कहा उसने , डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं .ऐसे ही किसी की कुछ बातें सुनी तो ये शब्द कविता के जामा पहन मेरी हथेलियों में दुबक गए .
क्षणिकाएँ
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी
--------------------------------
माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
================================
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
=========================
क्षणिकाएँ
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी
--------------------------------
माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
================================
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
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61 comments:
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
बेहतरीन ....हर क्षणिका की जितनी प्रशंसा की जाये कम है..... आम जीवन से समेटे भाव कितने खास बन पड़े हैं आपके शब्दों में.....
इतना मार्मिक और हृदयस्पर्शी लिखतीं हैं रचना जी आप कि आँखें नम हो रहीं हैं मेरी.क्या कहूँ शब्द नहीं हैं मेरे पास अपनी बात कहने के.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.
माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "... !!! kya kahun , ye ki aankhon se bahte ehsaas meri aankhon mein umad aaye hain
उफ़ कितना मार्मिक लिखा है..अंदर तक ह्रदय को पिघला गया.
शब्द ही नहीं मिल रहे इन क्षणिकाओं के लिए.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
तीनो ही क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर हैं, पर दूसरी और तीसरी ने आँखें नम कर दी...। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...।
प्रियंका
मार्मिक रचना ....
शुभकामनायें आपको !
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
ये क्षणिका बहुत प्रभावित करती है.
सादर
तीनों क्षणिकाएँ गहन अनुभूति को लिए हुए
बहुत मर्मस्पर्शी ...
आपसे एक गुज़ारिश है कि आप अपने ब्लॉग पर फौलोर्स का गैजेट लगाएं ... आपके ब्लॉग तक तुरंत पहुँचने में सुविधा होगी ...
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
जीवन के प्रत्येक पक्ष पर आपकी सोच इन रचनाओं के माध्यम से उजागर हुई है ....आपका आभार
marmik.....
हर क्षणिका बेहद संवेदनशील ... मार्मिक और हृदय्स्पर्शीय ... दिल को छूती है ...
har shanika man ko udwelit kar rahi hai .bahut sundar v man ko choo lene vali abhivyakti .aabhar
kshanikayen pasand karne ke liye aapsabhi ka hrdya se dhnyavad.
sangita ji me lagane ki koshish karti hoon.
abhar aur dhnyavad
rachana
बहुत मार्मिक क्षणिकायें.अल्प शब्दों में बिम्बों के माध्यम से मर्म को उकेरना बहुत बड़ी कला है.
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी ....
मार्मिक और हृदयस्पर्शी क्षणिका...आँखें नम कर दी !
सुंदर क्षणिकाएं
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
सच में बहुत सुंदर रचना है।
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी
अत्यंत हृदयस्पर्शी...
तीनों ही काव्य रचनाएं शब्द-शब्द संवेदना से भरी एवं अत्यंत मार्मिक हैं...
बहुत कुछ कहा जा चुका है आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन
बहुत सुन्दर...अच्छा लगा.
माँ का अभाव क्या होता है उसकी सूक्ष्म पीड़़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति. सशक्त क्षणिकाएँ.
बहुत ही भावुक और संवेदनशील
रचना जी आपकी कविता तो दिल की गहराई से निकली होती है , पर आपका यह गद्य , गध्य न होकर गद्य कविता ही बन गया-"कहा उसने , डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं .ऐसे ही किसी की कुछ बातें सुनी तो ये शब्द कविता के जामा पहन मेरी हथेलियों में दुबक गए ."
इन पंक्तियों की मासूमियत मन मोह लेती है-
"बच्ची की मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी"
-बहुत साधुवाद ! आपकी लेखनी यूँ ही अमृत वर्षा करती रहे ।
बहुत खूब, गागर में सागर जैसी रचनाएं हैं।
बधाई।
------
TOP HINDI BLOGS !
मार्मिक और हृदयस्पर्शी क्षणिकाएँ| बहुत बहुत आभार|
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी
waah itni sunder rachna. laga hi nahi ki chand sabdo me bhi koi sansar samet sakta hai . per aapne to ker ke dikha diya......bahut sunder prastuti.............badhai.....
माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
रचना जी इन पंक्तियों ने तो आँखों में आंसू ला दिए..इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति... दिल से निकली बात दिल को छू गयी
aaj pahli baar aap ke blog pe aaya..aur aankhein nam ho gayin..mere research guide hamesha mujhse kahte rahe ki ek kavita maa par likhooon..lekin ma shabd hi jadu hai..aur us jaadu pe main koi kavit nahi likh paya..lekin aapne shabdon se ma ki taswir kheench di..wo bhi itni marmik ...
hardik badhayi
अत्यंत ही मार्मिक और गम्भीर क्षणिकायें
मर्म को स्पर्श करने वाली क्षणिकाएं..!!
शद आप के चिंतन के अनुकूल अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
.....................
के मुट्ठी - की मुट्ठी
बहुत सुन्दर और लाजवाब क्षणिकाएं ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मार्मिक क्षणिकाएं , निशब्द ...
वाह.आपकी क़लम क़ाबिले-दाद है.
रचना जी .मै आज पहली बार आप के ब्लांग में आई..आप की भावमयी रचना पढ़्कर मुझे खुद पर अफसोस होरहा है कि इससे पहले मै कहाँ थी ? खैर अब मैं नियमित रहूँगी...आभार..
ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
बेहतरीन लिखा है आपने ।
बेहतरीन ....हर क्षणिका बेमिसाल है ..... मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना....
बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी ...
बहुत मार्मिक...सभी क्षणिकायें बहुत सुन्दर..
मार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......
आपकी पंक्तियों ने भावुक कर दिया.सहज पर प्रभावी रचना.
हमज़बान की नयी पोस्ट आतंक के विरुद्ध जिहाद http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.htmlज़रूर पढ़ें और इस मुहीम में शामिल हों.
हर क्षणिका दिल को छू गई । खास कर अंतिम ।
रचना जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को http://cityjalalabad.blogspot.com/p/blog-page_7265.html के हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज पर लिंक किया जा रहा है|
तीनो क्षणिकाएं खासा प्रभावित करती हैं। पहली, दूसरी बेहतरीन लगीं।
एक तवीर जसे माँ बताया गया और कुछ फुसफुसाते शद "बन माई कै बटया "... !!! Marmik panktiya. Sach me rula gayi.
अद्भुत शब्द चित्र /क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई रचना जी
अद्भुत शब्द चित्र /क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई रचना जी
ohhh...
kitna dard hi in me....
kis shabdo se tarif karu samjh me nahi ata.
bas maun hun abhi....??
रचना जी मन को छू लेने वाली रचना -सुन्दर भावों से ओत प्रोत -अक्सर ये देखा जा रहा है -काश अपने सा ही माएं इन बच्चियों को भी जाने उसमे अपना रूप देखें जिनके बिना इस सृष्टि का कोई औचित्य ही नहीं
बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
मार्मिक अभिवयक्ति। सभी क्षणिकायें गहरी संवेदना लिये हुये। शुभकामनायें।
aap sabhi ke sneh shbon ka dhnyavad
sangeeta ji koshish karungi aapki baat puri kar sakun.
aapsabhi ka dhnyavad
rachana
बहुत ह्रदयस्पर्शी रचनाएँ हैं...
बिन माँ की बच्ची
बन जाती सबकी बच्ची
स्नेह की वर्षा में भीगती
पर ममता की बूँद न होती
डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं
behatar !
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
rishtedaron mein bhi to vah bat nahin hoti jise apnapan kahte hai.
aapki mutthi jald bhare yehi shubhkamna..
Achchha likh rahien hain Rachna ji
बेहतरीन क्षणिकायें..कम शब्दों में पूरी बात!!!
अपना संपर्क दें ईमेल से तो बात हो...sameer.lal AT gmail.com
bahut marmik ,hrdyasparshi rachnayen...bahut 2 badhai..
आपके ब्लॉग की लिंक मुझे एक सज्जन के द्वारा प्राप्त हुई ,लगा अभी तक कुछ अधुरा था वो आज मिल गया .बहुत ही भीतर तक छू जाते है आपके विचार और भाव .अनाथाश्रम वाली कहानी तो दिल को छू गई.
रचना जी इन बच्चों के दुःख को इतनी मार्मिकता से लिखा है कि आँखे भर आयीl यह सच है,
माँ बिन बच्चा
भटके हर पल
नगर द्वार
सादर,
अमिता कौंडल
bahut achhi aur bhaawpoorna abhivyakti,badhaai!
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