वो स्वयं टूटती है, पर रिश्तों को जोड़े रहती है l.बिखरती है ,लेकिन पूरे घर को समेटे रहती है l स्थान ,समय ,और परिस्थितियाँ उसका प्रारब्ध नहीं बदलते l अपने अन्दर की उर्जा को खर्च कर बहुत कुछ करती है ....जब तक कर पाती है ............
एक औरत
एक औरत
जब अपने अन्दर खंगालती है
तो पाती है
टूटी फूटी
इच्छाओं की सड़क ,,
भावनाओं का
उजड़ा बगीचा ,
और
लम्हा लम्हा मरती उसकी
कोशिकाओं की लाशें
लेकिन
इन सब के बीच भी
एक गुडिया
बदरंग कपड़ों मे मुस्काती है
ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
यही कविता रचनाकार पर
http://www.rachanakar.org/2011/07/blog-post_5925.html
61 comments:
ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
bahut hi gahan abhivyakti
बेजोड़ रचना ...... औरत के जीवन का कटु सत्य यही है..... . कि अपने अन्दर की उर्जा को खर्च कर बहुत कुछ करती है ....जब तक कर पाती है
उसको हंसाती रहना......
शुभकामनायें गुडिया को !
बहुत खूबसूरत अंदाज है 'एक औरत'
के बयां करने का.
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,रचना जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
wah....prerna deti hui ek behad achchi kavita.....
और जब ये गुड़िया
उस को फिर से दोबारा
मिल जाती है,
तो वो
उस दूसरी वाली गुड़िया के मार्फत
बहुत कुछ कर गुजरने को
आतुर हो उठती है
............. बहुत खूब
Is baar bahut dino ke baad aapki nayi kavita padhane ko mili.
ये औत टूटती है ,बखरती है फान क गजना को गुनगुनाहट म बदल देती है
eak gunguna ahsaas hai yeh.
Badhai.
इन सब के बीच भी
एक गुडिया
बदरंग कपड़ों मे मुस्काती है
ये औरत
टूटती है, बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
अच्छी कविता, सुंदर अभिव्यक्ति।
गहन भाव लिए अच्छी रचना .. औरत के हर भाव को बता रही है ..
"तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत"
जो सिर्फ एक औरत ही कर सकती है.
बहुत खूब
और
लम्हा लम्हा मरती उसकी
कोशिकाओं की लाशें
एक नया, और अपनी ही
तरह का प्रयोग ...
रचना , प्रभावशाली है
बधाई .
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत...गहन अनुभूति....
वाकई उस गुडिया को खोने नहीं देती औरत.
आदरणीया रचना जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत…
प्रणाम आपकी लेखनी को … सच औरत बहुत सामर्थ्य रखती है …
परमात्मा की इस महानतम् रचना को जो समझ नहीं पाते … दया आती है उन पर
मां , पत्नी , बहन , बेटी , प्रेमिका … मैं नारी के हर रूप को नमन करता हूं …
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
सही बात है फिर भी कटघरे मे उसे ही खडा किया जाता है। सुन्दर रचना। बधाई।
सच में मन को छू गई ये रचना।
क्या कहने
ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शुभकामनाएं
रचना जी खूबसुरत रचना मूल भाव बहुत सुन्दर -सुन्दर सन्देश देती -निम्न पंक्तियाँ मन को छू गयी लेकिन औरत इस गुडिया का सहेज सम्हाल उसमे जान डाल बहुत कुछ कर जाती है ..उसे करना भी चाहिए और इन संघर्षों के कारण ही वह पूजनीय है नमन के काबिल है ...
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर की माधुरी
टूटी फूटी
इच्छाओं की सड़क ,,
भावनाओं का
उजड़ा बगीचा ,
और
लम्हा लम्हा मरती उसकी
कोशिकाओं की लाशें
बहुत गहरी बात...उम्दा!!
गहरे भाव के साथ बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बधाई! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
aurat ka dard..maarmik...
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
kitna sahi likha hai...
sahansheelta ki moorat
hai aurat...
sadar
ऋता
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
ममत्व को परिभाषित करता हुई सुंदर कविता।
गहन भाव लिए अच्छी रचना... कटु सत्य है औरत के जीवन का !
सुन्दर रचना। बधाई।
शब्दों को मन की कलम से बखूबी उकेरा है
"ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत"-
रचना जी,निःशब्द करती रचना.गहन अभिव्यक्ति से पूर्ण.
वाह ! बेमिसाल...
उम्दा सोच
भावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
बहुत सुन्दर सारगर्भित रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार
रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
हाँ इतनी सशक्त रचना हो सकती है ,औरत को शब्दों शब्द चित्र में पिरोती यकीन नहीं होता -ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
HypnoBirthing: Relax while giving birth?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
व्हाई स्मोकिंग इज स्पेशियली बेड इफ यु हेव डायबिटीज़ ?
रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .(कबीरा खडा बाज़ार में ...........)
Links to this post at Friday, August 12, 2011
बृहस्पतिवार, ११ अगस्त २०११
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
सच बाई ... और ये हुनर बस औरत में ही है ... बहुत लाजवाब लिखा है ..
यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक कविता....
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
वाह रचना जी सुंदर रचना ।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
आपकी कविता में निर्मल भाव का समायोजन बहुत ही अच्छा लगा। धन्यवाद।
bahut gahre bhav liye hai aapki ye rachna...
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
शायद इसीलिए
तूफान की गर्जना को
गुनगुनाहट में बदल देती है
औरत
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,रचना जी.
आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
आपकी कविता अच्छी है आपके शब्दों का चयन भी सहज सुबोध है।
हम देख रहे हैं कि आप जितनी मेहनत से इन्हें लिखती हैं, आपको उतने पाठक नहीं मिल पा रहे हैं। आप अपना परिचय और अपनी पोस्ट्स के लिंक की एक रिपोर्ट तैयार करके हमें भेजिए हम उसे अपने ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ और ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में पेश करेंगे जिससे आपको नए पाठक मिलेंगे। अगर आप हमारे साझा ब्लॉग ‘मुशायरा‘ की सम्मानित रचनाकार बनना चाहें तो आपका स्वागत है।
आपने हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इं. पर टिप्पणी की तो हमारी नज़र आप पर पड़ी।
हम हर तरह आपके साथ हैं।
धन्यवाद !
See
http://mushayera.blogspot.com/2011/08/rishte.html
bahut sunder vakai........
bahut sundar rachana , Rachana ji, dhanyawaad
कटुसत्य से परिपूर्ण कवीता ! नारी के योगदान अनमोल
Very well written about a woman , please check my blog and guide me there.Thanks.
http://gargi-munjal.blogspot.com/
Thanks for your support :)
बेहद सशक्त रचना...
इन सब के बीच भी
एक गुडिया
बदरंग कपड़ों मे मुस्काती है
ये औरत
टूटती है ,बिखरती है
काँटों से अपने जख्म सीती है
पर इस गुडिया को
खोने नहीं देती
बहुत शुभकामनाएँ.
सुंदर भाव अच्छी रचना.
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (६) के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आयें और अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ /आप हिंदी के सेवा इसी तरह करते रहें ,यही कामना हैं /आज सोमबार को आपब्लोगर्स मीट वीकली
के मंच पर आप सादर आमंत्रित हैं /आभार /
meri kavita ko pasand karne ke liye aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
apne sneh ko aese hi banaye rakhiyega
rachana
सच है की घर भी तभी तक घर रहता है जब तक औरत होती है घर मिएँ ... बहुत ही कमाल की रचना है ...
रचना जी सुन्दर प्रस्तुति।जय हिन्द्।
रचना जी नमस्कार्।सुन्दर प्रस्तुति।जय हिन्द्।
आपकी रचनायों कि तरह यह भी एक सशक्त रचना है. औरत के जीवन को बहुत ही बेहतरीन तरह से प्रस्तुत किया है आपने.
बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल
आपकी रचनायों कि तरह यह भी एक सशक्त रचना है. औरत के जीवन को बहुत ही बेहतरीन तरह से प्रस्तुत किया है आपने.
बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल
रचना,
एक साथ कई कवितायें पढ़ गई। तुम्हारी रचनात्मकता लगातार निखरती जा रही है। बस थोड़ा ध्यान दे कर टाइप करो।
इला
bhut acha.
सुन्दर प्रस्तुति ......रचना जी
आदत.......मुस्कुराने पर
आइये चले मेरे साथ छिंदवाड़ा स्थित श्री बादल भोई जनजातीय संग्रहालय........ संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/
जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
शब्दों को मन की कलम से बखूबी उकेरा है
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