जो हुआ क्यों हुआ ?किसने किया ?किसके कारण हुआ ?इन सब बातो का उन घरों के
लिए अब क्या मतलब है जिनकी मासूम आवाजें हमेशा के लिए शांत हो गईं l कुछ
समय तक अख़बार की सुर्खियाँ बने रहने के बाद ये मामला भी अन्य मामलों की तरह
गुम हो जायेगा l जिन्होंने अपने बच्चों को खोया है वो जीवन भर इस दर्द के साथ रहेंगे .....................................
बुधिया सोचती है
बुधिया सोचती है
काश के वो चार आने
उसने मुनिया को दे दिए होते
जो उसने
कम्पट खरीदने को मांगे थे
सी दी होती उसकी फटी फ्रोक
जो आज
स्कूल से आने के बाद
सीने वाली थी
काश के उसकी कोंपी पर
चढ़ा दी होती जिल्द
थकान के कारण
रोज कल पर टालती रही थी वो
उस दिन मेले में
दिला दिया होता
उसको बर्फ का गोला
कितना रोई थी
मुनिया उसके लिए
बुधिया सोचती है
ये सारे काम
अब वो कभी न कर पायेगी
बुधिया सोचती है
कल मुनिया और उसके दोस्तों को
शोर मचाने पर
नाहक ही उसने डाटा था
अब इस बस्ती में
कभी न गूंजेंगी
इनकी आवाजें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर चीख रहा है
बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता है
उसका करुण क्रन्दन भी
बुधिया सोचती है
बुधिया सोचती है
काश के वो चार आने
उसने मुनिया को दे दिए होते
जो उसने
कम्पट खरीदने को मांगे थे
सी दी होती उसकी फटी फ्रोक
जो आज
स्कूल से आने के बाद
सीने वाली थी
काश के उसकी कोंपी पर
चढ़ा दी होती जिल्द
थकान के कारण
रोज कल पर टालती रही थी वो
उस दिन मेले में
दिला दिया होता
उसको बर्फ का गोला
कितना रोई थी
मुनिया उसके लिए
बुधिया सोचती है
ये सारे काम
अब वो कभी न कर पायेगी
बुधिया सोचती है
कल मुनिया और उसके दोस्तों को
शोर मचाने पर
नाहक ही उसने डाटा था
अब इस बस्ती में
कभी न गूंजेंगी
इनकी आवाजें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर चीख रहा है
बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता है
उसका करुण क्रन्दन भी
16 comments:
मर्मस्पर्शी रचना...
कितने सारे ज़ख्म दे जाते हैं यह हादसे .....
ओह.. बहुत सुंदर रचना
ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती हैं।
शुभकामनाएं..
मेरी कोशिश होती है कि टीवी की दुनिया की असल तस्वीर आपके सामने रहे। मेरे ब्लाग TV स्टेशन पर जरूर पढिए।
MEDIA : अब तो हद हो गई !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/media.html#comment-form
बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है.
बधाई रचना जी ,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
बुधिया सोचती है
काश के मुनिया आज भूखी रह गई होती
और इन चीखों में शामिल हो जाता है
उसका करुण क्रन्दन भी
bahut khubsurat kintu dukhadayi
करुणा से ओतप्रोत कविता , रचना जी का वही चिर -परिचित अन्दाज़ , किसी भी विषय की गहराई तक गोता लगाकर भावों के मोती निकालने वाला ! बहुत भाव-प्रवण कविता । बधाई !
मर्मस्पर्शी रचना मन को छू गई !
बुधिया के साथ वो स्कूल भी मुनिया की शक्ल
देखने को तरस रहा होगा !
सुन्दर रचना … आभार !
दिल को गहरे तक छूती ... टीस जगाती रचना ... उनके दिल पे क्या गुज़र रही होगी इसका आभास बस वो ही जान सकते हैं जिनपे गुज़री है ...
उफ़्फ़! कितनी मासूम ज़िंदगियाँ ऐसे ही फिसलती जा रही हैं और हम हाथ मलते रह जाते हैं।
अच्छी कविता
समय मिले तो मेरे ब्लाग को देखिएगा
मार्मिक!
उफ़ ,कितना करुण !
अब इस बस्ती में
कभी न गूंजेंगी
इनकी आवाजें l
दर्द के इस सन्नाटे में
हर घर चीख रहा है
बहुत मार्मिक !
आदरणीया रचना जी
आप-हम जैसे संवेदनशील लोग ऐसी घटनाओं पर आहत होते हैं...
अन्यथा हमने देखा , नेताओं को तो घड़ियाली आंसू बहाने का भी समय नहीं ।
करुण कविता !!
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
♥ रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं ! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
marmik abhivyakti
अच्छी कविता...
kathor sachchaiyan
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