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Monday, December 19, 2011

सूरज ने मई जून में मिले लोगों के तानो से परेशान होकर जो अपने किवाड़ बंद कर लिए .घुन्ध आकाश के आँगन से निकल घरती पर पसर गई .ठंढ हाथ रगडती हुई स्वेटर पहन इतराती घूमने  लगी ऐसे में कहीं कोई स्वयं को जीवित रखने के लिए कर रहा था प्रार्थना कुछ टुकड़े कम्बल के लिए .पर सुनी जाती है दुआ कब गरीबों की ................................


मौसम ने ओढ़ी
शीत  की चूनर
पारा  नीचे गिरता गया
छोटू ने पानी डाल
कोयले की आग बुझाई
तो शहर 
लिपट गया कोहरे में
ठंढ खुद इतनी ठंढी हुई
के बैठ गई उकडू
जलते अलाव के पास
सूरज ने  बढाया घर का तापमान
चाँद ने रजाई ओढ़ी ली
माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
 वो बुन रही  थी फंदों में गर्माहट
कपड़ों की गठरी बने लोग
चल रहे थे
कम कर के शरीर का क्षेत्रफल
धुंध की महक वाली  हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत 

42 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

रचना जी,.बहुत खुबशुरत अच्छी पन्तियाँ बढ़िया पोस्ट,.....
मेरे नए पोस्ट के लिए-काव्यान्जलि ...: महत्व .....

ASHOK BIRLA said...

प्रकृति के आँगन में खेलते ठण्ड की अटखेलियों और पीडाओं को सहते असहायों की व्यथा को व्यक्त करती काव्य जगत के हवन में सार्थक आहुति !!

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत उम्दा और सामयिक कविता |

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत उम्दा और सामयिक कविता |

संजय कुमार चौरसिया said...

रचना जी,बहुत उम्दा कविता

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ओह , हृदयस्पर्शी .... सचमुच यही तो होता है.....

mridula pradhan said...

atyant hi samvedansheel......

Maheshwari kaneri said...

बहुत खुबसूरत भावपूर्ण रचना ..बधाई रचना जी....

shikha varshney said...

उफ़...शुरुआत में गुनगुनी धूप सी रचना अंत में मार्मिक हो गई.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति.

Rohit_blogger at http://floating-expressions.blogspot.in/ said...

rachnaji very nice lines,sheetkal per aadharit shandar pakhtiyan
maine bhi hindi kavita likhna suru kia hai.....aap jaise kuch hindi kavi/kaviyetre se apne kavita batna chaunga aur perspar aapke gyan se sekhna ka ikchuk hun.
Rohit
meri pratham kavita
dhanyawad.

सहज साहित्य said...

ठण्ड का सिहरन भर देने वाला चित्रण । रचना भाषा की धनी है । बेहतर भाषा की गुणवत्ता ही कवि को सामान्य अभिव्यक्ति से अलग करती है । भावों की गहराई पाठक को रससिक्त कर देती है।

Satish Saxena said...

ठिठुरते दम तोड़ते लोग, ठिठुरती सुबकती कविता ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

ठण्ड का अहसास कराती सुंदर प्रस्तुति,....मेरी नई पोस्ट के लिए काव्यान्जलि मे click करे

प्रियंका गुप्ता said...

एक बहुत ही व्यथित करने वाले विषय पर एक खूबसूरत रचना...। मेरी बधाई...।

रश्मि प्रभा... said...

gahri abhivyakti...

रश्मि प्रभा... said...

gahri abhivyakti...

ashokjairath's diary said...

माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट

'मा बिलकुल ऎसी ही तो थी
बुने हुए उस के कुछ स्वेटर
उसकी याद दिला जाते हैं
पलकों को नाम कर जाते हैं'
यादों की एल्बम से झांकता एक चित्र ...

दिगम्बर नासवा said...

सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत ...

Bahut Ji lajawab .... Sardi ko naye ehsaas mein piro diya ...

vikram7 said...

दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत
मन को छू गई आपकी यह रचना

Rachana said...

aap sabhi ka bahut bahut dhnyavad
rachana

Rakesh Kumar said...

ओह! ठंड का कहर सहना मुश्किल हो जाता है.

बहुत ही सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.

आभार.

आनेवाले नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
वीर हनुमान का बुलावा है आपको.

Naveen Mani Tripathi said...

SUNDAR POST KE LIYE BADHAI RACHNA JI ....SATH HI ABHAR.

shashi purwar said...

namaskar rachna ji , bahut hi sunder .......shabdo ka roop bahut hi suhana tha , prakruti ka varnan .....bahut umda post. har shabd sunder dhago se bandha huya.....badhai swikar karen.

happy new year.

vikram7 said...

नई कविता के इंतज़ार के साथ ,
नव वर्ष की शुभकामनायें
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

amit kumar srivastava said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।

Naveen Mani Tripathi said...

Nav Varsh pr apko sadar badhai Rachana ji ..... ak sundar rachana ke liye abhar.

Dr.R.Ramkumar said...

माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट

वाह! बहुत सुन्दर कल्पना!!

Dr.R.Ramkumar said...
This comment has been removed by the author.
आत्ममुग्धा said...

अंतिम पंक्तियाँ मन को छू गई .....बहुत बढ़िया

नीरज गोस्वामी said...

अच्छे शब्द, गहरे भाव ...सार्थक रचना...बधाई

नव वर्ष की शुभ कामनाएं
नीरज

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

माँ ने थामी ऊन सिलाई
ठन्डे हाथों से
वो बुन रही थी फंदों में गर्माहट

इतनी ठण्ड में आपकी कविता गर्मी दे रही है ..बहुत खूबसूरत रचना

vidya said...

आज अचानक आपका ब्लॉग दिखा..बहुत सुन्दर...आप,आपका ब्लॉग,आपकी उपलब्धियां और सबसे ऊपर आपकी रचनाये..
बधाई.

Jeevan Pushp said...

बहुत बढ़िया रचना !
आभार !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
आपका समर्थक बन गया हूँ आप भी फालोवर बने
तो मुझे खुशी होगी,...

प्रेम सरोवर said...

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । एक-एक शब्द समवेत स्वर में बोल रहे हैं । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

Unknown said...

▬● बहुत खूबसूरती से लिखा है आपने... शुभकामनायें...

दोस्त अगर समय मिले तो मेरी पोस्ट पर भ्रमन्तु हो जाइयेगा...
Meri Lekhani, Mere Vichar..
.

vikram7 said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

vikram7: कैसा,यह गणतंत्र हमारा.........

vidya said...

thanks a lot for following my blog...
waiting for your new poetry...
regards.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर रचना, प्रस्तुति अच्छी लगी.,

welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

प्रेम सरोवर said...

दिल से निकले उच्छवास ही किसी कविता को पूर्णता प्रदान करते हैं । आपकी हर प्रस्तुति अच्छी लगती है।
मेरे ने पोस्ट "तसलीमा नसरीन" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut marmsparshi rachna..

Saras said...

धुंध की महक वाली हवा
फिर भी न जाने कैसे
कुरेद रही थी हड्डियों को
दूर बस्ती में
फटे कम्बल से
खुद को ढक रहे थे वो चारों
सुबह अख़बार में
छोटा सा लिखा था
शीत लहर से चार की मौत

......न जाने कितने इस ठण्ड की बलि चढ़ते हैं ...अत्यंत संवेदनशील रचना ......