छत की मुंडेर
पर बैठी मै
पैर हिलाती हुई
अपने दर्द को
सहलाती पुचकारती
उससे पूछती हूँ
क्यों रे
मुझसे तेरा दिल न भरा
कभी तो मेरा साथ छोड़ा होता
वो खामोश सुनता रहा
मै नीचे उतर आई
आँगन से देखा
वो अभी भी मुंडेर
पर बैठा था .
उसने भरी आँखों से मुझे देखा
और छलांग लगा दी
मै चीख पड़ी
गली में
उसका वजूद
बिखरा पड़ा था
और मै
एकदम खाली हो गई थी
क्योंकी मेरे अन्दर
उसके आलावा कुछ न था ......
9 comments:
बहुत उम्दा भाव लिये सुंदर प्रस्तुति,,,
बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
.
उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,
सुंदर प्रस्तुति
मर्मस्पर्शी .....
very nice.....
आपकी कवितायेँ अवाक् कर जाती है ......वाकई !
दर्द से मुलाक़ात और उसके बिछुडने का दर्द. बहुत संवेदनशील और मर्मस्पर्शी.
सच है! हम दर्द पाना नहीं चाहते हैं... मगर दर्द के बिना कितने खाली भी हो जाते हैं...
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति!
~सादर!!!
aapsabhi ka bahut bahut dhnyavad
sneh milta rahe yahi aasha hai
rachana
दर्द से आपकी मुलाकात , बहुत ही मर्म़स्पर्शी । बधाई।
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