तुमने कहा था
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तुमने कहा था
अपने गगन से मुझे विस्तार दोगे
अपने झरोखे से गिराओगे
छाँव के बादल l
सूरज का एक दीप
मेरी चौखट पर सजाओगे
मै देखती हूँ
तुम्हारा गगन ,झरोखा और सूरज
उम्मीद करती हूँ
और निराश होती हूँ
कोई इस तरह भूलता है
कहीं अपने वादों को
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तुमने कहा था
अपने गगन से मुझे विस्तार दोगे
अपने झरोखे से गिराओगे
छाँव के बादल l
सूरज का एक दीप
मेरी चौखट पर सजाओगे
मै देखती हूँ
तुम्हारा गगन ,झरोखा और सूरज
उम्मीद करती हूँ
और निराश होती हूँ
कोई इस तरह भूलता है
कहीं अपने वादों को
7 comments:
antas kee gehraai se upji samvednayen
अजी इंतज़ार कीजिये कोई नहीं भूलता पर हाँ कभी देर जरुर हो जाती है
सूक्ष्म पर दिल के करीब
रचना जी दिल को छू गई आपकी ये कविता।
इसके आगे कुछ कहने जा रही हूँ ……
अजी भूलना भुलाना
उनकी आदत हो गई है
उनको तो शायद
याद भी नहीं होगा
कभी किए थे
आप संग मिल
ये हसीन वादे
क्योंकि ……
वे मान जो बैठे हैं
कि ……....
वादा कर भूलने को ही
असल ज़िन्दगी कहते हैं।
डॉ हरदीप कौर सन्धु
बहुत नर्म और संजीदगी से शिकायत किये है !
सुन्दर !
आभार !
कोई क्या करे वादों कि किस्तमत में ही हैं टुट जाना......
http://savanxxx.blogspot.in
बेहद करीने से सजे है शब्द और उनके भाव
बेहद करीने से सजे है शब्द और उनके भाव
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