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Wednesday, May 14, 2014

माँ
रिश्तों के गुलदान में
रोज ही सजती
संवेदनाओं के नए पुष्प
डालती स्नेह का छीटा
ताकि बानी रहे ताजगी
पुराने रिश्तों में 

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वो रोज
घर पर फ़ोन करता है
सभी हाल चाल  पूछते हैं
पर
'घर कब आओगे 'कोई नहीं पूछता  

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4 comments:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

भावपूर्ण रचना....बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@
आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया(नई रिकार्डिंग)


ओंकारनाथ मिश्र said...

सुन्दर रचना.

Jyotsana pradeep said...

bahut khoobsurat v bhaa purn rachna ke liye badhai

dinesh gautam said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना।