जब वो उदास होती है
तितलियों से मांग के रंग
बनाती है इन्द्रधनुष
खामोश शब्दों मे
भरती है गुनगुनाहट
लेट कर घास पर
ढूंढती है चेहरे बादलों मे
खेलती है पानी से
बटोरती है सीपें
बना के अपने चारों ओर क्यारियाँ
खुशियाँ बीजती है
दौड़ती है नंगे पाँव
ओस के खेतों मे
खुद को दुलारती ,है
मनाती है खुद ही को
जब वो उदास होती है
अपने बहुत पास होती है
तितलियों से मांग के रंग
बनाती है इन्द्रधनुष
खामोश शब्दों मे
भरती है गुनगुनाहट
लेट कर घास पर
ढूंढती है चेहरे बादलों मे
खेलती है पानी से
बटोरती है सीपें
बना के अपने चारों ओर क्यारियाँ
खुशियाँ बीजती है
दौड़ती है नंगे पाँव
ओस के खेतों मे
खुद को दुलारती ,है
मनाती है खुद ही को
जब वो उदास होती है
अपने बहुत पास होती है
9 comments:
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति! अपनी उदासियों में माँगे हुए रंगों से अपना इंद्रधनुष
रच लेना, अपनी निःशब्दता को खुद ही गुनगुनाहट बना लेना यह कलासाधकों का ही फ़न हो सकता है, शायद नियति भी।
haan, udaasi ka kuchh yun laabh bhi hota hai.
anoothi bhaav abhivyakti
anoothi bhaav abhivyakti
बहुत बढ़िया लिखा है आपने.
EXCELLENT EXPRESSION RACHNA JI .
बहुत खूब ... उदासियों की गाथा ...
जब उदास होती है अपने पास होती है...
उदासी का साथ अपने अलावा कोई देता भी नहीं. प्रकृति ही मात्र सहेली... सुन्दर भाव, बधाई.
मनाती है खुद ही को
जब वो उदास होती है
अपने बहुत पास होती है
सुंदर, सुंदर अति सुंदर।
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