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Thursday, January 17, 2013

आज बिना कुछ लिखे ये कविता पोस्ट करना चाहती हूँ क्योंकी लिखने को इतना कुछ की न लिखना ही अधिक ठीक है


 पेड़ ने शोक न मनाया
जबएक एक कर
 पत्ते  साथ छोड़ गए
दुखी न हुआ तब भी
जब गिलहरियों ने चिड़ियों ने
उस पर फुदकना छोड़ दिया
कुछ न कहा उसने
जब सूरज की किरण
जो थामे रहती थी
हर वख्त
उसका दामन
छोड़ उसे
 धुन्ध  की गोद में समा  गई
चुप रहा  वो
 जब ठूठ हुए  बदन को
बर्फ के फूलों की चादर
ने ढक लिया
ठंढ की लहर
उसको अन्दर तक छिल गई थी
पर आज
तो वृक्ष चिटक गया था
दर्द का एक दरिया
फुनगी से जड़ों तक बह रहा था
और उसकी उदासी से पूरा मौसम उदास था
 आज उसने शायद न्यूज़ देखी ली  थी
संस्कारों के देश में
दरिंदो का तांडव देखा था
और महसूस किया था उस चीख को
जिसको वो अमानुष
न महसूस कर पाए
उदास  था वो  दरख़्त
क्योंकी  न्याय की प्रतीक्षा में
दो जोड़ी आँखें
आज भी झाँख रहीं हैं  अम्बर से  

 

20 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मर्मस्पर्शी.......

Saras said...

कुछ न कहते हुए भी ...कितना कुछ दिया दिया ......वाकई ...:(

संजय कुमार चौरसिया said...

YE DARD KA BYAN HAI , PED , PARIVAR AUR SAKSKAR ........ DHEERE DHEERE LUPT HO RAHE HAIN

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

ओह, बहुत सुंदर
कभी कभी ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

लाजबाब मार्मिक अभिव्यक्ति ,,,

recent post : बस्तर-बाला,,,

दिगम्बर नासवा said...

बहुत गहरा .... मर्म को छूता हुवा ...
लावाब रचना है ... मूक ठूंठ भी समझता है दर्द क्या होता है ... पता नहीं अमानुष कब सुनेंगे ये चीत्कार ...

रचना दीक्षित said...

उदास था वो दरख़्त
क्योंकी न्याय की प्रतीक्षा में
दो जोड़ी आँखें
आज भी झाँख रहीं हैं अम्बर से.

बहुत गंभीर प्रश्न उठाती है यह सुंदर प्रस्तुति.

बहुत बधाई रचना जी.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

मार्मिक, प्रतीकात्मक, वाह !!!!

tbsingh said...

achchi rachana

शिवनाथ कुमार said...

बहुत कुछ कहती मर्मस्पर्शी रचना
सादर !

Madan Mohan Saxena said...

ह्रदय को छू लेने वाली रचना.बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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Satish Saxena said...

आशा बनी रहे...

Satish Saxena said...

शुभकामनायें ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मार्मिक,प्रतीकात्मक,अभिव्यक्ति,

Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

डॉ. जेन्नी शबनम said...

बहुत मर्मस्पर्शी रचना. संवेदनहीन दुनिया का सत्य है. उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई.

Anonymous said...

Very descriptive blog, I enjoyed that a lot.

Will there be a part 2?

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Anonymous said...

These are truly impressive ideas in concerning blogging.
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tanahi.vivek said...

शब्द कि इस मर्म को .... मैं यूँ समझ कर आ गया …
अल्फाज पढ़ के यूँ लगा .... खुद से ही मिल के आ गया ....

बहुत खूब ....