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Friday, February 3, 2012

मेरी माँ हमेशा कहती है कि इस एक चुटकी सिंदूर में न जाने क्या होता है की स्त्री जीवन भर के लिए उसी की हो के रह जाती है .सारे रिश्ते पीछे छूट जाते हैं . उसकी  ख़ुशी में खुश और  उसके दुःख में दुखी होती रहती है और ऐसा करने में ही स्त्री को सवार्गिक सुख मिलता है .इसी भाव से प्रभावित है ये कविता ......................

समर्पण
==============
सामाजिक रीत निभाने को
मेरी मांग में ,
लाली भरी
पर रिश्ते को पागा नहीं
प्रेम की चाशनी मेंl
तुम्हारी नजरो की चाह में
चन्द्र किरण से सजी
पर देखा इस तरह
जैसे बेवख्त आये मेहमान को
देखता है कोई
स्नेह की  रोली बन
बिकी मै हाट में
तुमने ख़रीदा ,
और बिखेर दिया
तुम्हारी बेल में फूल बन खिली
गैर के लिए तोडा मुझे
शी लव मी शी लव मी नोंट
कहते हुए
मेरी पंखुड़ी पंखुड़ी नोच डाली
कभी जोड़ा जो नेह
तो इस तरह
के दो वख्त की रोटी के बदले
ले लेता है आबरू
मालिक जैसे
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
 फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम 

47 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम

यह बात विडम्बना की भी है और विश्वास की भी , बेहतरीन लिखा है रचना जी.....

ऋता शेखर 'मधु' said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम

लाजवाब अभिव्यक्ति..सामाजिक सच्चाई को सुंदरता से लिखने के लिए बधाई|

संजय कुमार चौरसिया said...

रचना जी.....बेहतरीन
सच्चाई को सुंदरता से लिखा है

रश्मि प्रभा... said...

एक चुटकी सिंदूर और गुलाम !सिंदूर रिश्ते की गरिमा है , कहीं कहीं दिखती भी है , पर अधिकतर ऐसे ही

Rakesh Kumar said...

आपकी प्रस्तुति दिल को झंझोडती है.
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
'हनुमान लीला भाग-' पर आपके
सुविचार आमंत्रित हैं.

G.N.SHAW said...

संस्कार और इससे बंधी गुंजन से सराबोर कविता , किन्तु मानव के अधूरे अत्याचार को भी खोल कर रख दी है ! बधाई !

Maheshwari kaneri said...

लाजवाब अभिव्यक्ति.. बधाई !

Madhuresh said...

बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति!
आशा है ऐसी कड़वी सच्चाई समाज से जल्द ही उन्मूलित हो जाएगी!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

बहुत-बहुत-बहुत बढ़िया कविता.....

Sufi said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
Bahut sunder bhaav...

shikha varshney said...

क्या कहें रचना जी ! ये रिवाज़ भी हैं और विश्वास भी और कुछ हद तक मजबूरी भी.
बेहद सटीक और सुन्दर लिखा है समाज के इस पहलु को.

Shabad shabad said...

रचना जी,
बहुत ही मार्मिक प्रस्तुति है आपकी...
बेहतरीन रचना लिखने के लिए बधाई|

virendra sharma said...

सच से रु -बा -रु इसकी उसकी सबकी बात .साधारणीकरण कर दुःख से ऊपर उठती बात .

virendra sharma said...

सिंदूर का मतलब पहले प्रति -बद्धता होता था .
युगीन अर्थ बदलें हैं .नित बदल रहें हैं .हज़ारों प्यार करतें हैं निभाना किसको आता है ....

Udan Tashtari said...

बेहतरीन रचना

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह रचना ही.

दिगम्बर नासवा said...

ये सच है ... स्त्री का भाव ऐसा ही होता है ... पर आदमी हमेशा उसे कदम कदम पे प्रताडित ही करता है ... भावों को शब्दों में उतारा है अपने ...

प्रियंका गुप्ता said...

बहुत भावपूर्ण कविता है...। यह शायद हर विवाहित स्त्री के जीवन की त्रासदी है...ज़्यादातर पति अपनी पत्नी को taken for granted वाले नज़रिए से ही देखते हैं...। एक बेहतरीन रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...।
प्रियंका

आत्ममुग्धा said...

सिंदूर.....एक ऐसा बंधन जिसे सामाजिक मान्यता प्राप्त है....जिसकी आड़ में औरत को तार-तार किया जाता है ....फिर भी
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
संजीदगी भरी बातों को इतनी खूबसूरती से कहने के लिए आभार

vidya said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
विलम्ब के लिए क्षमा चाहती हूँ..

सस्नेह.

रचना दीक्षित said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम

सच्चाई को स्वीकार करने का नायब नमूना पेश किया है रचना जी. बहुत बेहतरीन लिखा है.

Naveen Mani Tripathi said...

Wah rachana ji ....... ..

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम

gahri abhivykti

सहज साहित्य said...

रचना जी का अंदाज़े बयां सबसे अलग है। चिन्तन और अनुभव की नव्यता लिए हुए । ये पंक्तियाँ तो बेहद प्रभावित करती हैं-
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम

Ramakant Singh said...

के दो वख्त की रोटी के बदले
ले लेता है आबरू
मालिक जैसे
संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
DEVOTED AND DEDICATED LINES BY A TRADITIONAL AND RELIGIOUS LADY.
PRANAM

mridula pradhan said...

behad bhawpoorn......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन सुंदर लाजबाब रचना,...

MY NEW POST ...कामयाबी...

प्रेम सरोवर said...

बहुत अच्छी रचना एवं सुंदर प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा ।

Rachana said...

kavita ko pasand karne ke liye aap sabhi ka bahut bahut abhar.apna sneh aese hi banaye rakhiye
rachana

सहज साहित्य said...

संबंधों के दरख्त को
मै लहू से सीचती रही
खुद को समेट
सौपती रही तुम्हें
और तुम,
मुझे तार तार उधेड़ते रहे
फिर भी,
हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम -
रचना श्रीवास्तव ने नारी की विवशता और समर्पण को बहुत मार्मिकता से पेश किया है । भाषा का माधुर्य तो इतना बेजोड़ है कि मन-प्राण स्पर्श कर लेता है । हार्दिक बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिए ।

Jeevan Pushp said...

सोचने पर मजबूर करती रचना !
बेहतरीन प्रस्तुति !
आभार !

Sawai Singh Rajpurohit said...

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है!
"AAJ KA AGRA BLOG"

ज्योति सिंह said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
bahut bahut bahut badhiya .ise padhkar mujhe kuchh yaad aa raha hai ----uljhan hai bahut phir bhi hum tumko na bhulange ,mushkil hai bahut mushkil chahat ka bhoola dena .....

Rakesh Kumar said...

मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,बहुत अच्छा लगा.
आभारी हूँ आपका.

मेरे बात.. पर भी आईएगा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

माँ की सोच में सिमटी नारी के मन को बखूबी लिखा है ... बस समर्पण की भावना ही सर्वोपरि है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है

..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .

virendra sharma said...

हर धागा बस यही कहता रहा
मेरे मांग की लाली,
कलाई की खनक
मंगल सूत्र की चमक हो तुम
मेरे ब्लॉग पर आपकी दस्तक का शुक्रिया .
.बहुत अच्छी रचना है यह आपकी बारहा पढने लायक .

प्रेम सरोवर said...

इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दे चुका हूं । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

Dr.Bhawna Kunwar said...

Lmbi bimari ke baad aap sabko padhne ka avsar mila...dilo dimaag par chha gayi aapki ye rachna... bahut2 badhai..

Smart Indian said...

ना मानने वाले के लिए बस एक परम्परा या प्रतीक, मानने वाले के लिए सर्वस्व!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

दिल को झंझोडती है.
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए आभार.रचना जी

फालोवर बन गया हूँ आप भी बने खुशी होगी

NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

avanti singh said...

लाजवाब रचना ,रचना जी... बधाई !

आप को होली की खूब सारी शुभकामनाएं

नए ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित है

नई पोस्ट

स्वास्थ्य के राज़ रसोई में: आंवले की चटनी
razrsoi.blogspot.com

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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ASHOK BIRLA said...

bahut hi lajawab ... the best rachnaon par likhne ke liye shabd kam pad jate hai yaha bhi kuch yesa hi hai !!

ANULATA RAJ NAIR said...

सुन्दर प्रस्तुति....
सच्चाई बयाँ करती...

स्नेह...

Saras said...

तुम्हारी नजरो की चाह में
चन्द्र किरण से सजी
पर देखा इस तरह
जैसे बेवख्त आये मेहमान को
देखता है कोई .....

सारी व्यथा कह दी .....
रचनाजी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ....लाजवाब लिखती हैं आप

Rajput said...

एक चुटकी सिंदूर बदल देता है इंसानी रिश्तों को .

बहुत उतार चढ़ाव लिए हुए सुन्दर कविता

Maurice said...

संबंधों के दरख्त को मै लहू से सीचती रही खुद को समेट सौपती रही तुम्हें और तुम, मुझे तार तार उधेड़ते रहे फिर भी, हर धागा बस यही कहता रहा मेरे मांग की लाली, कलाई की खनक मंगल सूत्र की चमक हो तुम - रचना श्रीवास्तव ने नारी की विवशता और समर्पण को बहुत मार्मिकता से पेश किया है । भाषा का माधुर्य तो इतना बेजोड़ है कि मन-प्राण स्पर्श कर लेता है । हार्दिक बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिए ।