वर्षा कुछ यूँ भी आँखों में उतरती है .संग बहा लाती है कुछ शब्द .उन्हीं को पिरो के बनी है ये कविता
वर्षा दे जाती है
कुरकुरे गुनगुने से सपने
कुछ पुरानी गीली यादों के
वर्षा जलाती है
मन में स्नेह दीप
गर्माहट इसकी
देह में उर्जा का संचार करती है
अभिलाषा
तुम्हारी निगाहों के छुअन की
बलवती हो जाती है
वर्षा देती है जन्म
एक अमर प्रेम को
बूंद - धरती ,पात - हरितमा
बिजली और बादल
के प्रणय की साक्षी होती है
वर्षा बरसती है घर में
धो देती है काजल
आंसुओं में घुल
नमकीन हो जाती है
वर्षा
भर देती है नदी ,
कच्चे घडे और प्रेम के बीच
डुबो देती हैं उन्हें
चिर जीवित करने के लिए
वर्षा दे जाती है
कुरकुरे गुनगुने से सपने
पर नींद छीन लेती है
5 comments:
bahut badhiya pryas hai
रचना जी,
आज आपसे बात करके काफी अच्छा लगा और आपकी कवितायें पढ़कर तो एक मिनट के लिए जी भर आया... कंही न कंही मन में यह टीस महसूस हुई की घर से अपने लोगों से दूर होने का ग़म किस कदर आदमी को चुभता है.
आपके दर्द में एक सुहावना कसक है और आपके अल्फाज काबिलेतारीफ. यह जानकर तो और प्रसन्नता हुई की दूर देश कोई वतन की भाषा में वतन में बिताये हुए क्षणो को दिल के धड़कन के आस पास रख कर ताने बाने बुन रहा है तो दूसरी ओर बहूत सारे ऐसे लोग है जो देश में रहकर देश के मर्म को नहीं समझ रहे.
बहूत खूब और आप को इस कार्य के लिए ढेरो सुभकामनाएँ
तुम उन्ही बहते चलो रास्ते खुद ही संवरते जायेंगे
आज जो बीत रहा है वहीँ पर तो कल की
हसरतों के फूल खिल पाएंगे.
बहुत खूबसूरत कविता है...गीली-गीली सी...मन को भिगो देनेवाली...
Rachna ji..itni sundar kavita aur shiishak nahi !!
"Phuhaarein"
AAP SABHI KA BAHUT BAHUT DHNAYVAD
RACHANA
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