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Thursday, July 18, 2013

जो हुआ क्यों हुआ ?किसने किया ?किसके कारण हुआ ?इन सब बातो  का उन घरों के लिए अब क्या मतलब है जिनकी  मासूम आवाजें हमेशा के लिए शांत हो गईं l कुछ समय तक अख़बार की सुर्खियाँ बने रहने के बाद ये मामला भी अन्य मामलों की तरह गुम हो जायेगा l जिन्होंने अपने बच्चों को खोया है वो जीवन भर इस दर्द के साथ रहेंगे .....................................

बुधिया सोचती है


बुधिया सोचती है
काश के वो चार आने
उसने मुनिया को दे दिए होते
जो उसने
कम्पट खरीदने को मांगे थे
सी दी होती उसकी फटी फ्रोक
जो आज
स्कूल से आने के बाद
सीने वाली थी
काश के उसकी कोंपी पर
चढ़ा दी होती जिल्द
थकान के कारण
रोज कल पर टालती रही थी वो
उस दिन मेले में
दिला दिया होता
उसको बर्फ का गोला
कितना रोई थी
मुनिया उसके लिए
बुधिया सोचती है
ये सारे काम
अब वो कभी न कर पायेगी
बुधिया सोचती है
कल मुनिया और उसके दोस्तों को
शोर मचाने पर
नाहक ही उसने डाटा था
अब इस बस्ती में
कभी न गूंजेंगी
इनकी आवाजें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर  चीख रहा है
बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता  है
उसका करुण क्रन्दन भी




16 comments:

Maheshwari kaneri said...

मर्मस्पर्शी रचना...

Saras said...

कितने सारे ज़ख्म दे जाते हैं यह हादसे .....

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

ओह.. बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती हैं।
शुभकामनाएं..



मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है.
बधाई रचना जी ,
RECENT POST : अभी भी आशा है,

Ramakant Singh said...

बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता है
उसका करुण क्रन्दन भी
bahut khubsurat kintu dukhadayi

सहज साहित्य said...

करुणा से ओतप्रोत कविता , रचना जी का वही चिर -परिचित अन्दाज़ , किसी भी विषय की गहराई तक गोता लगाकर भावों के मोती निकालने वाला ! बहुत भाव-प्रवण कविता । बधाई !

Suman said...

मर्मस्पर्शी रचना मन को छू गई !
बुधिया के साथ वो स्कूल भी मुनिया की शक्ल
देखने को तरस रहा होगा !
सुन्दर रचना … आभार !

दिगम्बर नासवा said...

दिल को गहरे तक छूती ... टीस जगाती रचना ... उनके दिल पे क्या गुज़र रही होगी इसका आभास बस वो ही जान सकते हैं जिनपे गुज़री है ...

Smart Indian said...

उफ़्फ़! कितनी मासूम ज़िंदगियाँ ऐसे ही फिसलती जा रही हैं और हम हाथ मलते रह जाते हैं।

ARUNIMA said...

अच्छी कविता
समय मिले तो मेरे ब्लाग को देखिएगा

अनुपमा पाठक said...

मार्मिक!

प्रतिभा सक्सेना said...

उफ़ ,कितना करुण !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...



अब इस बस्ती में
कभी न गूंजेंगी
इनकी आवाजें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर चीख रहा है

बहुत मार्मिक !

आदरणीया रचना जी
आप-हम जैसे संवेदनशील लोग ऐसी घटनाओं पर आहत होते हैं...
अन्यथा हमने देखा , नेताओं को तो घड़ियाली आंसू बहाने का भी समय नहीं ।

करुण कविता !!

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...

♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार

tbsingh said...

marmik abhivyakti

अभिषेक सागर said...

अच्छी कविता...

महेश सोनी said...

kathor sachchaiyan