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Sunday, May 22, 2011

माँ की चाहत पानी बन नदी में उतरती तो है पर भीगती नहीं .कभी कभी भीड़ में अकेली होती है और कभी अकेलेपन में भी एक भीड़ अपने आसपास जमा कर लेती है  माँ एक एसा  ब्रह्माण्ड  होती है जिसे बारे में हम बहुत कुछ जानते हैं फिर भी कुछ नहीं जानते 



माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ

रिश्तों की
सिलवटों को खोल
धूप दिखाती है
आँगन में सूखते हैं वो
भीगती है माँ
पेड़ की फुनगी से
उतार कर
घर में बोती है भोर
पर मन के
अँधेरे कोने में
स्वयं बंद होती है माँ
उजाले की
एक- एक किरण
सबके नाम करती है
और साँझ को
आँचल के कोने में
गठिया लेती है माँ
चौखट से अहाते तक
बिखरी होती है
सभी की इच्छाएँ
रात अकेले में
अभिलाषाओं की गठरी
चुपके से खोलती है माँ
रिमोट छीनने की जद्दोजहद
टी वी पर
समाचार का शोर
तेज संगीत की चकाचौंध
इन सबसे अलग
रसोई में
लोकगीत गुनगुनाती है माँ
गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं
सभी से छुपा के
पोंछती है आँसू
और उठके
काम करने लगती है माँ
होता है समय सभी के पास
पर उसके लिए नहीं
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ

42 comments:

Satish Saxena said...

मार्मिक यादें माँ की....
कई बार लगता है हम सबके होते हुए भी वे अकेली सी हैं .....
शुभकामनायें आपको !

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

दहेज का बख्सा और शादी का जोड़ा,
मां के भावनाओं कि मुकम्मल अभिव्यक्ति के लिये
आपको मुबारक बाद व आभार।

Jyoti Mishra said...

beautiful description of maa !!
i loved it.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

रसोई में
लोकगीत गुनगुनाती है माँ

खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ

बहुत ही संवेदनशील पंक्तियाँ..... कुछ देखी जानी सी.....आपने सुंदर शब्दों में ढाल दिया ...... यह रचना मन को छू गयी.....

mridula pradhan said...

अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
wah.kitna sunder likhi hain aap.....

amit kumar srivastava said...

भावुक करती रचना...

Urmi said...

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! उम्दा प्रस्तुती!

ज्योति सिंह said...

माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
tabhi to hai wo maa ,bahut achchhi rachna bha gayi ,aap aai khushi hui

Urmi said...

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए शुक्रिया!
http://seawave-babli.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत सुंदर
"माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ"
और फिर वही चक्र दुहराती है एक और माँ

Udan Tashtari said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!!

अमिता कौंडल said...

गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं
सभी से छुपा के
पोंछती है आँसू
और उठके
काम करने लगती है माँ

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है रचना जी, मन को छू गईl माँ को तो असल में तब समझी जब खुद माँ बनीl रचना जी धन्यवाद कहना चाहूंगी आपको जो माँ को इतने सुंदर शब्दों में समेटा आपनेl बधाई
सादर
अमिता कौंडल

केवल राम said...

दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ


माँ आखिर माँ होती है उसे शब्दों में अभिव्यक्त करना आसन नहीं ...आपका आभार

रचना दीक्षित said...

क्या कहूँ निःशब्द सी हो गयी हूँ.माँ हूँ सो कभी अपने आप को देखती हूँ कभी माँ के बारे में सोचती हूँ. आज बस सोचने ही दें. प्रतिक्रिया फिर कभी आभार

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बहुत सुंदर.

Urmi said...

मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है!

Anonymous said...

भावमय करते शब्‍द ।

दिगम्बर नासवा said...

हर कोने में बस माँ ही माँ छाई रहती है ... हर चीज़ से उसकी महक आती है पर फिर भी अंजान सी रहती है माँ ...

पूनम श्रीवास्तव said...

rachna ji
kya likhun -----
aapne to nihshabd kar diya hai .
har ek pankti ma ka hal badi hi gahrai se bayan kar rahi hai .bahut hi behtreen tareeke se aapne maa ko ,maa ke har beete lamho ka chitrankan
kiya hai.maa shabd hi aisa hai jisme sansaar samaya hua hai .jitna bhi likhiye sagar me ek bund ki tarah lagata hai.
kyon ki maa to sirf aur sirf maa hai.
bahut hi marmsaprshi rachna
aankhe bhar aai. maa ki yaade jo taza ho gain hai .
bahut bahut hardik badhai
poonam

Vivek Jain said...

रसोई में
लोकगीत गुनगुनाती है माँ

खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ

बहुत सुंदर
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Rachana said...

aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
rachana

Urmi said...

आपकी टिप्पणी के लिए शुक्रिया!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर रचना........

Shalini kaushik said...

sundar v marmik abhivyakti.badhai.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ.


मन को छू गई ये पंक्तियां...जैसे किसी एल्बम में कोई पुरानी तस्वीर देख रहा हो...बहुत ही उम्दा कविता.

ज्योति सिंह said...

phir se padhi ise ,bahut achchhi racna hai .

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ
bahut hi khoobsurat kavita hai! mere blog pe aane aur protsahan dene ke liye shukriya :-)

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ.

बहुत सुंदर भाव के साथ लिखी गई कविता।

Kailash Sharma said...

गैरों के ताने
बरसते हैं
वो भीगती नहीं
अपनों की उपेक्षा
उसे बहा ले जाती हैं

बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति...माँ की अंतर्मन की भावनाओं की बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..शुभकामनायें !

Anonymous said...

रिश्तों की
सिलवटों को खोल
धूप दिखाती है
आँगन में सूखते हैं वो
भीगती है माँ

घर में बोती है भोर
पर मन के
अँधेरे कोने में
स्वयं बंद होती है माँ
उजाले की
एक- एक किरण
सबके नाम करती है
और साँझ को
आँचल के कोने में
गठिया लेती है माँ
चौखट से अहाते तक
बिखरी होती है
सभी की इच्छाएँ
रात अकेले में
अभिलाषाओं की गठरी
चुपके से खोलती है माँ

पर उसके लिए नहीं
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा
सहलाती है शादी का जोड़ा
माँ की दी चीजों से बतियाती है माँ

रचना जी , क्या कहूँ शब्द नहीं हैं अभिव्यक्ति के लिए, बहुत सुन्दरऔर सच्चे भाव हैं, आपकी यह कविता तो जैसे फ्लैशबैक में ले जाती है, एक-एक पंक्ति मन में कहीं गहरे पैठ जाती है...दुनिया की सारी माओं और बेटियों के लिए आपकी यह कविता सर्वश्रेष्ट उपहार है...

Suman said...

सच में माँ ऐसी ही होती है !
बहुत सुन्दरतासे भाओंको सजाया है
बहुत बढ़िया ! आभार .........

sanjay patel said...

रचना दी,
ये एक अप्रतिम एक्सप्रेशन है. माँ की दुनिया वाक़ई एक अलग सी होती है...जब दुनिया रोती है वह धीरज रखती है..जब दुनिया सोती है वह चुप चुप रोती है....

आपके शब्द अनमोल हैं.
प्रणाम.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

माँ ऐसी ही होती हैं ......

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

uf kuchh kahanaa chaah rahaa thaa thaa main.....magar maa ke chehre ne niruttar kar diya hai mujhe.....

Dr Varsha Singh said...

पेड़ की फुनगी से
उतार कर
घर में बोती है भोर...

बहुत सुन्दर शब्दचित्र उकेरा है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।|

बधाई और शुभकामनाएं |

श्यामल सुमन said...

अपनी संवेदनाओं को समेटने का एक बेहतर अंदाज़ रचना जी. खुद की लिखी ये पंकितियाँ यद् आयीं-

तेरी ममता मिली मैं जिया छाँव में
वही ममता बिलखती अभी गाँव में

सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इतनी खूबसूरत रचना ...कैसे पढ़ने से रह गयी ...

रिश्तों की
सिलवटों को खोल
धूप दिखाती है
आँगन में सूखते हैं वो
भीगती है माँ

माँ का भीगना मन को भिगो गया ...

होता है समय सभी के पास
पर उसके लिए नहीं
झुर्रियों में
अपना यौवन तलाशने को
खोलती है
दहेज़ का बक्सा ..

मार्मिक स्थिति का वर्णन ... बहुत भावमयी प्रस्तुति

प्रियंका गुप्ता said...

क्या खूब कह दिया रचना जी...। बहुत उम्दा...मेरी बधाई...।

प्रियंका गुप्ता

सहज साहित्य said...

बेहद मार्मिक कविता , नयापन लिये हुए । दिल को छूती हुई।

virendra sharma said...

बहुत सुन्दर !कोमल भाव -भीनी कविता यादों को उड़ेलती सी .

Suman Dubey said...

्रचना जी नमस्कार्। सच आपने मां के बारे में जो भी लिखा है सत्य है ऐसी ही होती है मां सुन्दर भावों से सजी लाइने--------- अँधेरे कोने में
स्वयं बंद होती है माँ उजाले कीएक- एक किरण
सबके नाम करती है मां ।

Briggsxfip said...

मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है!