गुनगुनाहट बना लेना यह कलासाधकों का ही फ़न हो सकता है, शायद नियति भी।

shikha varshney said...

haan, udaasi ka kuchh yun laabh bhi hota hai.

Jyotsana pradeep said...

anoothi bhaav abhivyakti

Jyotsana pradeep said...

anoothi bhaav abhivyakti

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

Shikha Kaushik said...

EXCELLENT EXPRESSION RACHNA JI .

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... उदासियों की गाथा ...

डॉ. जेन्नी शबनम said...

जब उदास होती है अपने पास होती है...
उदासी का साथ अपने अलावा कोई देता भी नहीं. प्रकृति ही मात्र सहेली... सुन्दर भाव, बधाई.

Asha Joglekar said...

मनाती है खुद ही को
जब वो उदास होती है
अपने बहुत पास होती है

सुंदर, सुंदर अति सुंदर।