भारत गई थी अतः बहुत दिनों से आप सभी से दूर रही आज माँ गंगा पर लिखी
कुछ क्षणिकाएं आप सभी के सामने प्रस्तुत हैं .गंगा एक नदी ही नहीं ,एक माँ
है ,एक विश्वाश है ,एक आस्था है l
क्षणिकाएं
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ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम
-0-ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम
अब दिखते नहीं
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ
-०-
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
-०-
अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं
-०-
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ
-०-
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
-०-
अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं
-०-
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
32 comments:
आपकी लाजबाब प्रस्तुति पढकर मन भावुक हो गया.
बहुत दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए.
मैं भी काफी दिनों से बाहर था.
पिछले महीने अमेरिका में था,
नेट के संपर्क में बहुत कम रहा.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा.
वाह रचनाजी ....लाजवाबं रचनायें .....अंत:स को जगाती हुई ....
सुंदर क्षणिकाएँ माँ गंगा को समर्पित.
ब्लॉग पर वापसी पर स्वागत.
ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम.....
.........
प्रत्येक क्षणिकाएँ गंगा का मर्म उद्भाषित कर रही हैं
Aapne bahut sundar rachna likhi hai
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
बेहद ही भावमयी क्षणिकाएं.सब की सब.
एक से बड़ कर एक मन को छूती हुई.सुंदर क्षणिकाएँ
बेहतरीन सुंदर क्षणिकाएँ .,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों की किरचें
आह , गंगा माँ के मन की वेदना ...गहन अभिव्यक्ति
गंगा माँ की गहन वेदना..मन को छू गई..
मन की पीड़ा से उपजी बहुत मार्मिक...सुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा ...
मार्मिक ... सभी क्षणिकाएं गंगा का दर्द समेटे हुवे ... गंगा कों समर्पित ...
ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम.....
लाजबाब प्रस्तुति पढकर मन भावुक हो गया.
aap sabhi ke vicharon ka bahut bahut dhnyavad.
अनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्तुति।
गंगा को समर्पण अच्छा लगा.! ..
आपका मेरे ब्लॉग पर इन्तजार है,रचना जी.
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा..
माँ गंगा की वेदना आपके शब्दों द्वारा ह्रदय तक पहुँच गई ..मन भावुक हो उठा...
शुभकामनाएँ रचना जी !!
जाने क्यूँ आपकी पोस्ट की अपडेट हमारे डेशबोर्ड पर आती नहीं????
सो विलम्ब के लिए क्षमा करें.
बहुत सुन्दर क्षणिकाये ....
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
भावनात्मक.....
अनु
सुंदर एवं भावमयी क्षणिकाएँ, सब एक से बढ़कर एक ......
साभार !!
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
सभी दिल पर असर करती हुईं ...
बधाई !
बहुत अच्छी रचना!गंगा का चित्र खिंच गया आँखों में।
.
बहुत भावपूर्ण क्षणिकाएं हैं आदरणीया रचना जी !
हर क्षणिका में सच्चाई और संवेदना का सम्मिश्रण है …
सभी मन को छूती हुईं …
नमन आपकी लेखनी को !
सुन्दर क्षणिकाएं !
इला
सुन्दर क्षणिकाएं !
इला
Sundar abhivyakti...
marmsprshi rachna"such mat kho,such se daro ab sb ye khne lg gye hai,aasma se jhooth ke pattharbarsne lg gye hai...a'talkh succhaye se laberej prasuti
उठ रहा है
मेरे तट से धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा
गंगा जी के प्रति आपकी असीम श्रद्धा मन को दोलायमान कर गई। प्रस्तुत क्षणिकाएं अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
वाह और आह कितना दर्द भरा है इन क्षणिकाओं में ।
गंगा को समर्पण अच्छा लगा.! ..
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