रचना बहन ने पूछा "सब ठीक है न "? कुछ ठीक है कुछ नहीं है .............बहन
बहुत अच्छा लगा की अपने पूछा .कभी कभी किसी दुसरे का दुःख भी अपना ही लगने
लगता है कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ बस उसी दर्द में मेरे कुछ शब्द बह चले और
ये कविता बनी
एक बेल
=============
एक बेल
जो सहारे की तलाश में निकली
तुमसे लिपटी
और तुम्हारी होके रह गई
तुम्हारी पीठ पर
उतारे उसने
बहारों के कई रंग
हथेलियों में खिलाये गुलाब
उसने उतनी ही धूप ली
जितनी तुमने दी l
हवा की टहनी पर
उतना ही झूली
जितना तुमने चाहा
धरा के उस छोटे टुकड़े को
घर कहती रही
जिस पर तुमने इशारा किया
एक रोज अचानक
गिरने लगी
कट कट के वो
पीले पड़े
अपने पत्तों को समेटती
मुरझाये फूलों की
पंखुडियां उठती
अपनी ही लाश पर
बहुत देर रोती
घूल में समां गई
उस रोज तुमने उससे कहा था
"और कितनो के लिए
बहीं है ऐसे ही
भावनाए तुम्हारी "
एक बेल
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एक बेल
जो सहारे की तलाश में निकली
तुमसे लिपटी
और तुम्हारी होके रह गई
तुम्हारी पीठ पर
उतारे उसने
बहारों के कई रंग
हथेलियों में खिलाये गुलाब
उसने उतनी ही धूप ली
जितनी तुमने दी l
हवा की टहनी पर
उतना ही झूली
जितना तुमने चाहा
धरा के उस छोटे टुकड़े को
घर कहती रही
जिस पर तुमने इशारा किया
एक रोज अचानक
गिरने लगी
कट कट के वो
पीले पड़े
अपने पत्तों को समेटती
मुरझाये फूलों की
पंखुडियां उठती
अपनी ही लाश पर
बहुत देर रोती
घूल में समां गई
उस रोज तुमने उससे कहा था
"और कितनो के लिए
बहीं है ऐसे ही
भावनाए तुम्हारी "
17 comments:
दूसरों के दू:ख की गहरी अनुभूति है आपकी ; हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति : अति सुन्दर
मर्मस्पर्शी.... सुंदर बिम्बों के ज़रिये कही ...साथ बढ़ने ,जीने और अलग हो जाने की व्यथा ..... बहुत बढ़िया
आह ...
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है रचना जी....
लंबे इन्तेज़ार के बाद आपने आकर मन भिगो दिया..
अनु
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .
एक बेल
जो सहारे की तलाश में निकली
तुमसे लिपटी
और तुम्हारी होके रह गई
तुम्हारी पीठ पर
उतारे उसने
बहारों के कई रंग
हथेलियों में खिलाये गुलाब
उसने उतनी ही धूप ली
जितनी तुमने दी l
बड़े ही मूड से ,अच्छे मन से लिखी गयी उम्दा कविता इसे कई बार पढ़ने का मन करेगा |
गलती तुम्हारी कहाँ थी !!!
मैंने तुम्हारे इशारों को अपना वजूद मान लिया था
जिसे मिट्टी ही मयस्सर थी
कितने गहरे अहसास बहरे हैं इन पंक्तियों में
बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति रचना जी.
बहुत सुंदर
अच्छी रचना
मेरे नए ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए नया लेख
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/10/blog-post.html
खूबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति.
मार्मिक और हृदयस्पर्शी.
आभार.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,रचना जी.
bahut khoobsurat rachna ji ......sundar abhivyakti man ko bhigo gayi
बहुत खूब ...
शुभकामनायें आपको !
कष्टदायक अभिव्यक्ति ...
एक बेल
जो सहारे की तलाश में निकली
तुमसे लिपटी
और तुम्हारी होके रह गई.
खूबसूरत भावपूर्ण प्रस्तुति.
भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी रचना....
सही में "कभी कभी किसी दुसरे का दुःख भी अपना ही लगने लगता है" फिर दिल में एक टीस उठती है...और शायद अपने सिवा कोई और नही समझ सकता |
सुंदर भावपूर्ण कविता । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
आपके आखिरी शब्दों ने तो डरा ही दिया ।
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