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Tuesday, July 5, 2011

कहा उसने , डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं .ऐसे ही किसी की कुछ बातें सुनी तो ये शब्द कविता के जामा पहन मेरी हथेलियों में दुबक गए .

क्षणिकाएँ  
 

बच्ची  के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी
--------------------------------

माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक  तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते  शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
================================


ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस  के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '
=========================

61 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '

बेहतरीन ....हर क्षणिका की जितनी प्रशंसा की जाये कम है..... आम जीवन से समेटे भाव कितने खास बन पड़े हैं आपके शब्दों में.....

Rakesh Kumar said...

इतना मार्मिक और हृदयस्पर्शी लिखतीं हैं रचना जी आप कि आँखें नम हो रहीं हैं मेरी.क्या कहूँ शब्द नहीं हैं मेरे पास अपनी बात कहने के.

अनुपम अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.

रश्मि प्रभा... said...

माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "... !!! kya kahun , ye ki aankhon se bahte ehsaas meri aankhon mein umad aaye hain

shikha varshney said...

उफ़ कितना मार्मिक लिखा है..अंदर तक ह्रदय को पिघला गया.
शब्द ही नहीं मिल रहे इन क्षणिकाओं के लिए.

Rakesh Kumar said...

मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.

प्रियंका गुप्ता said...

तीनो ही क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर हैं, पर दूसरी और तीसरी ने आँखें नम कर दी...। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें...।

प्रियंका

Satish Saxena said...

मार्मिक रचना ....
शुभकामनायें आपको !

Yashwant R. B. Mathur said...

ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '

ये क्षणिका बहुत प्रभावित करती है.

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तीनों क्षणिकाएँ गहन अनुभूति को लिए हुए

बहुत मर्मस्पर्शी ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपसे एक गुज़ारिश है कि आप अपने ब्लॉग पर फौलोर्स का गैजेट लगाएं ... आपके ब्लॉग तक तुरंत पहुँचने में सुविधा होगी ...

केवल राम said...

ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '

जीवन के प्रत्येक पक्ष पर आपकी सोच इन रचनाओं के माध्यम से उजागर हुई है ....आपका आभार

mridula pradhan said...

marmik.....

दिगम्बर नासवा said...

हर क्षणिका बेहद संवेदनशील ... मार्मिक और हृदय्स्पर्शीय ... दिल को छूती है ...

शिखा कौशिक said...

har shanika man ko udwelit kar rahi hai .bahut sundar v man ko choo lene vali abhivyakti .aabhar

Rachana said...

kshanikayen pasand karne ke liye aapsabhi ka hrdya se dhnyavad.
sangita ji me lagane ki koshish karti hoon.
abhar aur dhnyavad
rachana

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बहुत मार्मिक क्षणिकायें.अल्प शब्दों में बिम्बों के माध्यम से मर्म को उकेरना बहुत बड़ी कला है.

Shabad shabad said...

बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी ....
मार्मिक और हृदयस्पर्शी क्षणिका...आँखें नम कर दी !

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

सुंदर क्षणिकाएं

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है


सच में बहुत सुंदर रचना है।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी

अत्यंत हृदयस्पर्शी...
तीनों ही काव्य रचनाएं शब्द-शब्द संवेदना से भरी एवं अत्यंत मार्मिक हैं...

Anonymous said...

बहुत कुछ कहा जा चुका है आपको और आपकी लेखनी को सादर नमन

Akshitaa (Pakhi) said...

बहुत सुन्दर...अच्छा लगा.

Bharat Bhushan said...

माँ का अभाव क्या होता है उसकी सूक्ष्म पीड़़ा की मार्मिक अभिव्यक्ति. सशक्त क्षणिकाएँ.

अजय कुमार said...

बहुत ही भावुक और संवेदनशील

सहज साहित्य said...

रचना जी आपकी कविता तो दिल की गहराई से निकली होती है , पर आपका यह गद्य , गध्य न होकर गद्य कविता ही बन गया-"कहा उसने , डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं .ऐसे ही किसी की कुछ बातें सुनी तो ये शब्द कविता के जामा पहन मेरी हथेलियों में दुबक गए ."
इन पंक्तियों की मासूमियत मन मोह लेती है-
"बच्ची की मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी"
-बहुत साधुवाद ! आपकी लेखनी यूँ ही अमृत वर्षा करती रहे ।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब, गागर में सागर जैसी रचनाएं हैं।

बधाई।

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Patali-The-Village said...

मार्मिक और हृदयस्पर्शी क्षणिकाएँ| बहुत बहुत आभार|

amrendra "amar" said...

बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी

waah itni sunder rachna. laga hi nahi ki chand sabdo me bhi koi sansar samet sakta hai . per aapne to ker ke dikha diya......bahut sunder prastuti.............badhai.....

Anonymous said...

माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "

रचना जी इन पंक्तियों ने तो आँखों में आंसू ला दिए..इतनी मार्मिक अभिव्यक्ति... दिल से निकली बात दिल को छू गयी

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aaj pahli baar aap ke blog pe aaya..aur aankhein nam ho gayin..mere research guide hamesha mujhse kahte rahe ki ek kavita maa par likhooon..lekin ma shabd hi jadu hai..aur us jaadu pe main koi kavit nahi likh paya..lekin aapne shabdon se ma ki taswir kheench di..wo bhi itni marmik ...
hardik badhayi

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

अत्यंत ही मार्मिक और गम्भीर क्षणिकायें

महेन्‍द्र वर्मा said...

मर्म को स्पर्श करने वाली क्षणिकाएं..!!
शद आप के चिंतन के अनुकूल अर्थ ग्रहण कर रहे हैं।
.....................
के मुट्ठी - की मुट्ठी

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब क्षणिकाएं ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Sunil Kumar said...

मार्मिक क्षणिकाएं , निशब्द ...

Kunwar Kusumesh said...

वाह.आपकी क़लम क़ाबिले-दाद है.

Maheshwari kaneri said...

रचना जी .मै आज पहली बार आप के ब्लांग में आई..आप की भावमयी रचना पढ़्कर मुझे खुद पर अफसोस होरहा है कि इससे पहले मै कहाँ थी ? खैर अब मैं नियमित रहूँगी...आभार..

Anonymous said...

ये दीवारे ,ये आँगन
जानते हैं मुझे
पर ये मेरे नहीं है
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
ये बड़ी ईमारत
घर नहीं, पर घर है
इस के ऊपर लिखा है
'अनाथाश्रम '

बेहतरीन लिखा है आपने ।

संध्या शर्मा said...

बेहतरीन ....हर क्षणिका बेमिसाल है ..... मार्मिक और हृदयस्पर्शी रचना....

Kailash Sharma said...

बच्ची के मुट्ठी में
माँ का आँचल देख
अपनी हथेली सदैव
खाली लगी ...

बहुत मार्मिक...सभी क्षणिकायें बहुत सुन्दर..

Dr Varsha Singh said...

मार्मिक भावों की प्रभावी अभिव्यक्ति .......

شہروز said...

आपकी पंक्तियों ने भावुक कर दिया.सहज पर प्रभावी रचना.
हमज़बान की नयी पोस्ट आतंक के विरुद्ध जिहाद http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.htmlज़रूर पढ़ें और इस मुहीम में शामिल हों.

Asha Joglekar said...

हर क्षणिका दिल को छू गई । खास कर अंतिम ।

tips hindi me said...
This comment has been removed by the author.
tips hindi me said...

रचना जी,
नमस्कार,
आपके ब्लॉग को http://cityjalalabad.blogspot.com/p/blog-page_7265.html के हिंदी ब्लॉग लिस्ट पेज पर लिंक किया जा रहा है|

देवेन्द्र पाण्डेय said...

तीनो क्षणिकाएं खासा प्रभावित करती हैं। पहली, दूसरी बेहतरीन लगीं।

अशोक कुमार शुक्ला said...

एक तवीर जसे माँ बताया गया और कुछ फुसफुसाते शद "बन माई कै बटया "... !!! Marmik panktiya. Sach me rula gayi.

जयकृष्ण राय तुषार said...

अद्भुत शब्द चित्र /क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई रचना जी

जयकृष्ण राय तुषार said...

अद्भुत शब्द चित्र /क्षणिकाएं बहुत बहुत बधाई रचना जी

Ravi Rajbhar said...

ohhh...
kitna dard hi in me....
kis shabdo se tarif karu samjh me nahi ata.
bas maun hun abhi....??

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

रचना जी मन को छू लेने वाली रचना -सुन्दर भावों से ओत प्रोत -अक्सर ये देखा जा रहा है -काश अपने सा ही माएं इन बच्चियों को भी जाने उसमे अपना रूप देखें जिनके बिना इस सृष्टि का कोई औचित्य ही नहीं
बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

निर्मला कपिला said...

माँ पर कविता लिखूँ कैसे
मेरे पास है
एक तस्वीर
जिसे माँ बताया गया
और कुछ फुसफुसाते शब्द
"बिन माई कै बिटिया "
मार्मिक अभिवयक्ति। सभी क्षणिकायें गहरी संवेदना लिये हुये। शुभकामनायें।

Rachana said...

aap sabhi ke sneh shbon ka dhnyavad
sangeeta ji koshish karungi aapki baat puri kar sakun.
aapsabhi ka dhnyavad
rachana

ऋता शेखर 'मधु' said...

बहुत ह्रदयस्पर्शी रचनाएँ हैं...

बिन माँ की बच्ची
बन जाती सबकी बच्ची
स्नेह की वर्षा में भीगती
पर ममता की बूँद न होती

Dr.R.Ramkumar said...

डाली से टूट कर पत्ता सदैव भटकता रहता है .मासूम कदमो के नीचे यदि माँ की हथेली न हो तो वो पाँव जीवन भर जलते रहते हैं
behatar !
बहुत से लोग है यहाँ
लेकिन रिश्तेदार नही
rishtedaron mein bhi to vah bat nahin hoti jise apnapan kahte hai.

aapki mutthi jald bhare yehi shubhkamna..

Dr.R.Ramkumar said...

Achchha likh rahien hain Rachna ji

Udan Tashtari said...

बेहतरीन क्षणिकायें..कम शब्दों में पूरी बात!!!

Udan Tashtari said...

अपना संपर्क दें ईमेल से तो बात हो...sameer.lal AT gmail.com

Dr.Bhawna Kunwar said...

bahut marmik ,hrdyasparshi rachnayen...bahut 2 badhai..

shabdnidhi said...

आपके ब्लॉग की लिंक मुझे एक सज्जन के द्वारा प्राप्त हुई ,लगा अभी तक कुछ अधुरा था वो आज मिल गया .बहुत ही भीतर तक छू जाते है आपके विचार और भाव .अनाथाश्रम वाली कहानी तो दिल को छू गई.

अमिता कौंडल said...

रचना जी इन बच्चों के दुःख को इतनी मार्मिकता से लिखा है कि आँखे भर आयीl यह सच है,
माँ बिन बच्चा
भटके हर पल
नगर द्वार
सादर,
अमिता कौंडल

Human said...

bahut achhi aur bhaawpoorna abhivyakti,badhaai!